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व्यंग्य

कोउ नृप होउ, हमहि …

हमर राम राजा बनही, ये सपना हा आज के नोहे , तइहा तइहा के आए! त्रेताजुग म, जम्मो तियारी कर डारिन,फेर राम ल राजा नि बनाए सकिन कोन्हो, अउ दसरथ सपना देखत दुनिया ले बिदा घला होगिस! उहां के जनता के चौदा बछर, सिरिफ अगोरा म बीतगे! राम राजा बनही, त ऊंखर समसिया के निराकरन होही, इंखर दुख दरद गोहार ल सुनही, इही आस अभू तक संजोए राखे हे जनता! तभे हर बखत राम ल राजा बनाए के कोसिस करे जाथे! पर राम कोन जनी कहां लुकाहे! अब परस्न ये हे वासतव म – राम कती हे? राम कोन आए?
त्रेता जुग म चारों डहर तराहि तराहि माचे रहय! राक्क्षस मन के भय अउ आतंक के बीच जिये बर मजबूर रहय जनता! भगवान पुकार ल सुन डारिस! दिन – तिथी माढहे के तियारी होए लागिस! तिथीमन म राम ल जनम दे के होड़ माचगे! एकम केहे लागिस – मोर दिन म परगट हो जावव परभू, मय चंदरमा दरसन तिथी आंव! द्वितीया किहीस – मोर म परगट हो जावव परभू, मय बड़े तिहार भाई दूज हरंव! तृतीया बोलिस – मेहा अकक्षय तृतीया, हरियाली तीजा हरंव परभू, मोर बड़ महिमा हे, मोर म परगट हो जावव! चऊथ केहे लागिस- मेहा गनेस चऊथ, सकट चऊथ आंव, मोर म परकट हो जावव! मे नाग पंचमी, रिसी पंचमी आवंव, मोर म परगट हो जावव – पंचमी केहे लागिस! छट कहां मुहू बांध के रहि – मय कमरछट आंवव, मोरो बड़ महिमा हे मोर म परगट हो जावव! महूं कुछू कमती नइ अंव भगवान – संतान सप्तमी आंवव मोर म परगट हो जावव –सप्तमी के येदे गोठ ल सुनके, अस्टमी घला उमढ़ गे – मय दुरगा अस्टमी, बड़े जिनीस तिहार, मोर बड़ महिमा हे, मोर म परगट हो जावव परभू! नम्मी के बेरा अइस! कलेचुप बइठे रहय, कुछु हुंके न भुंकय, मोठ मोठ आंसू बोहावत रहय आंखी डहर ले! भगवान ओखर तीर म गीस, डेना धरके उठइस अउ पूछिस – तोर का महिमा हे, तैं काबर रोवत गावत हस? कहींच जवाब नि दिस! भगवान समझ गिस अऊ केहे लागीस, जेन पहिली ले भरे हे तेमे, मोला नइ जाना हे, इही खाली हे, इही अभिमान ले दूरिहा हे, इंहे परगट होना हे । अऊ अपन आए के दिन तिथी के घोसना कर दिस! तब भगवान के रामावतार चईत महीना के अंजोरी पाख के नम्मी तिथी म होगिस!
ये नम्मी, हर बछर आवत हे, फेर राम नि आवत हे अभू! राम काबर जनम नि धरत हे अभू ? का हमर कोसल्या महतारी करा इनला बियाये के छमता नि बांचे हे? का हिरदे ले पुकारने वाला जीव नइये ? का धरती दाई के कोरा केवल अभिमानी मन ले पटागे ? हमर महतारी के कोख ल काए सरापा लगे हे? राम अभू काबर जनम नि धरत हे? सही बात ये आए मोर भाई, राम अभू पइदा नि होए, राम बनाए जाथे! आज राम कोने ? रा माने रास्ट अउ म माने मंगल करने वाला! एखर मतलब ये – जे मनखे रास्ट के मंगल करही तिही राम आए! पर ये रास्ट के मंगल करइया कोन जनी कती सपटे लुकाए बइठे हे! कोन हमन ल गलती कराके, राम के जगा दूसर ल राजा बनाए बर घेरी बेरी गलती करावत हे? जब होथे तब, राम ल राजा बनाए बर या राजा ल राम के दरजा दे बर अउ राम के करजा बोहाए बर, हमन अपन फरज निभाथन! पर इही राम, कभू रावन बनके हमर दई बहिनी के ऊप्पर नजर गड़ाथे अऊ अपन सइत्ता जुड़ाथे, कभू मेघनाथ बन अपन चीज बस अउ ताकत म बड़होत्तरी करथे, कभू विभीसन बन पीठ म छुरा भोंकथे, त कभू कुम्भकरन बन हमर समसिया तनी ले मुहू मोर, सुत जथे! सीता महतारी ल बजार म खड़ा कर दें हे बइरी मन! कोन दोसी हे एकर बर?
अजोध्या ल दुलही कस सजावत रहय! काली पूरा परदेस म अवइया दिन म तिहार मनाए के तियारी होवत रहय! जम्मो मनखे के उछाह अउ खुसी के ठिकाना नि रिहीस! पर उंहीचे एक जीव अइसे घला रहय, जेकर पेट म दरद सुरू होगे! राम के राजतिलक के पहिली संझाती के समे के किस्सा आए एहा! जम्मो, ये बेरा के अगोरा म, रंग रंग के कपड़ा –ओढ़ना के बेवस्था म लगे रहय, त मंथरा नाव के दासी एला बिगारे के चक्कर म परे रहय! वाजिम म सुख के सुरूज न तब उगिस, न अभू! मंथरा सुफल होगे अपन चाल म! कैकेयी के नस नस ले वाकिफ, मंथरा विख बगराए म कामयाब होगिस! केवल समाज म अबेवस्था फइलाके, तिड़ी-बिड़ी करना ओकर काम रिहीस , ओला एखर ले कोन्हो बहुत फायदा या नकसानी नई रिहीस, तभे तुलसीदास जी मंथरा के मुहूं ले कउहइन – कोउ नृप होउ हमहि का हानि! अउ होइस घला अइसने!
रामचरित मानस मे, जम्मो पाठ करइया के, बिदाई के जिकर हाबय! फेर इही बिदा नि होइस पिरथी ले! अभू घला जियत हे एहा! भाई ल भाई ले अलग बिलग कर झगरा झंझट सुरू कराके,ऊंकर बीच मनमुटाव पइदा करे म सुफल मंथरा, आज तक उही धरम करम म लगे हाबय! फरक अतके हे वो समे एके सरीर रिहीस, अभू कई ठिन सरीर बनाए हाबय! अउ कतको के बिचार म खुसर के पिरथी ल बरबाद करत हे! इही मंथरा रामराज्य के सपना के बीच म बाधा बन के ठाड़हे अभू तक, तेकर सेती राम राजा नि बन सकत हे! वो दारी एके घांव सपना टूटे रिहीस,अब हर पांच बछर म छले जावत हाबन हमन! वो समे राम के नाव ले भरत जइसे इमानदार नियावप्रिय मनखे,राजा बनके, जनता ल सुख दिस, अभू अइसन गुनी मनखे सत्ता- कुरसी के चउखट ल नहाके नि सकय! ये खेल म अभू घला, मंथरा परभावसाली हाबे! अभू मंथरा के कतको रूप हाबे! वाजिम म जनता च कैकेयी आए, जे अभू तक छले जावत हे मंथरा ले! जनता छटपटात घला हे, इंखर चंगुल ले निकरे बर! पर जब तक मंथरा ताकतवार रही, रामराज्य के कल्पना केवल सपना तक सीमित रही!
एखर पाछु एक कारन यहू हे – राम जब बनवास ले वापिस अइस त गंगा किनारे कुछ मनखे मन ऊंखर अगोरा करत मिलिस! लोगन बतइन – जबले तूमन बनवास गे हव तब ले अभू तक उइसनेच ठाढ़हे हे! कारन पता करिस , त पता चलिस – एमन अजोध्या के मनखे हरे! भगवान किहीस तूमन काबर ठाढ़े हव अभू तक! तिहीं केहे रेहे भगवान! भगवान घला सोंच म परगे – में काए केहे रेहेंव? तैं केहे रेहे, अजोध्या के जम्मो नर नारी वापिस चले जावव! हमन दूनो नोहन ! हमन थपड़ी पिटइया आवन महराज! भगवान अपन गलती समझ गे! इही गलती के परायस्चित बर जम्मो ठाढ़े अगोरा करत मनखे ल वरदान देवत किहीस कि, तूमन मोर बर अत्तेक खड़े खड़े तपसिया करेव, तेकर सेती कलयुग म जब खड़ा होए के मउका आही, खड़ा हो जाहू, तुंहर बइठे के बेवस्था हो जाही! इही बरदान के दंस भोगे बर मजबूर हे जनता अभू घला! एक बात अऊ, भगवान के वरदान दे के समे, मंथरा के भेजे चोर, उचक्का, बेईमान, नंगरा, लुच्चा, लफंगा मउकापरस्त मन, ओतकी बेरा, तुरते जाके ठाढ़ होके वरदान पाए म सुफल होगिन, तेकर सेती घला, अइसने मन, राजा बन राज करत हाबय!
आखिरी बात ये हमन देस बनाए बर अभू तक राजा नइ चुनन! कभू नाली, कभू सड़क, कभू बिजली पानी, त कभू छद्म बिकास बर राजा बनावत आए हाबन हमन! सउदाबाजी के बाद हमर वोट गिरथे काकरो कोती! सिरिफ सरकार बनाए बर वोट देवइया मनखे ल, राम राजा के रूप म नइ मिल सकय! एकरे सेती देस बर सोंचइया राम संसद के चउखट ले महफूज हे अभू तक! तीन कोरी छै बछर म कतिहां पहुंचेन हमन, अभू सोंचे के विसय बन गे हे! अपन नानुक घर ल अतेक जान भारत के नक्सा म ढ़ूढ सकत हन, लेकिन विस्व के नक्सा म भारत कती करा हे? बता पाहू कन्हो ? सिरिफ बजार आए हमर भुइयां! एकर बर, हमन खुद जुम्मेवार हाबन!
अभू सिरिफ अगोरा हे वो राम के, जे आही, अपन जुम्मेवारी सम्हारही! राम तैं आ भले झिन, फेर हमर सासक के दिल म अइसे बिराजित हो जा, के, हमर देस फेर खुसहाल हो जाए, अउ हमन तोर जनमदिन ल तिहार कस मना सकन, अउ कोन्हो मंथरा मुड़ी उठा के झिन केहे सकय – कोउ नृप होउ हमहि………….!

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा