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व्यंग्य

चरनदास चोर

चरनदास चोर ला कोन नी जानय। ओकर इमानदारी अऊ सेवा भावना के चरचा सरग तक म रहय। अभू तक कन्हो चोर ला, सरग म अइसन मान सममान नी मिलिस जइसन चरनदास पइस। एक दिन के बात आय, चरनदास हा, सरग म ठलहा बइठे भजन गावत रहय तइसने म, चित्रगुप्त के बलावा आगे। चित्रगुप्त किथे – चरनदास, पिरथी म तोर जाये के समे आगे। चरणदास पूछथे – कइसे भगवान ? चित्रगुप्त किथे – बीते जनम म तोर आयु पूरा नी होय रिहीस, उही बांचे आयु ला पूरा करे बर, वापिस जाये ला परही। चरनदास किथे – इंहे रहितेंव भगवान, इंहे बने लागत हे ……….। चित्रगुप्त किथे – तोर जमा पुन्य के पूंजी घला सिरागे तेकर सेती, सरग म रहि नी सकस, तोला जाये ला परही। तैं जा अऊ फेर कस के पुन्य सकेल, तोर खाता म पुन्य सकला जही, तहन इहींचेच तो आबे जी, तब तक पिरथी म रहा। चरनदास किथे – जाये बर जाहूं फेर, मोर एक ठिन पराथना हे भगवान, ये दारी कन्हो गरीब घर झिन भेजबे, बड़ तकलीप होथे, कतको बने कर दुतकार मिलथे, कन्हो मान नी करय। चित्रगुप्त हा एवमस्तु किहीस अऊ झम्मले लुकागे।
कुछ समे म चरनदास के जनम होगे। ये दारी बहुत बड़का मनखे घर जनम धरे रहय फेर, ग्रह नछत्र के हिसाब से, यहू समे ओकर नाव चरनदास परगे। बड़ गियानिक रहय। देस बिदेस के बड़े बड़े इसकूल अऊ कालेज म पढ़ पुढ़ के लहुटगे। काम धनधा करे के समे आगे। बीते जनम म चोरी के अलावा कहीं अऊ करे नी रहय, ये जनम म काय करंव सोंचत रहय। ओला पुन्य सकेल के सरग जाना रहय, ओहा ये दारी चोरी ले बड़े काम सोंचिस। अब ओहा डाका डारे बर लगगे। ठऊका उही समे सहर म एक घर डाका परगे। पुलिस पिछू परगे। थाना कछेरी ले बांचे बर येकर ओकर सरन म किंजरे लगिस। एक झिन तिर गिस। ओहा चरनदास के नाव पूछिस। चरनदास हा अपन सही सही नाव चरनदास बतइस। सरनदाता किथे – चरनदास चोर अस जी। चरनदास किथे – चरनदास आंव गा, चोर नोहो ……। सरनदाता किथे – चरनदास के मतलबे उही आय के वो हा चोर होथे। चरनदास किथे – मे काये चोराये हंव तेमा मोला चोर केहेस ? न मेंहा बोफोर्स दलाली के पइसा चोराये हंव, न चारा घोटाला के, न स्परेक्टम के, न हवाला के। न कोयला चोराये हंव, न बेंक के पइसा चोराके भागे हंव। अऊ तो अऊ राफेल खरीदी तको म मोर हाथ निये, तैं मोला कइसे चोर केहेस ? सरनदाता किथे – चरनदास नाव के बहुतेच परसिद्ध चोर रिहीस बाबू, जेहा चोरावय फेर पकड़ावय निही। तहूं उहीच नामधारी आवस, तोर का ठिकाना ……..। जेकर सरन म जावय उही हा अइसनेच सुनावय। चरनदास ला लोगन के बात लगगे। ओहा बांचे के ठिकाना तलासत गुरूजी के आसरम म पहुंचगे।
गुरूजी हा सिरीफ बड़े मनखे ला चेला बनावत रहय। चरनदास हा चेला बने के इकछा परकट करिस। तब गुरूजी किथे – तोला चेला बना लेंहूं फेर तैं काये करथस तेला बता ? चरनदास किथे – पाछू जनम म चोरी करत रेहेंव ……. बात पूरा नी हो पइस, गुरूजी किथे – में नान मुन चोरी चमारी के धनधा करइया ला अपन चेला नी बनावंव, कम से कम डाका डारबे तभे मोर सरन में आ। चरनदास किथे – वा …., अइसन म तोर मोर जमगे गुरूजी, में सहींच म उही बूता करथंव। गुरूजी किथे – फेर चेला बनाये के आगू मोर कुछ सरत हे। चरनदास किथे – का सरत गुरूजी ? गुरूजी किथे – तोला कुछ तियागे के परन करे बर परही। चरनदास ला पिछले जनम के अपन बिचित्र परन के सुरता आगे, इही परन के सेती बिगन सुख भोगे, ओला अकाल मरे बर परे रिहीस, ओहा ये दारी ओकर उलटा परन करत बतइस – मेहा चार ठिन परन पहिली ले कर डरे हंव गुरूजी। पहिली परन ये आय के, चाहे कतको भूख मर जांव, सोन के थारी बिगन खाबेच नी करंव। दूसर परन ये आय के, चाहे कहीं हो जाय, हाथी घोड़ा म खुल्ला, जुलूस संग जाबेच नी करंव, जब जाहूं तब बुलेटप्रूफ गाड़ी म। तीसर परन ये आय गुरूजी के, मोर मनपसंद सुनदरी के बिगन चाहे, ओकर संग बिहाव के खेल रच देहूं या बिगन बिहाव करे, बिहाव के पूरा सुख जबरदसती दे देहूं। चऊथा परन ये आय के, देस के जनता चाहे या झिन चाहे, जे जगा के सत्ता म, मोला बइठे के इकछा होही ते जगा म बइठके रहूं।
गुरूजी मुहु ला फार दिस अऊ सोंचे लगिस ये तो मोरो ले नहाक गेहे बुजा हा ……। गुरूजी किथे – वारे चरनदास, सोन के थारी म भात खाबे त इंनकम टेक्स वाला तोर पिछू नी परही जी। कतको बुलेटप्रूफ गाड़ी म जुलूस म जाबे तभो, झीरम कस घाटी कस कतको जगा तोला अगोरत बइठे रइहि। बिगन बिहाव के, वैवाहिक सुख पाये बर या तो फिलमी दुनिया म जाये बर परही या हमरे कस आसरम खोल के बइठे लागही। अऊ सत्ता पाना अतेक असान निये बेटा, कतको बछर तपसिया करबे, पइसा खरचा करबे, चेपटी बांटबे, तब जनता म चिन्हाबे अऊ अतेक के बावजूद खुरसी तोला तब चिनही जब बड़का के तलवा चांटबे, फोकटे फोकट ओकर जै बोलाबे ……… रात ला दिन कहि तेला आंखी मूंदके समरथन करबे। थोकिन सांस लेवत गुरूबबा पूछिस – वइसे तै सहींच म का बूता करथस, तेमा अतेक कठिन परन करत हस बाबू ? चरनदास बतइस – वाजिम में, में कहींच बूता नी करंव गुरूजी, तभे तो अतेक अकन परन करे के हिम्मत करे हंव। गुरूजी किथे – तब तो तैं वाजिम म, परन के पालन कर सकत हस बेटा फेर, मोरो एक ठिन बात मान लेते बाबू, अइसे भी तोर नाव चरनदास हे तैं पहिली नानमुन चोरी चकारी करते ते तोर नाव चलना सुरू होतिस गा ……….. अऊ अइसने धीरे धीरे आगू बढ़हत बढ़हत डाका तक पहुंच जते, तब तोर परन ला पूरा करे के रसदा अपने अपन खुलत जातिस। चरनदास किथे – तिहीं बीते जनम म कहत रेहेस के, चोरी करना अच्छा काम नोहे। अऊ अभू घला सुरू म केहे के, नानमुन चोरी चकारी करइया ला अपन चेला नी बनावंव कहिके। तेकर सेती महूं सोचथंव के येहा सहींच म अच्छा काम नोहे, येहा बहुतेच छोटे काम आय, जेमा बहुत आगे बढ़हे के समभावना निये। गुरूजी किथे – तोरो कहना ठीक हे, फेर में अब जान डरे हंव के तैं बड़का घर के लइका आस। तैं कुछ भी कर सकत हस, तोला कोन पकड़ सकही तेमा ? सहींच म, अतेक पढ़ लिखके अऊ अतेक बड़ घर के होके, का छोटे मोटे चोरी के बूता करना, कठिनेच बूता करना हे त डाका डारे के काम कर बेटा। चरनदास किथे – उहीच करहूं सोंचत हंव गुरूजी, फेर फोकटे फोकट जनता के पइसा के डाका म मोरे नाव आवत हे गुरूजी, पुलिस ला मालूम निये के में कोन अंव, ओहा मोरे पिछू पर गेहे। गुरूजी किथे – जलदी से कान फूंका के मोर चेला बन, कन्हो तोर कुछ नी उखान सके। फेर मोर चेला बने बर मोरो तिर कुछु परन करे बर परथे जी। चरनदास किथे – चार ठिन तो करि डरे हंव, अऊ का करंव तिंहीं बता भलुक ? ये दारी लबारी मारे ला झिन छोंड़ाबे, बड़ गड़बड़ हो जही। ये पइत परन करवाये के पहिली तहूं सोंचले गुरूजी। बीते जनम म, तोरे सेती जिनगी भर, बड़ दुख झेलेंव। गुरूजी किथे – उहीच ला तो कहत हंव बेटा, मोर कोती ले, सच नी बोले के, पांचवा परन करले बेटा, जिनगी म बड़ सफल होबे रे। एक बात अऊ बेटा, अपन कन्हो परन ला कभू सारवजनिक झिन करबे, सिरीफ तोर मोर तक परन के बात रहय, निही ते तोर रसता छेंके बर कतको ठाढ़ मिलही। चरनदास हा, गुरूजी के आदेस ला सिर माथ म धरिस, कान फुंकइस अऊ चल दिस।
होटल म रंगरेलिया मनावत चरनदास सोंचे लगिस, परन तो बहुत अकन कर डरे हंव फेर पूरा कइसे होही ? बीते जनम म,चरनदास हा, गरीब मनला मदत करे रिहीस, ये दारी अमीर मन के मदतगार बनगे। एक झिन अमीर मनखे बर जमीन कबजियाये बर, उही सरकारी जमीन म बने झोपड़ी ला, चरपा के चरपा टोर दिस। हिम्मत के ये काम म, पइसा संग बहुतेच नाव घला कमइस। अपन परन पूरा करत, गांव के सरपंच बनके सरकारी पइसा म डाका डार दिस। पइसा हा पइसा कमाये बर धर लिस अऊ पद हा पद बिसाये बर धर लिस। सरपंच ले बिधायक बनत मनतरी तक पहुंचगे। जनता तिर भूख मरे के बड़ नाटक करय फेर सार्वजनिक खावत दिखय निही। जब खाये लुका के, वहू म सोन के थारी म …………। जनता के नाड़ी टटोले बर, जेती जाय तेती पुछी चाबे चाबे, बुलेट प्रूफ गाड़ी के काफिला म जावय, भुंइया म गोड़ माढ़बे नी करय। सत्ता पाये बर अऊ खुरसी बचाये बर साम दाम दंड भेद के उपयोग करय। बंगला म अवइया फरियादी दई बहिनी के काया कल्प करे बर हमेसा तियार रहय। केऊ बेर अइसन बूता म नाव धरागे फेर गुरूजी के दे बचन के सेती, सच नी बोले के अतेक हिम्मत के, नारको टेस्ट तको म नी धरइस।
कुछ बछर म, चरनदास के बिकास के आतंक ले जनता तरस्त अऊ पस्त होगे। जनता भगवान के सरन म गिस। भगवान किथे – मेहा सरग ले बिदा करत चरनदास ला केहे रेहेंव के, पिरथी म पुन्य सकेलबे तब तोला वापिस लानहूं, येकर ले पुन्य के काम करावव, तुरते वापिस लेगहूं । जनता भगवान ला पूछिस के, जिनगी भर खुरसी टोरइया के हाथ ले पुन्य कइसे होही भगवान ………. ? जनता ला भगवान जना दिस के, खुरसी के पाया चरमरातेच साठ, चरनदास के हाथ ले पुन्य सुरू हो जही। एक दिन सहींच म, जनता ओकर खुरसी ला नंगा के, दूसर ला थमा दिस। चरनदास के आतमा हा दू फांकी होगिस। एक फांकी ला सरग के सुरता लामगे अऊ जइसे खुरसी हाथ ले छुटिस, पुन्य कमाये बर जनता के साथ, जनता के अवाज बन के ठढ़ा होगे। दूसर कोती, चरनदास के आतमा के दूसर फांकी हा, नावा खुरसीदार उप्पर सवार होगे अऊ सरग के सुख इंहे पाये बर अऊ परन म कायम रेहे बर, जी जान लगा दिस।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा