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कहानी

मोर छत्तीसगढ़ के किसान

मोर छत्तीसगढ़ के किसान,
जेला कहिथे भुंइया के भगवान ।
भूख पियास ल सहिके संगी ,
उपजावत हे धान ।
बड़े बिहनिया सुत उठ के,
नांगर धर के जाथे ।
रगड़ा टूटत ले काम करके,
संझा बेरा घर आथे ।
खून पसीना एक करथे,
तब मिलथे एक मूठा धान ।
मोर छत्तीसगढ़ के किसान,
जेला कहिथे भुंइया के भगवान ।
छिटका कुरिया घर हाबे,
अऊ पहिनथे लंगोटी ।
आंखी कान खुसर गेहे ,
चटक गेहे बोडडी ।
करजा हाबे ऊपर ले ,
बेचागे हे गहना सुता ।
साहूकार घर में आ आके ,
बनावत हे बूता ।
मार मार के कोड़ा,
लेवत हे ओकर जान ।
मोर छत्तीसगढ़ के किसान,
जेला कहिथे भुंइया के भगवान ।

महेन्द्र देवांगन “माटी “
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम
8602407353
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