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व्यंग्य

कब बबा मरही ….. कब बरा खाबो

मोर राज आवन दव, तहन तुंहर गांव के संगे संग, तुंहरो भाग जाग जही। एक बेर मोला जितावव तो सही ………? बीते पचास बछर ले, कतको मुहुं ले, इही बात सुने बर मिल चुके हे।
अइसन बोलइया कतको मुहुं ला, मउका घलो, कतको बेर मिल चुके हे। फेर, उही मुहुं ले, ये दारी नी कर पायेंव अगले दारी जरूर करहूं …….. नावा गोठ फेर निकल जथे।
अइसन मन फेर आथे तहन, हमर सरकार नी बन सकिस, निही ते, तुंहर कलयान कर देतेन कहिके, जनता ला ठग देथे।
तबले जनता, फेर उहीच ला, एक बेर अऊ अपन अगुवा बना देथे। ये दारी, केंद्र सरकार अपन नोहे अऊ ओहा तुंहर गांव के बिकास बर, पइसा नी दिस कहिके, फेर बोचक जथे।
जनता एक बेर फेर मउका दे देथे। अभू खिचड़ी सरकार म, अपने तोलगी बचाये बर मेहनत करत हन, जब हमर बहुमत के सरकार बनही, तब कर पाबोन जी तुंहर गांव के बिकास कहिके, जनता ला फेर भरमा देथे।
दुनो जगा, बहुमत लान के देखा देथे जनता हा, तब, बहाना मारे के जगा नी बांचय, तब तक चुनाव फेर आ जथे। ये दारी अवइया पांच बछर म, ओकर गांव ला सरग बनाये के खमाखम आसवासन मिल जथे। गांव के जनता निचट भोला भाला ताय, ओकर बात म, पाछू बीते समे कस फेर फंस जथे अऊ उहीच ला अपन अगुवा चुन पारथे …….।
केऊ बेर, पांच बछर नहाकगे। बिकास के बाट जोहइया बबा, पुटले मर जथे, नाती बर, हरेक पांच बछर म नावा टारगेट तै हो होथे। बबा मरगे, नाती बुढ़हावत हे। बिकास उहीच मेर फंसे हे जेकर पहिली रिहीस। चुनई फेर आवथे, उही मन, फेर टुंहुं देखावत हे। जनता मुहुं फारे, बिकास के अगोरा करत, कब बबा मरही त कब बरा खाबो, कहिके दुबिधा म परे हे।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा