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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : मितानी

इही ल कहिथे मितानी संगी बनथे जउन ह  छानी  संगी। दुख के घड़ी म आँसू पोंछय ओकर गजब कहानी  संगी। अनीत-रद्दा म जब हम रेंगन कहिथे करु-करु बानी  संगी। झन राहय टुटहा कुरिया  फेर राहय गजब सुभिमानी  संगी। जिनगी म कतको बिपत आये करय  झन  ओ  नदानी  संगी। बलदाऊ राम साहू  9407650458

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : सत्ता धारी

जउन  हर  सत्ता  धारी  हे। उही  मन  तो   बैपारी   हे। जिनकर डमरु बजात हावै, सही  मा  ओ  ह  मदारी हे। बिरथा  बात  मुँहू  म आथे, उही  ला  कहिथे  गारी  हे। जउन   हर  पी  माते  हावै उनकर घर  म  कलारी  हे। दुरपती ला सरबस  हारिन, उही मन सच म  जुवारी हे। कलारी=शराब की दुकान –बलदाऊ राम […]

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : कइसे मा दिन बढ़िया आही

कइसे मा दिन बढ़िया आही। कइसे   रतिहा  अब  पहाही। गाए बर  ओला  आय  नहीं, कइसे ओ हर ताल मिलाही। बिन सोचे काम जउन हर करही, ओ हर पाछू  बड़  पछताही। अब तो  मनखे  रक्सा  बनगे, मनखे के जस कौन ह  गाही। साधु के संग जउन हर करही, ओ मनखे हर सरग म  जाही। पखरा पूजे  […]

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

झन फँसबे माया के जाल, सब  के  हावै  एके  हाल। कतको   तैं   पुन   कमाले, एक दिन अही तोरो काल। कौनो   इहाँ  नइ  बाँचे  हे, बड़का हावै जम के गाल। धन-दौलत  पूछत हे कौन, जाना हे  बन  के  कंगाल। कौन देखे  हे  सरग-नरक, पूछौ तुम मन नवा सवाल। अंत समे मा पूछ  ही कौन, कतका हावै […]

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Sargujiha गज़ल

सरगुजिहा गजल

ढेरेच्च गुमान भरल, मनखे कर जात । तेकर सेथी बिगडिस, मनखे कर जात ।। धरती कर रेंगइया, तरई ला माँगे। । चलनी मा पानी भरे, मनखे कर जात।। नदिया ला दाई कहे, चन्दा ला मामा। दूनों कर नास करिस, मनखे कर जात।। सूते घनी जागत, जागत घनी सूते। रात-दिन कलथत हे मनखे कर जात।। चलती […]

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

आँसू के कीमत तैं का जनाबे। प्रेम- मोहब्बत तैं  का  जानबे। झगरा हावै धरम अउर जात के, हे असल इबादत तैं का जानबे। आँसू  पोंछत  हावै  अँछरा  मा, दुखिया के हालत तैं का जानबे। सटका बन के  तैं  बइठे  हावस, हे जबर बगावत  तैं  का जानबे। हावै फोरा जी जिनकर  पाँव  मा, उन झेलिन मुसीबत […]

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

सोंचत-सोंचत रहिगेन हमन भूकत,  उछरत,  घूमत  हावै,  गाँव  के  मतवार  मन, लाँघन, भूखन बइठे हावै, कमिया अउ भुतियार मन। राज बनिस नवा-नवा, खुलिस कतको रोजगार  इहाँ, मुसवा कस मोटागे उनकर, सगा अउ गोतियार  मन। साहब, बाबू, अगुवा मन ह, छत्तीसगढ़ ल चरत हावै, चुचवावत सब बइठे हे, इहाँ  के  डेढ़  हुसियार  मन। पर गाँव ले […]

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का जनी कब तक रही पानी सगा

का जनी कब तक रही पानी सगा कब तलक हे साँस जिनगानी सगा आज हाहाकार हे जल बूँद बर ये हरय कल के भविसवाणी सगा बन सकय दू चार रुखराई लगा रोज मिलही छाँव सुखदाई हवा आज का पर्यावरण के माँग हे हव खुदे ज्ञानी गुणी ध्यानी सगा सोखता गड्ढा बना जल सोत कर मेड़ […]

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गजल : दिन कइसन अच्छा

दिन कइसन अच्छा आ गे जी। मरहा खुरहा पोक्खा गे जी ।। बस्ती बस्ती उजार कुंदरा महल अटारी तना गे जी ।। पारै हाँका हाँसौ कठल के सिसका सिसका रोवा गे जी ।। पीए बर सिखो के हमला अपन सफ्फा खा गे जी।। हमला देखावै दरपन उन मुँह जिन्कर करिया गे जी ।। कोन ल […]

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हमला तो गुदगुदावत हे, पर के चुगली – चारी हर : छत्‍तीसगढ़ी गज़ल

1 जंगल के तेंदू – चार नँदागे, लाखड़ी, जिल्लो दार नँदागे। रोवत हावै जंगल के रूख मन, उनकर लहसत सब डार नँदागे। भठगे हे भर्री – भाँठा अब तो, खेत हमर, मेंढ़ – पार नँदागे। का-का ला अब तैं कहिबै भाई, बसगे शहर, खेती-खार नँदागे। गाड़ी हाँकत, जावै गँवई जी, गड़हा मन के अब ढार […]