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कविता

अगुवा बनव

हुसियार बनके हुसियारी करव रे-
बिजहा धान के रखवारी करव रे।
करगा ल निमार फेकव,
बन बदौरी ल चाली करव रे।
लईका सियान मिलके बने,
निस्तारी करव रे—
सुमत के रद्दा म रेंगव,
पिछवाव झन पूछी धरके,
अगुवा बनव संगवारी चलव रे।
मुहुकान ल तोपव झन,
रद्दा ककरो रोकव झन।
मुड़ी उपर चढ़हैईया ल,
धरव पकड़व छोड़व झन।
पगुरात झन बईठो भईसा कस,
बघुवा कस गुरराय चलव रे।
हमन किसनहा बेटा हरन,
संघरही तेला संघराय चलव रे।
ओरयाइस ओरवाती के धार,
बांध लौ आजे तुमन पार।
चिखला म गरकट्टा ल बईठार,
बनके तुमन सियार चलव रे।
घुना किरा असन घुनत हे,
छत्तीसगढ़ महतारी ल।
कोनों तो येकर माद म खुसर के
बीख डारे के परयास करव रे।
ओसावव बदरा अऊ फोसवाहा ल,
कतेक दिन येकर जतन करहु।
करगा ल निमार फेकव,
बन बदौरी ल चाली करव रे।
गर फैइलाय बईठे मंगर के,
टोटा ल मुसकेट डारव रे।
फोही उफले हाबय ते उफलन दे,
उबुक चुबुक करैईया मनखे ल ,
बचाय बर कोनों उदिम करव रे।
मुसवा बिला म हाथ नींगाय के,
थोरकिन जुरुम करव रे।
छतीसगढ़ के बघवा मन चुरी मत पहीनव,
थोरको किन तो शरम करव रे।
गद्दी म बईठे बर संगवारी हो,
थोरकिन हुसियार बनव रे।
तभे तो राज आही छत्तीसगढ़ियां के,
अनजान के बात म बिसवास करव रे।
करगा ल निमार फेकव,
बिजहा धान के रखवारी करव रे।

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (धरसीवां)
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