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कविता

डर

सोंचथौं, कईसे होही वो बड़े-बड़े बिल्डिंग-बंगला, वो चमचमावत गाड़ी, वो कड़कड़ावत नोट, जेखर खातिर, हाथ-पैर मारत फिरथें सब दिन-रात, मार देथें कोनों ला नइ ते खुद ला? अरे! वो बिल्डिंग तो आवे ईंटा-पथरा के, कांछ के, वो कार तो आवै लोहा-टीना के, अउ कागज के वो नोट, वो गड्डी आवै। वो बिल्डिंग आह! डर लगथे […]

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व्यंग्य

व्यंग्य : माफिया मोहनी

बाई हमर बड़े फजर मुंदराहा ले अँगना दूवार बाहरत बनेच भुनभुनात रहय, का बाहरी ला सुनात राहय या सुपली धुन बोरिंग मा अवईया जवईया पनिहारिन मन ल ते, फेर जोरदार सुर लमाय राहय – सब गंगा म डुबक डुबक के नहात हें, एक झन ये हर हे जेला एकात लोटा तको नी मिले। अपन नइ […]

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कविता

मदरस कस मीठ मोर गांव के बोली

संगी – जहुरिया रहिथे मोर गांव म हरियर – हरियर खेती खार गांव म उज्जर – उज्जर इहां के मनखे ,मन के आरुग रहिथें गांव म खोल खार हे सुघ्घर संगी बर ,पीपर के छांव हे संगी तरिया – नरवा अऊ कुंआ बारी गांव के हावे ग चिन्हारी किसिम – किसिम के इहां हावे मनखे […]

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गोठ बात

सतनाम पंथ के संस्थापक संत गुरूघासीदास जी

छत्तीसगढ़ राज्य के संत परंपरा म गुरू घासीदास जी के इस्थान बहुत बड़े रहि से। सत के रददा म चलइया, दुनिया ल सत के पाठ पढ़इया अउ मनखे-मनखे के भेद ल मिटइया। संत गुरूघासीदास जी के जीवन एक साधारन जीवन नइ रहिस। सत के खोज बर वो काय नइ करिस। समाज म फइले जाति-पाँति, छुआछूत, […]

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कविता

याहा काय जाड़ ये ददा

समझ नइ आवत हे,याहा काय जाड़ ये ददा…! जादा झन सोच,झटकुन भुररी ल बार बबा…! अपने अपन कांपाथे,हाथ गोड़…! चुपचाप बइठ,साल ल ओड़…! कोन जनी कती,घाम घलो लुकागे हे…! मोला तो लागत हे,उहू ह जडा़गे हे…! आज नइ दिखत हे,चंवरा म बइठइया मन…! रउनिया तपइया,रंग-रंग के गोठियइया मन…! बइरी जाड़ ह,भारी अतलंग मचावत हे…! सेटर,कथरी […]