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व्यंग्य

बियंग: ये दुनिया की रस्म है, इसे मुहब्बत न समझ लेना

मेंहा सोंचव के तुलसीदास घला बिचित्र मनखे आय। उटपुटांग, “ भय बिनु होई न प्रीति “, लिख के निकलगे। कन्हो काकरो ले, डर्रा के, परेम करही गा तेमा …… ? लिखने वाला लिख दिस अऊ अमर घला होगे। मेहा बिसलेसन म लग गेंव। सुसइटी म चऊंर बर, लइन लगे रहय। पछीना ले तरबतर मनखे मन, […]

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कविता

गरमी के भाजी

गुरतुर हे इहां के भाजी ह , बड़ सुघ्घर हे लागय। अम्मट लागथे अमारी हा, सोनू खा के भागय।। किसम किसम के भाजी पाला , हमर देश मा आथे। सोनू मोनू दूनो भाई , खोज खोज के लाथे।। लाल लाल हे सुघ्घर भाजी , अब्बड़ खून बढाथे । चैतू समारु खाथे रोजे , सेहत अपन […]