Categories
कविता

बरखा रानी

बहुत दिन ले नइ आए हस,
काबर मॅुह फुलाए हस?
ओ बरखा रानी!
तोला कइसे मनावौंव?

चीला चढ़ावौंव,
धन भोलेनाथ मं जल चढ़ावौंव,
गॉव के देवी-देवता मेर गोहरावौंव,
धन कागज मं करोड़ों पेड़ लगावौंव।
ओ बरखा रानी……?

मॅुह फारे धरती,
कलपत बिरवा,
अल्लावत धान,
सोरियावतन नदिया-नरवा,
कल्लावत किसान…
देख,का ल देखावौंव?
ओ बरखा रानी…..?

मैं कोन औं
जेन तोला वोतका दूरिहा ले बलावत हौं?
मानुस,पसु,पक्छी,
पेड़-पउधा…
वो जीव-निरजीव,
जेखर जीवन,जरूरत,
सुघरई अउ सार तैं,
मैं तोर वोही दास आवौंव।
ओ बरखा रानी!
तोला कइसे मनावौंव?

केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘
बरदुली,कबीरधाम (छ.ग.)