Categories
कविता

चरगोड़िया – छत्तीसगढी़ मुक्तक

(1)
भइया नवा जमाना आगे ।
हमरे करनी हमला खागे ।
चल थाना म रपट लिखाबो
हमर मान मरजाद गँवागे ।।

(2)
कइसन होगे हमर करम ?
कहाँ लुकागे हमर धरम?
मोटियारी मन ला नई लागै
फुलपेंट म लाज सरम ।।

(3)
धान होगे बदरा, मितान होगे लवरा,
नदिया के पानी घलो, होत हवै डबरा।
ओरछा के पानी हा, बरेंडी कोती जात हवै
कतकोन नेता मन, होगें चितकबरा ।।

(4)
करम देस के फाटत हे ।
अउ जनता ला काटत हे ।
राजनीति आरक्षन के
हमर देस ल बाँटत हे ।।

(5)
आज जन सेवा के, सरुप होगे बदरा ।
कतकतोन नेत मन, होगें चितकबरा ।
चारो खुँट सोसन हे, चारो कोती भ्रस्टाचार
चारो मुड़ा माते हवै, कुरसी के मुगरा ।।

(6)
नेता के सुक्खा भासन मा, मँहगाई हर झर नइ जाय ।
अउ गरीब मन बर सुख के, आमा लटलट ले फर नइ जाय।
इँकर बोट के राजनीति तो, इनला कुर्सी मा बइठाही
हमरो कुरिया मा बग बग ले, नवाअँजोर बगर नइ जाय।।

(7)  चिटिक गरीबी, बेकारी के,खँचका मन ला पाट ।
कर समाज के डिपरा डबरा, मन ला घलो सपाट ।
राजनीति तैं जन सेवा के, अब तो खोल कपाट-
जउने डारा मा बइठे हस, तउने ला झन काट।।

रघुबीर अग्रवाल ‘पथिक’
शिक्षक नगर, दुर्ग  छत्तीसगढ़