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गज़ल

बलदाऊ राम साहू के छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

1

जेकर हाथ म बंदूक भाला, अउ हावै तलवार जी,
उन दुसमन के कइसे करबोन, हमन हर एतबार जी।

कतको झन मन उनकर मनखे, कतको भीतर घाती हे,
छुप – छुप के वार करे बर, बगरे हे उनकर नार जी।

पुलवामा म घटना होईस, फाटिस हमार करेजा हर,
बम फेंक के बदला लेयेन , मनाये सुघर तिहार जी।

कायर हे, ढ़ीठ घलोव हे, माने काकरो बात नहीं,
जानथे घलो हर बखत, होथे हमरे मन के हार जी।

जिनकर हाथ गौरव लिखे हे, उनला तुमन नमन करौ,
देस खातिर परान दे बर, हे सैनिक हमर तइयार जी।

अभिनंदन के अभिनंदन हे, कहि के खुसी मनावत हन,
पाक के नापाक इरादा, अब हो गे बंठाधार जी ।

जेकर=जिनके, करबोन=करेंगे, ना,=बेल, करेजा= कलेजा, हर बखत=हर बार, बंठाधार =बंटाधार।

2

अगुवा नाँगर जेकर हाथ मा, धरे हे तुतारी ला,
हमला तो सुधारे परही, बिगड़े धुरवा-बारी ला।

जउन मन करथे सोच समझ के,आगू उही बढ़थे,
खेलथे भैया उही मन हर, दूसर नवा पारी ला।

अपन काम म धियान देवौ जी, पाछू ल बिसराओं तुम,
कौन पतरी मा छेद करीन हे, छोड़ो निंदा-चारी ला।

काम करथ हो बने-बने, ओकर मन मा खुसी हावै।
एके चिंता मन मा हे, कइसे छुटबो उधारी ला।

भीतरी म का-का होत हे, ‘बरस’ कइसे जानबे तैं,
सुरुज कहत हे एके घुट म, पी जाबोन अँधियारी ला।

3

दू टप्पा बोल लेतेस, भाखा अमोल हे।
अलग-अलग देस के, अलग तो भूगोल हे।

किंजर-फीर के पंछी , उही डारा आथे,
उहिचे हे दाना-पानी, रहे बर खोल हे।

मइके के मया हर, कब्भू भूलाये नहीं ।
संगे-सँगवारी के, मीठ अ ड़बड़ बोल हे।

परदेसी के बात ल, कइसे पतियावन हम,
जतर-कतर रेंगत हे, नियत डाँवाडोल हे।

दू टप्पा =दो शब्द, किंजर फीर के =घूम फीर कर, उहिचे =वहीं, डा,=डाल, कब्भू =कभी भी, पतियावन =विश्वास करें, जतर-कतर =इधर-उधर , रेंगत हे =आते-जाते हैं

4

कतको करे सरकार हर,
हपट के मरे सरकार हर।

हमर बर बगबग बरे जी,
सब दुख हरे सरकार हर।

करजा छुटे, चँऊर बाँटे,
सब ले लड़े सरकार हर।

हमला का करना हे जी,
सरे कि जरे सरकार हर।

हम बइठे-बइठे खावन,
जम्मो करे सरकार हर।

बलदाऊ राम साहू