संपूर्ण खण्ड काव्य सेव करें और आफलाईन पढ़ें
Category: गीत
छत्तीसगढ़ के माटी सेव करें और आफलाईन पढ़ें
लिखे-पढ़े के सुख कोनो भी देस-राज के तरक्की के मूल म भासा. संस्कृति अउ जनम भुंई के महात्तम माने जाथे। एकर बिना कोनो भी किसम के विकास प्रगति बढ़ोत्तरी अकारथ होथे। छत्तीसगढ़ राज नई बनेरिस वो समे बीर नरायेन सिंह के ए बीरगाथा सुनके नौजवान मन के मन म भारी जोस अउ आत्म गौरव के […]
दिया बन के बर जतेंव
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥ अंधियारी हा गहरावथे , मनखे ला डरूहावथे । चोरहा ला उकसावथे , एकड़ा ला रोवावथे ॥ बुराई संग जूझके , अंगना म तोर मर जतेंव । दाई ! तोर डेरौठी म दिया बन के बर जतेंव ॥ गरीबी हमर हट जतिस , भेदभाव […]
छत्तीसगढ़ी के पीरा
गवां गेंहव अपने घर म बनगे मंय जिगयासा हौं खोजत हौं अपन आप ल मंय छत्तीसगढ़ी भासा औं। सहर म पूछारी नइ हे गांव के मन भगवारत हे कोन बचाही मोला संगी अंगरेजी अडंगा डारत हे कहुं कति ठऊर नइ हे ढुलत जुआ के पासा औं खोजत हौं अपन आप ल मंय छत्तीसगढ़ी भासा औं। […]
गीत-“कहां मनखें गंवागे” (रोला छंद)
दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। जंगल झाड़ी खार, डोंगरी मा जा जाके । सहर सहर हर गांव, गीत ला गा गाके ।। इहां उहां खोज, मुड़ी हा मोर पिरागे । […]
भुंइया के भगवान
मोर छत्तीसगढ़ के किसान जेला कहिथे भुंइया के भगवान | भूख पियास ल सहिके संगी उपजावत हे धान | बड़े बिहनिया सुत उठ के नांगर धरके जाथे | रगड़ा टूटत ले काम करके संझा बेरा घर आथे | खून पसीना एक करथे तब मिलथे एक मूठा धान | मोर छत्तीसगढ़ के किसान जेला कहिथे भुंइया […]
मोर छत्तीसगढ़ के भुंइया
मोर छत्तीसगढ़ भुंइया के,कतका गुन ल मैं गांवव | चन्दन कस जेकर माटी हाबे,मैं ओला माथ नवांवव || ये माटी म किसम किसम के, आनी बानी के चीज हाबे | अइसने भरपूर अऊ रतन, कोनो जगा कहां पाबे || इही में गंगा इही में जमुना, इही में हे चारो धाम | चारों कोती तेंहा किंचजरले, […]
छत्तीसगढ़ी कुण्डलियां
छत्तीसगढ़ी हे हमर, भाखा अउ पहिचान । छोड़व जी हिन भावना, करलव गरब गुमान ।। करलव गरब गुमान, राज भाषा होगे हे । देखव आंखी खोल, उठे के बेरा होगे हे ।। अड़बड़ गुरतुर गोठ, मया के रद्दा ल गढ़ी । बोलव दिल ला खोल, अपन ये छत्तीसगढ़ी ।। भाखा गुरतुर बोल तै, जेन सबो […]
चिरई बोले रे
घर के छान्ही ले चिरई बोले रे… घर के दाई अब नइ दिखे रे… अंगना ह कईसे लिपावत नइ हे…. तुलसी म पानी डरावत नइ हे…. सूपा के आरो घलो आवत नइ हे…. ढेकी अउ बाहना नरियावत नइ हे…. जांता ह घर में ठेलहा बइठे हे…. बाहरी ह कोंटा म कलेचुप सुते हे…. चूल्हा म […]