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गज़ल

छत्तीसगढ़ी गज़ल

बनना हे त जग म मयारू बन के देख
पढ़ना हे त मया के दू आखर पढ़ के देख!

अमरीत पीये कस लागही ये जिनगी ह
काकरो मया म एक घांव तै मर के देख!

बड़ पावन निरमल अउ गहरी ये दाहरा
नइ पतियास त एक घांव उतर के देख

पूस के ठुनठुनी होय चाहे जेठ के भोंभरा
हरियरेच पाबे रंग एकर आंखी म भर के देख!

मन म मया त खदर छानी लागे राजमहल
बिन एकर बिरथा कतको तै समहर के देख!

ए हिरदे के मंदिर म बसे जेन भगवान के मुरत
नइ मेटाय कतको तै साबून निरमा घसर के देख!

ललित नागेश
बहेराभांठा(छुरा)
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