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व्यंग्य

माफी के किम्मत

भकाड़ू अऊ बुधारू के बीच म, घेरी बेरी पेपर म छपत माफी मांगे के दुरघटना के उप्पर चरचा चलत रहय। बुधारू बतावत रहय – ये रिवाज हमर देस म तइहा तइहा के आय बइहा, चाहे कन्हो ला कतको गारी बखाना कर, चाहे मार, चाहे सरेआम ओकर इज्जत उतार, लूट खसोट कहीं कर …….. मन भरिस तहन सरेआम माफी मांगले …….। हमर देस के इही तो खासियत हे बाबू …….. इहां के मन सिरीफ पांच बछर म भुला जथे अऊ कन्हो भी, ऐरे गैरे नत्थू खैरे ला, माफी दे देथे।
भकाड़ू – माफी मांगे के काये आवसकता पर जथे भइया, माफी नी मांगतिन तभो ओकर काम नी चलतिस गा …….?
बुधारू – पांच बछर ले, बिगन माफी मागे काम चलाथे बपरा मन, अऊ कतेक दिन ले काम चलाही तेमा …………..। अरे माफी मांगना हमर सनसकिरीति आय। येला जिनदा राखना बहुतेच जरूरी हे। येहा नंदाये झिन कहिके, बपरा मन हरेक पांच बछर म सुरता देवाथे।
भकाड़ू – माफी मांगे ले, कहूं एकात कनिक फायदा घला होवत होही गा तेमा ………?
बुधारू – माफी मांगे बर बड़का बने बर परथे तभे फायदा होथे …….। तैं, कन्हो ला “ रे “ कहिके माफी मांग के देख ……. खर्री नी बांचही। अऊ बड़का मनखे बर, माफी मांगे के पाछू, जम्मो माफ …..।
भकाड़ू – मोर एक सवाल अऊ हे भइया, कोन समे माफी मांगना चाही ……?
बुधारू – पांच बछर के सिरावत बेरा म, माफी मांगना चाही। तब तक, हमर याददास्त, अतेक तगड़ा रहिथे के, हमन काकरो गलती ला, भुलावन निही।
भकाड़ू – फेर एक सवाल मोर मन म आगे हे भइया, माफी देवइया ला का करना चाही …….?
बुधारू – बिसवास के लइक ला माफ कर देना चाही …… अऊ कायेच कर सकत हन।
दूसर दिन बिहाने ले पांच बछरिया गनपति हा भकाड़ू के घर पहुंचगे। भकाड़ू सोंचिस फोकटे फोकट माफ नी करना चाही बलकी ओकर किम्मत वसूलना चाही। फेर सोंचिस, भलुक कतेक किम्मत होथे माफी के तेला आजमाना चाही।
भकाड़ू हा माफी के किम्मत देखे बर, माफी मांगत किहीस – में तोला बीते समे म, बने मनखे होबे कहिके, बिगन मांगे बोट दे पारे रेहेंव, मोला माफी देहू ………।
पांच बछरिया गनपति – तैं सहीं समझे रेहे भइया, में तोर बर कुछ नी कर पायेंव …… कहत भऊजी बर लुगरा, ददा बर धोती, नोनी बर पोलखा अऊ भकाड़ू बर दू ठिन चेपटी निकालिस। कभू देखे नी रहय बपरा हा ……. यहा ददा रे, अतेक किम्मत होथे माफी के तेला जानत नी रहय। भकाड़ू खुस होगे अऊ केहे लागिस – मांगले तोला जे मांगना हे ……..।
पांच बछरिया गनपति – मोला सिरीफ माफी दे दे भइया …..। मोला अऊ कहिंच नी चाही, सिरीफ तोर आसीरबाद चाही।
भकाड़ू ओला अपन आसीरबाद देवत, माफ करके, बुधारू ला बतावत रहय – माफीमांगे के बड़ किम्मत होथे बइहा, तै का जानबे ……. मोला फोकटे फोकट चलावत रेहे के, छोटे मनखे ला माफी नी मांगना चाही कहिके, में मांगेव, मोला बड़ अकन मिलीस जबकि, ओ बड़का मनखे हा, घोलंड के पांव पर के माफी मांगिस …… काये पइस बपरा हा ……..। जतका किम्मत हम पायेन तेकर, नख के बरोबर नी पइस बपरा हा …….।
बुधारू – माफी मांगे के अतेक बड़ किम्मत वसूल के चल दिस अऊ तैं ओला, काये मिलीस कहिथस। तोर चेपटी काली सिरा जही, लुगरा पाटा बछर भर म चिरा जही फेर पांच बछर ले तोर आसीरबाद अऊ माफी के बदोलत, माफी मंगइया हा, तोर छाती म मूंग दलही।
भकाड़ू घला जनता कस निचट भकला ताय ……. बुधारू के गोठ को जनी समझिस के निही। हमर मुड़ म नरियर कस, पथरा कचारत, मनखे ला हमूमन, पांच बछर म भुला जथन अऊ बहुत ससता म माफी दे के, पांच बछर पछताये बर, चुन पारथन ……..।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा