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कविता

आज के रावन

पिये के एके बहाना टेंसन होगे।
दारू अउ बियर ह फेसन होगे।।

रावन जइसे पंडित ज्ञानी,
अड़बड़ पैग लगावत हे।
घर मा जाके मंदोदरी बिचारी ल,
डंडा खूब ठठावत हे।।
एक रुपया के चाउंर ह पेंशन होगे..
पिये के…

नशा होइस त सीता दाई बर घलो
नियत ह खराब हो जथे।
रिस्ता नता सबले बड़े,
मउहा के शराब हो जथे।।
नशा मा धुर्रा ह बेसन होगे…
पिये के…..

दारू बर खेतखार बेचागे,
अउ लोटा गिलास बटलोही।
मंदोदरी के चिरहा लुगरा,
अउ अक्षय ह बासी बर रोही।।
मुक्ति बर फांसी डोरी जहर महुरा
रेलवे टेसन होगे …
पिये के…..

✍ राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
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