फुटहा दरपन हरियर छइहाँ हर उदुप ले हरन हो गे तपत, जरत-भूँजात पाँव के मरन हो गे। घपटे रहि जाथे दिन-दिन भर अँधियारी अँजोर के जब ले डामरीकरन हो गे। कुकुर मन भूकत हवें खुसी के मारे मनखे मनखे के अक्कट दुसमन हो गे। जउन गिरिस जतके, ओतके उठिस ओ हर अपत, कुलच्छन के पाँव […]
Category: गज़ल
पहाड़-कस गरू हवय अँधियारी रतिहा टोनही बन गे हे एक कुआँरी रतिहा। बने रद्दा ह बने नइ लागय मनखे ला कोनो ला नइ दय कोनो चिन्हारी रतिहा। भिम-अँधियार के गुन गावत हे गुनवंतिन अँजोर के करथय बहुंते चारी रतिहा। अँगठी फोरथे दुखाही ह चच्चर ले सरापथे दिन ला, देथय गारी रतिहा। अब्बड़ रोवत हें खोर-खोर […]
पता नइये कखरो बिजहा ईमान के पता नइये कखरो सोनहा बिहान के पता नइये। घर-घर घपटे हे अँधियारी भैया गा सुरुज हवे, किरन-बान के पता नइये। पोथी पढ़इया-सुनइया पढ़थयँ-सुनथयँ जिनगी जिये बर गियान के पता नइये। करिस मसागत अउ खेती ला उजराइस किसान के घर धन-धान के पता नइये। अभागिन भुइयाँ तैं हर झन खिसिया, […]
पेट सिकन्दर हो गे हे मौसम अजगर हो गे हे। निच्चट सुक्खा पर गे घर आँखी पनियर हो गे हे। हँसी-खुसी के रद्दा बर बटमारी घर हो गे हे। मया-दया के अचरा के जिनगी दूबर हो गे हे। दुसमन तो दुसमन होथे मितान के डर हो गे हे। पसु-धन के चारा चर के धन-पसु हरियर […]
मन रोवत हे मुँह गावत हे का कहिबे गदहा घलो कका लागत हे का कहिबे? अब्बड़ अगियाए लागिस छइहाँ बैरी लहँकत घाम ह सितरावत हे का कहिबे? खोर-खोर म कुकुर भूकिस रे भइया घर म बघवा नरियावत हे का कहिबे? छोंरिस बैरी मया-दया के रद्दा ला सेवा ला पीवत-खावत हे का कहिबे? चर डारे हे […]
डॉ. संजय दानी के छत्तीसगढ़ी गजल
होगे फ़ागुन हा सर पे सवार ‘जोहार ले जोहार ले जोहार। नरवा खलखल हांसत है,नवा नवा फ़ूटत है धार्।(जोहार ले – – – – बरदी के सुत गे गोसैया,सन्सो में हवय खेत खार। जोहार ले – – – – दिल हा चना के जवान है,औ राहेर लगत हे कचनार। जोहार ले- – – – धान […]
देखतेच हौ बाती तेल सिराय अमर देखतेच हौबुझागे हवय दियना हमर देखतेच हौछोड़ किसानी अफसर बनिहौं कहिके टूरा लटक गीस अधर देखतेच हौदूध गईया के मूंह लेगिस पहटिया मरिचगे बछरू दूध बर देखतेच हौचांउर दार के दाना नइहे घर मा लांघन भूख हे हमर बर देखतेच हौघर के भीतर चोर अमाय कर कहिबे सरमा ला […]
छत्तीसगढ़ी गज़ल – हमरे गाल अउ हमरे चटकन
हमरे गाल अउ हमरे चटकन बांध झन बिन गुड़ के लड़वा सिरिफ बानी म घर हजारों के उजर गय तोर सियानी म। डहर भर बारूद हे बगरे सुन्ना घर कुरिया जिनगी जीयत हावय जइसे काला-पानी म। जंग ह जंगल ले सरकत सहर तीर आ गय लाश के गिनती होवत हे राजधानी म। रूई जइसे बिरथा […]
छत्तीसगढ़ी गज़ल – हम परदेशी तान ददा
मुरहा पोटरा आन ददा, लात ल तंय झन तान ददा। पानी टेक्टर भुइया तोर, हमला नौकर जान ददा। छेरी पठरू गाय गरू, तोरेच आय दइहान ददा। पांव परे म हम अव्वलदेन करेजा चान ददा। चमकाहू तलवार तभो, करबो हम सनमान ददा। तुंहर असन संग का लड़बो, हमरे हे नकसान ददा। मालिक आंही बाहिर ले, इंहा […]
सुरूज ला ढि़बरी देखाए देबे करबे करम तो कमाये देबे,बारी म बीहन जगाए देबे।बदरी ले पानी उतर आही,जंगल म बंसी बजाए देबे।गंगा जल गांव म छींच देबे,दुखला रमायन सुनाये देबे।धुंधरा म हपट उपट जाही,सुरूज ला ढि़बरी देखाए देबे। शायरे शहर यादव ‘विकास’ ब्रम्हपथ, अम्बिकापुर, छ.ग. मर जवान, मर किसान ए देस के बिधान अलग हे, […]