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छत्‍तीसगढ़ के वेलेंटाईन : झिटकू-मिटकी

लोक कथा म कहूँ प्रेमी-प्रेमिका मन के बरनन नइ होही त वो कथा नीरस माने जाथे। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाका मन म जहां लोरिक-चंदा के कथा प्रचलित हे, वइसनहे बस्तर म झिटकू-मिटकी के प्रेम कथा कई बछर ले ग्रामीण परवेश म रचे-बसे हे। पीढ़ी दर पीढ़ी इंकर कथा बस्तर के वादी म गूंजत रहे हे। बस्तरवासी इनला ल धन के देवी-देवता के रूप म कई बछर ले पूजत आवत हें। इंकर मूर्ति मन ल गांव वाले मन अपन देव गुड़ी म बइठारथें, उन्हें इहां अवइया सैलानी मन झिटकू-मिटकी के प्रतिमा ल संग ले जाथें अऊ ए मन ल बस्तर के अमर प्रेमी के रूप म सम्मान देथें।
कोन रहिन झिटकू-मिटकी
बस्तर म झिटकू-मिटकी के कथा अलग-अलग नांव मन ले चर्चित हे। झिटकू-मिटकी के कहानी ल मनखे खोड़िया राजा अऊ गपादई के कहानी के नाम ले घलोक जानथें। कोनो गांव म झिटकू नाम के एक युवक रहिस। एक दिन मेला म ओखर भेंट मिटकी नाम के युवती ले हो गीस। संयोग ले वो युवती घलोक स्वजातीय रहिस। पहली नजर म ही दुनों एक-दूसरे के प्रति आसक्त हो गें। बात परिवार तक पहुंचीस।
स्वजातीय होए के सेती परिवार वाले मन ल कोनो आपत्ति नइ रहिस, फेर मिटकी के सात भाई एखर बर तियार नइ रहिन। ओ मन नइ चाहत रहिन के उंखर बहननी बिहाव करके उंखर ले दूरिहा चल दे। ओ मन चाहत रहिन के मिटकी बर अइसन युवक के तलाश करे जाय जऊन घरजमाई बनके ऊंखरे संग रहय। मिटकी के भाइ मन के सरत ले झिटकू के परिवार के मन गुसिया गें। झिटकू न परिवार ल छोड़ सकत रहिस, नइ ही अपन प्रेमिका मिटकी ल। ओ हर बीच के रद्दा निकालिस।
झिटकू ह कहिस के वो मिटकी ले बिहाव तो करही, फेर वो ओखर भाइ मन के घर म नइ रहय। वो मिटकी के गांवे म घर बनाके अपन गृहस्थी बसाही। मिटकी के भाइ मन ह सरत मान लीन। ओ मन झिटकू के संग मिटकी के बिहाव करे ल तइयार हो गे। बिहाव के बाद झिटकू मिटकी के गांव म धोरई (मवेशी चराए के काम) करे लगिस अउ जिदंगी हंसी-खुशी बीते लागिस।
…अऊ फेर कहानी म आइस ये मोड़
कुछ साल बाद अकाल परिस। मनखे मन भूख ले मरे लागिन। ए समस्या ले निपटे बर गांव वाले मन के एक बैठक होइस। बैठक म ये बात आघू आइस के पियासे खेत मन बर कहूं गांव म सिंचाई तरिया होही त समस्या खतम हो सकत हे। गांव वाले मन ह श्रमदान करके बड़का तरिया कोड़ लीन। तरिया तो तइयार हो गे, फेर बरसा के पानी भरा गे। बरसा खतम होतेच तरिया सूखा गीस।
गांव वाले मन के फेर बैठक होइस। ये मां गांव के सिरहा-गुनियां (तांत्रिक मन) ह ये ऐलान कर दीन के जब तक तालाब म कोनो मनखे के बलि नइ दे जाही, तरिया म पानी नइ रूकय। बलि के बात सुनके गांव वाले मन पाछू घुंच गें, फेर गांव म कुछ अइसे युवक घलोक रहिन, जेन मिटकी ल पाये के लालच रखत रहिन। अइसन युवक मन ह मिटकी के भाइ मन ल भरमाइन के झिटकू तो दूसर गांव के ये। अउ रहिस बात मिटकी के त, ओकर संग कोनो युवक शादी कर लेही, कहूं तुमन झिटकू के बलि दे देहू त गांव म तुंहार मान बाढ़ जाही। मिटकी के भाई मन स्वार्थी युवक मन के बात म आ गें। एक दिन जब मिटकी के भाई अऊ झिटकू जंगल म मवेशी चरात रहिन, तब योजना बनाके मिटकी के भाइ मन ह झिटकू ल मारे के कोसिस करिन।
झिटकू उहां ले जान बचाके भागिस। एक भाई ह टंगिया ले झिटकू उपर वार करिस। ये टंगिया वोकर गोड़ म परिस। तभो ले वो भागत रहिस, तरिया तीर मिटकी के भाइ मन ह झिटकू ल धर लीन अऊ टंगिया ले ओकर गला ल काटके मूड़ी ल तरिया म फेंक दीन। ए घटना के बाद अच्‍छा बरसा होइस।
ओती, पति के अगोरा करत मिटकी परेशान रहिस। रात म ओ ह सपना देखिस के तरिया पानी ले लबालब भरे हे अऊ बीच तरिया म झिटकू खड़े हे। सपना म ये देख के मिटकी डेरा गीस। वो बिना कुछ सोचे तरिया कोति दउंड़ गे। तरिया पहुंचिस त मिटकी आश्चर्य म पड़ गीस। काबर के सपना म ओ ह जऊन देखे रहिस, वो दृश्य प्रत्यक्ष रूप ले ओखर सामने रहिस।
येती झिटकू ह मिटकी ल ऊंखर भाइ मन के करतूत बता दीस। झिटकू बर अगाध प्रेम करइया मिटकी ह घलोक तालाब म कूद के अपन जान दे दीस। दूसर दिन भिनसरहा जब गांव वाले मन तरिया पहुंचिन, त मिटकी के लास तैरत मिलीस। ए प्रकार से प्रेमी युगल के दुखद अंत हो गीस। टंगिया लगे के बाद दंउड़त रहे के सेती झिटकू खोड़िया देव अऊ तरिया पार बांस के टोकरी छोड़ के मौत ल गले लगाय के सेती मिटकी गपादई के नाम ले चर्चित होइस।
गांव वाले करथे पूजा
बस्तर के आदिवासी समाज झिटकू-मिटकी ल धन के देवी-देवता मानथे। कई ठन मेला-मंडई म झिटकू-मिटकी के पीतल अऊ लकड़ी ले बने प्रतिमा बेचे बर लाए जाथे। गांव वाले मन अपन परिवार के खुसहाली बर ए मन ल देवगुड़ी म अर्पित करथें। येती बस्तर अवइया हजारों सैलानी मन घलोक ए प्रेमी के कठवा अऊ धातु के मूर्ति मन बड़ आस्था के संग अपन संग ले जाथें।

हेमंत कश्यप
जगदलपुर
(जागरण समाचार म छपे लेख के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद – संजीव तिवारी)