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कविता

अपन

पहिनथन अपन कपड़ा ल,
रहिथन अपन घर म,
कमाथन खेत ल अपने,
खाथन अपन हाथ ले,
लीलथन अपने मुंह ले,
सोंचथन घलो, सिरिफ अपने पेट के बारे म।
अपन दाई, अपन,
अपन ददा अपन,
अपन भाई, अपन,
अपन बहिनी, अपन
अपन देस, अपन
अपन तिरंगा, अपन,
मरना पसंद करथन अपन धरम म।
मानथन घलो अपनेच देबी देवता ल।
अपन बेटा-बेटी ए बर तो कमाथन का ?
अपन संतान ए ल तो दे पाथन का, हक अपन संपत्ति म ?
त, फेर छेड़ना- छाड़ना काबर कोखरो बेटी माई ल?
छेड़नाच हे त….
कइसे, ठीक हे न ?

केजवा राम साहू ‘तेजनाथ’
बरदुली, पिपरिया, कबीरधाम