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कविता

बीर नरायन बनके जी

छाती ठोंक के गरज के रेंगव,
छत्तीसगढ़िया मनखे जी।
परदेशिया राज मिटा दव अब,
फेर ,बीर नरायन बनके जी।।

हांस के फांसी म झूल परिस,
जौन आजादी के लड़ाई बर।
उही आगी ल छाती मा बारव,
छत्तीसगढ़िया बहिनी भाई बर।।
अपन हक ल नंगाए खातिर,
आघू रहव अब तनके जी….
छाती ठोंक के…..! परदेशिया…

आज भी गुलामी के बेढ़ी हे,
हमर भाखा अउ बोली बर।
सोनाखान के सोना लुटागे,
परदेशिया मनके झोली बर।।
खेत खेत मा गंगा ला दव,
भुंइया के ,डिलवा ल खनके जी….
छाती ठोंक के…..! परदेशिया…

झन भुलाहू छत्तीसगढ़िया,
बीर नरायन के,बलिदानी ल।
लइका लइका के मन मा जगादव,
स्वाभिमान के कहानी ल। ।
तभे आही फेर नवा बिहनिया,
छत्तीसगढ़िया क्रान्ति मा सनके जी…
छाती ठोंक के…..! परदेशिया…

राम कुमार साहू
सिल्हाटी कबीरधाम
मो नं 9977535388
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