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बेरा के गोठ : सुखी जिनगी जियेबर छत्तीसगढ़िया सिखव बिदुर नीति

हमन सब जानथन दुवापर जुग मा हस्तिनापुर के महामंतरी महातमा बिदुर जी कृष्न भक्त रहिन। भगवान ह दुर्योधन के 56 भोग ल छोड़के बिदुर के घर भाजी साग खायबर गिस। इही महाभारत के बेरा बिदुर जी ह धृतराष्ट ल सांति अउ नियाव के सीख देवय। भलुक ओ हा नइ मानय। ओकरे सेती वो कभू सुख ल नइ पाय सकीस।बिदुर जी कहिथे सुखी जिनगी बिताय खातिर सबो मनखे ल अपन समरथ के बरोबर बूता करना चाही। नान्हे लइका, बड़े चेलिक, नोनी-बाबू, सियान, बहिनी, महतारी, कोनो होय अपन सकउक बूता करना चाही तभे सबके जिनगी ह सुखी रही सकथे। आजकाल कोनो मनखे हर दूसर ल ठेलहा बइठके बने बने खात पियत देख नइ सकय।बिदुर जी कहिथे कोनो भी परिवार ल अपन आमदनी के अनुसार इच्छा रखना चाही तभे सुख से रहि पाही। इरखा करे ले मनखे कभू सुख नइ पा सकय।




जतका बड़का चद्दर ओतका गोड़ लमाना चाही।फेर आज के मनखे अउ परिवार के दुखी होय के एकेचठन कारन आय कि ओमन अपन सेखी मारे बर उन के दून सपना देखते थे अउ पाय के उदिम करथे। बहुरुपिया बने के परयास करथे।करजा अउ उधारी बाढ़ी करके संउख ल पुरोथे फेर ये नइ समझय कि दुसर ले उधार पाय जिनीस कभू सुख नइ देवय।आजकाल यहू देखेबर मिलथे कि उधारी मा बेपारी मन जिनीस देथे कहिके गरिबहा, नौकरिहा मन घर बनायबर करजा लेथे। नवा नवा मोटर गाड़ी बिसायबर, बइठे, सुते अराम करे के नवा नवा जिनिस घलो बिसा लेथे, ताहन तगादा आथे त मुंहू लुकात फिरथे अउ जगा जगा अपन चारी करवाथे। कतको घांव यहू देखे सूनेबर मिलथे कि करजा मा लदा के फलाना ह जहर खा लिस, ढेकाना ह डोरी मा झूल गे। जौन परिवार के सुख बर करजा लेय रहिस वहू मन पाछू गारी देथे अउ दुख भोगथे। बिदुर जी कहिथे अच्छा अउ सुखी जिनगी बिताना हे तब अच्छा मनखे के संग धरेबर परही। बिद्वान मनखे संग मितानी करना चाही। सुजन मीत ह टेड़गा रद्दा मा रेंगे ले बरजथे। दुख ले निकले के रद्दा निकालथे अउ सुख दुख मा संग देथे। चोर ढोर, डाकू, गंजहा, मंदहा, इरखाहा हइतारा मन के संगती ले मानहानि, मार, डाड़, मिलथे। कहे जाथे रावन के राज मा बिभीषन भगवान राम के नांव के संगती करके सुख से रहिस अउ अयोध्या में मंथरा के संगत में रहिके केकई परिवार सहित दुख भोगिस। एकरे सेती कहे गे हावय-
“जतका चद्दर पांव पसार,सुखी जिनगी के ये अधार”

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला-गरियाबंद
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