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गोठ बात

नान्हे कहिनी – ढुलबेंदरा

कका! एसो काकर सरकार आही ग?’
‘जेला जनता जिताही तेकरे सरकार आही जी’
‘तभो ले तोर बिचार म का जमत हे?’
‘मोर बिचार म तो कन्हो नी जमत हे। जेला भरोसा करके बइठारथन उही हमर गत बिगाड़ देथे।’
‘फेर एक ठ बात अउ पूछना रिहिस कका?”
“पूछ रे भई! आ मोर पीठ म बैताल असन लटक जा।”
‘ते नराज होगेस कका! फेर बताएच बर लागही तोला।’
पाछू घनी हमन फलाना नेता के केनवासिंग म भीडे रेहेन गा। फेर एसो वोहा ढेकाना पाल्टी म चल दिस।’
ओमन अइसन काबर करथे ग? अपन नहीं त हमर इज्ज़त के धियान रखतिस। अब बता भला! एसो चिन-पहिचान वाला मन ल का जुवाब दुंहू।
कका ह कथे-‘तें ह ढुलबेंदरा मन के चक्कर म मत पड रे बाबू! नेता मन ह कभू अपन जुबान के पक्का नी रहय। ओला जेन समय जेकर कोती ले फयदा दिखथे ओकरे कोती रेंग देथे। तें उंकर पाछू म दउडत अपन रोजी-मजूरी अउ चिन-पहिचान संग अपन संबंध ल झन बिगाड़।’
कका के बात ल सुनके ओहा थे- “सिरतोन काहत हस कका! अउ तुरते फलाना पाल्टी के अपन घेंच म अरोय गमछा ल निकाल के फेंक दिस अउ चलते बनिस।

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा)