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कविता

बीड़ी ला सिपचा ले भइया

बीड़ी ला सिपचा ले भइया,
मन ला अपन मढ़ा ले भइया.
एती – ओती काबर जाना,
रद्दा अपन बना ले भइया.
दुनिया के सब रीत गजब हे,
पैती अपन जमा ले भइया.
जतका लंबा चद्दर हावय,
ओतका पाँव लमा ले भइया.
दुनिया ले एक दिन जाना हे,
कर करम,पुन कमा ले भइया.
कहे कबीर जग रोनहा हे,
ये जग ला हँसा ले भइया.
‘बरस’ के बुध पातर हावय,
अंतस अपन जगा ले भइया,

बलदाऊ राम साहू
9407650457
(सिपचा ले = जला लो, एती-ओती = इधर-उधर, पैती जमा ले = स्थिति मजबूत कर लो, पुन = पुण्य, रोनहा = रोने वाला, बुध = बुद्धि, पातर = कमजोर.)
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