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कविता

बरसा के दिन

टरर टरर मेचका गाके, बादर ल बलावत हे।
घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे।

तरबर तरबर चांटी रेंगत, बीला ल बनावत हे।
आनी बानी के कीरा मन , अब्बड़ उड़ियावत हे।
बरत हाबे दीया बाती, फांफा मन झपावत हे ।
घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे।

हावा गररा चलत हाबे, धुररा ह उड़ावत हे।
बड़े बड़े डारा खांधा , टूट के फेंकावत हे ।
घुड़ुर घाड़र बादर तको, मांदर कस बजावत हे।
घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे।

ठुड़गा ठुड़गा रुख राई के, पाना ह उलहावत हे।
किसम किसम के भाजी पाला, नार मन लमावत हे।
चढहे हाबे छानही में, खपरा ल लहुंटावत हे।
घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे।

सबो किसान ल खुसी होगे , नांगर ल सिरजावत हे।
खातू माटी लाने बर, गाड़ा बइला सजावत हे।
सुत उठ के बड़े बिहनिया, खेत खार सब जावत हे।
घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे।

महेन्द्र देवांगन “माटी “
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़