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कविता

जागव जी : अपन बुध लगावौ जी

अपन बुध लगावौ जी

परबुधिया झन बनौ,
अपन बुध लगावौ जी !
मुसुवा नो हौ.गउहा डोमी,
अब तो फन उठावौ जी!!

सिधवा हन पर भोकवा नही,
सब ल बतादौ !
परदेशिया के जुलूम ल,
अब ठेंगवा देखादौ !!
नेता मंत्री बने बइठे,
हावै करिया चोर ह !
अन्न धन ल लुटत हे,
परदेशिया निपोर ह !!
छत्तीसगढ़िया माटी के रंग अब देखावौ जी…
मुसुवा नो हौ………! परबुधिया झन…..

पहुना बन आइस,
अब घर ल हमर बाँटत हे!
हमरे पतरी म खाके,
आज गर ल हमर काटत हे !!
चोर गरकट्टा मन,
रखवार बनगे !
अउ भुंईया के मालिक ह,
बनिहार बनगे !!
लहू चुहुकइया ये ढेकना ल भगावौ जी……
मुसुवा नो हौ…….. परबुधिया…….

हितवा नो हे चोरहा ए,
अब तो इन ल समझव !
बिखहा चबरी चांटी ए
पांवे म रमजव !!
जात पात ल छोड़ के,
अब तो एक हो जव !
छत्तीसगढ़िया के बइरी ल,
धर धर के बोजव !!
अब कोनो गुर्राही त टंगिया देखावौ जी……
मुसुवा नो हौ……..।परबुधिया झन…….

-राम कुमार साहू
सिल्हाटी (स. लोहारा )
कबीरधाम
मो नं.9977535388
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