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गोठ बात

भगवान संग नता-रिस्ता- छत्तीसगढ़ के खास पहिचान आय

हर जघा, देस, प्रदेस अउ छेत्र के कोई न कोई खास पहिचान होथे। हमर प्रदेस छत्तीसगढ़ के घलो अइसे कई ठी पहिचान हे। जेमा छत्तीसगढ़ के मंदाकनी महानदी , छत्तीसगढ़ के प्रयाग राजिम, छत्तीसगढ़ के संस्कृति, छत्तीसगढ़ के परंपरा अउ रीति-रिवाज, छत्तीसगढ़ के मान्यता, छत्तीसगढ़ के तिरिथ-धाम जइसे जुन्ना पहिचान के नांव गिनाय जा सकथे तो छत्तीसगढ़ के एक नवा पहिचान राजिम कुंभ मेला ल माने जा सकथे।
जिहाँ तक मानता के बात हे छत्तीसगढ़ मानता के मामला म घलो बहुत बड़हर हे। एक ठी प्रसिद्ध मानता हे के छत्तीसगढ़ भगवान राम के ममियारो हरे। भगवान राम छत्तीसगढ़ के भांचा आय। महतारी कौसिल्या के मइके छत्तीसगढ़ के चंदखुरी गाँव हरे। इही दुनिया के एकमात्र अइसे जघा हे जिहाँ माता कौसिल्या के मंदिर हे। भाँचा के पूजा के मानता दुनिया तो का हमरे देस भारत म अउ कोनो जघा नइ मिलय। हर छत्तीसगढ़िया अपन भांचा म भगवान राम के रूप देखथे। तेखरे सेती ‘भाँचा से पाँव परवाना माने पाप के भागी बनना’ अइसे मानता छत्तीसगढ़ म मिलथे। “पाँ परत हौं भाँचा” अइसे मधुरस कस मीठ भाखा छत्तीसगढ़ छोड़के अउ कहूँ सुने बर नइ मिल सकय।



छत्तीसगढ़ म भाँचा के एके ठी किस्सा नइ हे। एक किस्सा अउ मानता छत्तीसगढ़ म अउ पाय जाथे वो हरे के ममा-भाँचा ल एक डोंगा म संघरा नदिया-नरवा पार नइ करना चाही। इही मानता के सेती गाड़ी-घोड़ा म घलो ममा-भाँचा के संघरा यात्रा करे बर मनाही जुन्ना सियान मन करथंय।
ममा-भाँचा के रिस्ता उपर एक सुंदर किस्सा कमल क्षेत्र पद्मावती पुरी राजिम छेत्र म अक्सर सुनाय जाथे। राजिम त्रिवेणी संगम म भगवान कुलेसर महादेव के प्राचीन मंदिर इस्थापित हे। जेला भगवान राजिम लोचन मंदिर के समकालीन नवमी सताब्दी म निरमित माने जाथे। पुरान के मुताबिक कुलेसर महादेव भगवान राम के कुलदेवता आय। बनवास काल म राम-सीता, लछमन ये मार्ग ले नाहके रिहिन। चित्रोत्पला पार करे के पहिली माता सीता ल कुल देवता के पूजा करे इच्छा होइस। फेर दूर-दूर तक महादेव के कोई मंदिर नइ दिखिस तौ माता सीता नदिया के रेती से महादेव के मुरती बना के पूजा करे रिहिन। अतेक जुन्ना हे एकर इतिहास अउ एकरे सेती कुलेसर महादेव के महिमा कोनो ज्योतिर्लिंग ले कम नइ माने जाय।
कुलेसर महादेव ल भाँचा महादेव माने जाथे। काबर के एकर इस्थापना म जगत भाँचा भगवान राम के हाथ घलो सामिल रिहिस हे। कुलेसर महादेव तीन नदिया महानदी, पैरी अउ सोंढ़ू नदी के संगम म बिराजित हे। पहिली समय म हर बछर तीनों नदिया म पूरा आवय। अइसे मानता हे के कुलेसर मंदिर पूरा म बूड़े लगय तौ भाँचा कुलेसर हांक पारय “ममा बचाव, बूड़त हौ! ममा बचाव, बूड़त हौं” ये हांक ल सुन के ममा महादेव कहिथे-“नइ बूड़स भाँचा” तहान नदिया मन ल आदेस देथे अउ पूरा ओसके लगथे। ममा महादेव कुलेसर मंदिर अउ राजिम लोचन मंदिर के रस्ता म नंदिया के खंड़ म इस्थापित हे। इही मंदिर ल इसथानी निवासी मन ममा-भाँचा मंदिर कहि देथे। मानता हे के संगम के पूरा ह ममा मंदिर के इस्पर्स करे बाद ओसकना सुरू हो जाथे। ममा-भाँचा के संघरा यातरा के मनाही के पीछू इही मानता हे के एक झन उपर संकट आ परिस तौ दूसरा एकझन रक्षा करइया मौजूद होना चाही।
जइसे भगवान के महिमा होथे वइसने भक्त के घलो महिमा होथे। ये भक्त मन के महिमा हरे के वो भगवान के मानवीकरन करके ओखरो संग नता-रिस्ता जोड़ लेथे। भगवान भगत के बस म होथे तेन लबारी नो हे। भक्त अउ भगवान के ये मानता छत्तीसगढ़ के एक खास पहिचान आय। बोलो भक्त अउ भगवान की जय! कुलेसर महादेव की जय! राजिम लोचन कुंभ की जय!

दिनेस चौहान, छत्तीसगढ़ी ठीहा, सितलापारा, नवापारा-राजिम, जिला-रायपुर, छ.ग.
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