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कविता

कलेवा

ये ह, छत्तीसगढ़ के कलेवा आय। तिहार बार के रोटी-पीठा आय॥ अइरसा, अंगाकर रोटी, इडहर, कढ़ी। करी लाड़ू, कोचईपाग, कोचईपीठा, पपची॥ खस्ता, खाजा, खुरमा, खुरमी। गुलगुला, गुरहाचीला, गुरहा भजिया, कुसली। चीला नूनहा, चौसेला, घुघरी, ठेठरी। डुबकी, बफौरी, डुबका, दूधफरा। तुमापाग, तिलगुझिया, तसमई, कतरा। दुधकुसली, देहरौरी, तुमा तसमई, दही बरा॥ नमकीन, नूनहाकरा, नूनहाचीला, पूरनपूरी। पापड़ी, पापर, […]

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आगे-आगे बसंत के महीना

आगे-आगे बसंत के महीना झूमो नाचो रे संगी जहुंरिया। बइसाख-जेठ म धरे झांझ-झोला पानी बिना तरसे सबके चोला। डाहर चलईया हा खोजत हे छैहा। धुर्रा के उड़े बड़ोरा। आगे… अगहन-पूस ठिठुरन महीना खेती किसानी म भदराये हे धनहा। कोलिहा बपुरा हा देवत हे पाहरा भुर्री तापत बइठे सियनहा। आगे…। मांग-फागुन बसंत के महीना सरसो ह […]

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पुरखा के थाथी

पुरखा के थाथी म तुंहर, अंचरा में गठिया के रखो मर जाहू का ले जाहू गोठिया-बतिया के रखो देखा न ददा तोर झोरा ल काय-काय खाऊ धरे हस भग जा मोर मेर कुछु नइए काबर पाछू मोर परे हस टमड़-टमड देखत हावंव, लइका बर लेहस का तो जेन चीज गड़े हे ओंटा-कोंटा करा, ठऊर ठिकाना […]

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आथे गोरसी के सुरता

पागा बांधे बुढ़गा बबापहिरे पछहत्ती चिथरा कुरता।पियत चोंगी तापे खनीयाआथे गोरसी के सुरता॥नंदागे गोरसी नंदागे चोंगी,मन होगे बिमार तन होगे रोगीबदल गे दुनिया बदल गे बारबदल गे बखरी बदल गे खार।नंदागे जाड़ ठंडानंदागे तपई बरई भुर्रीनंदागे झिटी बिनय काड़ी।नंदागे भइंसा बैला गाडी॥अब्बड़ दूर चल दीस गांवबिसरागे हमर आजा पुरखानइए चिमनी दीया के दिनआथे गोरसी के […]

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गोरसी

अघन पूस के जाड़ तन ल कंपाथे। गोरसी के आंच ह तभे सुहाथे॥ हवा ह डोलय सुरूर-सुरूर। पतई पाना कांपय फुरूर-फुरूर॥ रुस-रुस लागय पातर गुलाबी घाम। जूड़ पानी छुए ले, कनकनावत हे चाम॥ लईका, सियान, जवान सबो मन भाथे। गोरसी के आंच ह तभे सुहाथे॥ गरीब बर नइए बने ओढ़ना- बिछाना। दांत किटकिटाये गा, नइए […]

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भले मनखे ले जग म सुख-सांति जरूर आही

बिगडे समाज अउ राजनीति ल कउन सुधारही? अपन मं सब उलझे हें त जग सुधारे कउन आही? आधा रात के बारा बजे मोर टूरा खखुवाइस, कविता लिखत देख के मोर बर बड़-गुर्राइस। अइसने मेहनत करके कुछु दुकान ल चलाते॥ त कतका कन पइसा कमाके सुख ल पाते॥ हम गरीब के पीरा मं काबर कउन आही? […]

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आगे दिन जाड़ के

डोकरी दाई बइठे बिहना ले, गोरसी ल पोटार के झांपी ले निकार कमरा डेढ़ी, आगे दिन जाड़ के खटिया ले उठई ह, सजा कस लागत हे तरिया के पानी ह, रहि-रहि डरहुवावत हे कथरी अउ ओढ़ना ह, गाब सुहावत हे एक लोटा ल चाहा ल बबा, अकेल्ला ढरकावत हे खटिया म ढलगे नोनी देखत हे, […]

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सतनाम सार हे

झन काहा तोर मोर, मतलभिया संसार हे। भज ले रे सतनाम। इहां सतनाम सार हे॥ झन बिसराव ठीहा ल, जब तक हवे सांस ह। सत के रद्दा म रेंगव, कहि गे हे घासीदास ह॥ जे देखाथे रद्दा सबला ऊंखरे जय जयकार हे। भज ले रे सतनाम… जाना हवय सबो ल इहां ले ओसरी पारी। दाई-ददा, […]

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डॉक्टर अउ कवि

मैं हरखराम पेंदरिया ‘देहाती’ गेयेंव डॉक्टर के पास डाक्टर मोला देख के अड़बड़ परसन्न होगे सोचिस शगुन बढ़िया दिखते हे आज रिटायर्ड हेड मास्टर आय अड़बड़ रुपया-पईसा हे येकर पास। मोला देख के डॉक्टर ह पूछिस- का तकलीफ हे तोला खास अतका सुनेंव तहां ले में ह काली मे ह एक ठक नवा कविता लिखे […]

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जाड़ के घाम

सुरूर-सुरूर हवा चलय, कांपय हाड़ चाम। अब्बड़ सुहाथे संगी, जाड़ के घाम॥ गोरसी के आगी ह रतिहा के हे संगी। ओढ़ना-जठना, गरीबहा बर तंगी॥ भुर्री अउ अंगेठा, अब सपना होगे भाई। लकड़ी अउ छेना बर, नई पुरय कमई॥ गरीबहा बर बदे हे, बिपत के नाम। अब्बड सुहाथे संगी, जाड़ के घाम॥ अंगाकर रोटी ल, चटनी […]