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गीत

घानी मुनी घोर दे : रविशंकर शुक्ल

घानी मुनी घोर दे पानी .. दमोर हे हमर भारत देसल भइया, दही दूध मां बोर दे गली गांव घाटी घाटी महर महर महके माटी चल रे संगी खेत डंहर, नागर बइला जोर दे दुगुना तिगुना उपजय धान बाढ़े खेत अउर खलिहान देस मां फइले भूख मरी ला, संगी तंय झकझोर दे देस मां एको […]

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कविता

तयं काबर रिसाये रे बादर

तयं काबर रिसाये रे बादर तरसत हे हरियाली सूखत हे धरती, अब नई दिखे कमरा,खुमरी, बरसाती I नदियाँ, नरवा, तरिया सुक्खा सुक्खा, खेत परे दनगरा मेंड़ हे जुच्छा I गाँव के गली परगे सुन्ना सुन्ना, नई दिखे अब मेचका जुन्ना जुन्नाI करिया बादर आत हे जात हे, मोर ह अब नाचे बर थररात हेI बिजली […]

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कविता

सावन के झूला

सावन के झूला झूले मा , अब्बड़ मजा आवत हे। सबो संगवारी मिलके जी ,सावन के गीत गावत हे।। हंसी ठिठोली अब्बड़ करत , झूला मा बइठे हे। पेड़ मा बांधे हाबे जी , डोरी ला कसके अइठे हे।। दू सखी हा बइठे हे जी , दू झन हा झूलावत हे। पारी पारी सबो संगी, […]