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गज़ल

गजल

जम्मो नवा पुराना हावै।
बात हमला दुहराना हावै ।

लूट सको तो लुट लौ भैया,
सरकारी खजाना हावै ।

झूठ-लबारी कहि के सबला
सत्ता तो हथियाना हावै।

कतको अकन बात हर उनकर
लागे गजब बचकाना हावै।

पेट पलइया मांग करे तब,
रंग – रंग के बहाना हावै।

सब के मुँह म बात एके हे,
उलटा इहाँ जमाना हावै।

अब भाई के गोठ- बात मा
घलो सियासी ताना हावै ।

रंग-रंग के =तरह-तरह के

बलदाऊ राम साहू