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कविता

छत्तीसगढ़ी गीत ‘हाथी हाथी’

अभी हमर कोति जंगलिया हाथी बनेच दंदोरे हे, धान चंउर ल बनेच रउंद दारे हे, उही दुख ल गाय हंव। सरकार ह सीखे पढ़े (परसिक्छत) हाथी ल दक्छिन भारत ले लाने बर लाखों खरचा करत हन कहिथे, फेर का काम के? ‘पहुना परदेशिया’ उही हाथी बर लिखे हंव! रंग महल राज्योत्सव तनी इशारा हे!

हाथी हाथी हाथी बज़े बड़े अउ नानकुन हाथी
झिंकय पुदगय टोरे ठठाये आगु म जेला पातिस
आए जंगलिया हाथी

कहां ले आए अटकत भटकत ढेला पथरा हपटत
हाथी ह फेर हाथीच आय बइठगे त घुचथे लटपट
मेला मड़ई कस हुजुम होगे जेति जेति जातिस!
आए….,

छर्री दर्री कुंदरा कुरिया उझारय परवा छानी
नइ गुनय थोरको गाड़ी मोटर करय चानी चानी
गदबद पएर बिछे कस खेत देख करेजा फाटिस!
आए…..,

बन बगइचा के रहईया खेत डगर नई सुहावय न
जिंहा के जीव उंहे भाथे जुरमिल जम्मो पहुंचावय न
कहां हे वो “पहुना परदेशिया” कोनो अतापता बतातिस
आए….,

अपन पीरा ल अपने जानही बिन मुहु कोन ल बताही
‘वन अधिकार’ म कांदा कुसा जरगे,का ला वो खाही
चारा पानी उंहे मिले ले कहां एति सोरियातिस
आए….,

राजा माते रंग महल मुड़ पीरा म मरत हे परजा जी
मौसम हाथी ‘दुख म दोहरा’ नूनहा जरत हे करजा जी
“आंसू देख सुते नइ सकंव” कहईया ल सुरता देवातिस
आए…..!!!

ललित नागेश
बहेराभांठा(छुरा)
४९३९९६
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