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व्यंग्य

बोनस के फर

जबले बोनस नाव के पेड़ पिरथी म जनम धरे हे तबले, इंहा के मनखे मन, उहीच पेंड़ ला भगवान कस सपनाथे घेरी बेरी…….। तीन बछर बीतगे रहय, बोनस सपना में तो आवय, फेर सवांगे नी आवय। उदुप ले एक दिन बोनस के पेंड़ हा, एक झिन ला सपना म, गांव में अमरे के घोसना कर दीस। गांव भर म, ओकर आये के, हल्ला होगे। ओकर आये के भरोसा म, गांव म बइसका सकलागे। बोनस के सवागत म, काये काये तियारी करना हे तेकर रूप रेखा, बने लागीस। बिपछ के मन हल्ला मचाये लगीन अऊ गांव के मन ला चेताये लागीन के, तूमन धोखा म झिन रहव, येहा फकत चुनई इस्टंट आय, येहा फकत वोट बर आय। किसान मन बिपछ के नेता बर भड़कगे अऊ केहे लगीन – हमीं मन तो वोट अन, हमरे मन बर जोजना आवत हे त फायदा तो हमींच मनला मिलही ….। बिपछ के मनखे मन के बोलती बंद होगे।
दूसर दिन बोनस के पेड़, गांव के गोड़ धोवा तीर जागगे…..। जम्मो मनखे, ओकर अबड़ पूजा अरचना करे लागीस। कुछ दिन म, बिहिनिया बिहिनिया, खेत जावत मनखे मन ला, उही पेड़ म नाननान फूल दिखे लागीस। गांव के मनखे मन बड़ परसन्न रहय। देखते देखत फर आगे, पाकगे, टपके लइक होगे। बोनस के फर ला लबेदा मारके, गिराये के सोंचिन। फेर अतक चेम्मर ढेंठा रहय ओकर के, कतको ढेला अऊ लबेदा म नी गिरीस। तब गांव के सरपंच बतइस के, सरकार के मनखे जब्भे ये पेड़ ला हलाही, तब्भेच, फर, टपकही। तब जम्मो झिन, अपन अपन पात्रता के हिसाब ले, सकेल लेहू।




तै समे म, सरकार के परतिनिधि अइन। गांव के जम्मो किसान मन, अपन ओली फयलाये, बोनस के पेड़ तरी, फर झोंके बर, तियार खड़े रहय। सरकारी मनखे हा पेड़ हलाये के पहिली, भासन देवत बतइस के, ये फर हा बीते बछर के फर आय जेहा, केंद्र के खातू के अभाव म, नी फर पइस। ये बछर, उही खातू ला करजा कर के बिसाये हन तब, ये पेड़ म फर अइस हे। हमर सरकार हा तुरते, तूमन ला, तुंहर उचित हक देके, अपन जुम्मेवारी निभावत हे। सब झिन थपड़ी पीटे म मगन होगे। एती पेड़ हालथे, टपाटप फर गिरत हे, सरकारी मनखे के संग म आये, कोचिया सगा मन, सटासट बिन डरीन। भासन सिरावत सरकारी मनखे किथे – फर गिरना सुरू होगे हे, अपन अपन भाग ला, रपोट लेवव। तब तक, लदलद ले फरे पेड़ खाली होगे रहय। जइसे तइसे थोर बहुत पइन। कारयकरम झरे के पाछू, किसान मन, सरकार करा सिकायत करे बर, अमर गिन। सरकार किथे – बोनस के पेड़ ला तुंहर गांव म लगाये हन, तुंहर आगू म हलाये हन अऊ तूमन फर ला नी रपोट सकहू, त हमर का दोस……। किसान मनके बोलती बंद होगे। सरकार हा किसान मन ला सनतावना देवत बतइस – पेड़ ला तुंहरे गांव म छोंड़ देथन। ये बछर, जतका फसल बेचहू, तेकर हिसाब से, तूमन अपन अपन हिस्सा ला बटोर लेहू।
किसान मन चुचुवागे …….। किसान मन जान डरीन के, ओमन फकत थपड़ी पिटई म मातगे रिहीन, तेकर सेती, ओकर भाग के बोनस फर ला, कन्हो अऊ लेगगे। ये पइत, अइसन गलती नी करे के, किरिया खा डरीन। ये बछर पानी नी गिरीस, फसल चरन्नी होगे, दुकाल परगे। अपने खाये के पुरतन नी होइस, सरकार ला काये बेचय। किसान मन समझय के, बोनस के पेड़ तभे फरथे जब फसल बेचाथे। फेर उंकर समझ म गलती होगे, अतेक दुकाल म घला, बोनस के पेड़ हा लटलट ले फरे रहय। कन्हो ला यकीन नी होइस। किसान मन सोंचीन, हो सकत हे पाछू बछर म, बोनस बंटई के घपला के सेती, बोनस के पेंड़ ला हमर उप्पर दया आ गिस होही, तेकर सेती, बिगन फसल बेंचे फरे हे।
फर पाकगे, सरकारी मनखे पेड़ हलाये बर पहुंचगे। किसान मन, पेड़ तरी, ओली खोल के खड़े होगे, फर टपाटप गिरत हे फेर ये दारी सहींच म फर, ओकरे हिस्सा म जावत रहय जेमन, सरकार ला अपन फसल बेंचे रहय। गांव के पटवारी, गराम सेवक, पंच सरपंच अऊ सरकार के कार्यकरता मन के झोली, देखते देखत भरागे। दुबारा धोखा खागे किसान। ओकर अंचरा आजो सुक्खा ………। चुनई के घोसना संग, पेंड़ उखनगे अऊ जावत जावत किसान मनला बतइस के, मोर फर के सुख तुन्हर नसीब म न कल रिहीस, न आज हे, न काली रहि। मोर फर कोचिया बर आये, बियापारी बर आये अऊ पेंड़ के हलइया अऊ ओकर संगवारी मन बर आवय। तूमन गलत समझथव के, येहा वोट बर आय, मोर फर हा सिरीफ वोटर बर आय, तूमन सिरीफ वोट आव। नावा चुनई म तहूंमन, वोटर बनव, तुन्हरों झोली म कुछ न कुछ आबे करही। किसान मन, बोनस के पेंड़ के बात ला, कतका समझिन, भविस म पता चलही ….।

हरिशंकर गजानंद देवांगन, छुरा
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