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व्यंग्य

बरतिया बर पतरी निही, बजनिया बर थारी

सत्ता सुनदरी के स्वयमबर के तियारी जोरसोर से चलत रहय। जगा जगा के मनखे मन, रंग बिरंग के पहिर ओढ़ के, तियार होके पहुंचे रहय। हरेक पारटी के मुखिया मनखे मन, सत्ता नोनी ला मोहाये बर, तरहा तरहा के उपाय म लगे रहय। सत्ता के रूप अऊ गुन के अतेक चरचा चारों कोती बगरे रहय के, जवान ते जवान डोकरा मन तको ओकर परछो पाये बर मरत रहय। अपन ताकत अऊ गुन देखाये बर, एक ले बढ़के एक हरकर करत रहय दुलहा मन। दुलहा तै नी होये रहय फेर बरतिया ( पारटी कार्यकरता ) कस के पेले रहय।
स्वयमबर के पहिली, होवइया दुलहा मन, सत्ता के परिवार (जनता) ला रिझाये बर, भारी घोसना करत रहय। बरतिया मन अपन मुखिया ला पूछथे – कस जी, सरी घोसना ला येकरे मन बर कर देबे अऊ बिहाव के पाछू सरी चीज बस ला येकरे मन के नाव कर देबे, त जयमाला के पाछू हमन ला काये मिलही ? मुखिया किथे – तूमन काबर फिकर करथव जी, समे आवन दव, तुंहरो बेवस्था करबो। बपरा बरतिया मन आस म, दुलहा के पिछू पिछू रेंगत रहय। नाचत नाचत बरतिया मन के हौसला पस्त करे बर, स्वयमबर रचइया हा, बजनिया ( सरकारी करमचारी ) मनला, कस के बजाये ( नियम पालन करवाये ) बर केहे रहिथे। बाजा जस जस बाजय, बरतिया मन तस तस नाचय। बाजा बाजत रहय, बरतिया मन नाचत रहय, सत्ता सुनदरी हा, बीते समे कस धोखा झिन खाये परय सोंचत, जयमाला धरके, दुलहा परखत, चारों मुड़ा किंजरत रहय। जयमाला काकरो गला म परे नी रहय, जनम के भुखहा बरतिया मन, भुखागे। जइसे खाये बर निंगिन, पतरी सिरागे। दूसर कोती, बजनिया मन, बिहाव के हरेक नान नान नेंग म, बाजा बजावत, थारी थारी भात झेलत रहय।
दुलहा मन तक बात पहुंचगे। वो जान डरिस के, बरतिया बर पतरी निही अऊ बजनिया मन थारी म खावत हे। दुलहा मन किथे – थोकिन धीरज अऊ धरव, जइसे मोर गर म जयमाला परही तइसे, इही बजनिया मन, तूमन ला सलाम ठोंकही। तूमन अइसन भरम म झिन रहव के सत्ता के परिवार मन बर, में सरी खजाना फोकट म लुटा देहूं। अरे भइया, सत्ता सुनदरी के सरकारी खजाना जे दिन हमर हाथ म आही तिही दिन सांझ होवत ले, सत्ता के परिवार ला ओकर समपति ले, पांच बछर बर बेदखल कर देबो अऊ जे बजनिया मन, अभू तूमन ला टुंहुं देखा देखा के खावत हे, तेकर मन के घेंच ला मसक के, खाये बर तूमन ला खुल्ला छूट दे देबो।
जयमाला परगे। सत्ता फेर धोखा खागे। बजनिया मन के हालत तो फेर भी ठीकेच हे, सत्ता के परिवार हा, अपन समपति ला वापिस पाये बर, पांच बछर अगोरत हे।

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा