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कहानी : रेलवे टईम टेबुल के भोरहा

मँझन के दू बज गे राहय, मूँड़ मा मोटरा लादे, बाखा मा पेटी चपके, गाँव के मोठडाँट मनखे रामू हा धोती पागा के छूटत ले दउँड़ के रेलवे इसटेसन मा हबरिस, जाड़ के दिन मा घला वोहा पछिना मा नहा डरे राहय, पाछू-पाछू ओकर गोसानिन रेवति अपन दू झन लइका ला धरके हबरिस, वहू पछिना मा लथपथ राहय, वोमन पहिली घँव टरेन चढ़े के साद करे राहय, दूरिहा के सफर, सुने सुनाय गोठ अउ जाड़ के डर मा अड़बड़ अकन समान अउ साल सेवटर ओढ़े लादे राहय।
इसटेसन मा पहुँच के रामू हा येला-वोला पूछे लागिस, टरेन कहाँ हे, दिखत नइये छूटगे का, ओकर के जम्मों झन वोखर गोठ सुनके ओखरे डहर देखे लागिस, फेर रामू ला काहीं के सुध नइ रीहिस, वोला हलाकान होवत देख के एक झन भलमानुस बतइस कि टरेन हा इसटेसन मा हे, त रामू फेर कइथे त हमन इसटेसन म तो खड़े हन का ? वो भलमानुस कहिस पहिली तो ते धीरज धर अउ सुन, अभी तेहा इसटेसन के गाड़ी मोटर राखे के ठउर मा हावस, इँहा ले वो बिलडिंग मा निंगबे त पूछताछ करे बर चेंबर बने होही, रामू फेर किहीस चेंबर काला कइथे गो? भलमानुस बतइस भुलकी वाला खोली, एक डहर जानकारी माँगे के ठउर हे अउ एक डहर टिकिट कटवा के, उँहे जाबे, अउ वो बिल्डिंग ला नाहकबे त पटरी वाला इसटेसन दिखही उही मा टरेन आथे-जाथे। त रामू डिंग मारके खिसा ले टिकिट निकाल के कइथे टिकिट ला तो हमर पड़ोस के पढ़ईया बाबू हा गाँवेच मा बना देहे, अपन कंपुटर मा काला-काला चपकिस पइसा ला माँगिस अउ ये कागद हेर के हाथ मा धरा दिस, वोहा कहिस कि मोबाइल धरे होबे त कागद घलो नइ लागे। मेहा मोबाइल तो धरे हँव फेर जादा कोचके ला नइ आवय कइके कागद वाला टिकिट माँगेंव।




त भलमानुस टिकिट ला देखा कहिस अउ देखे लागिस, अब वोहा थोकन संसो मा रामू ला देख के कइथे ये टिकिट में तो तीन बजे के समे लिखाय हे। रामू अपन घड़ी ला देख के कइथे हव जी जल्दी टरेन चघे बर लागही आधा घंटा भर तो बाँचे हे। भलमानुस फेर कइथे, नही भाई तोर टरेन हा तो कबके चल देहे येमा तीन बजे लिखाय हे, अउ अभी साढ़े चउदा बजत हे, तोर टिकिट मा तीन बजे लिखाय हे, तेहा रतिहा के बेरा आये। रामू ओखर गोठ ला नइ पतियाय अउ हाँस के कइथे सिरतोन मा जी शहरी मनखे मन लबारी मारे मा कमी नइ करव, तँय कोनों ला पूछ ले घड़ी मा बारा बजथे, तेरा चउदा नइ बजे, कहीं आय रात कुन टरेन चलही, हमर गाँव म साँझ कुन चार ले सवा चार होथे त मोटर नइ पावस। अउ ताहन रामू हा वोला खेदारे सरीख भाखा मा कइथे महू हा तीस फरवरी के जनमें रेंहव समझे! दे मोर टिकिट ला, जा अपन बूता कर।
अउ रामू इसटेसन के आने-आने चेंबर (भुलकी वाला खोली) मा दतके पूछे जाने के जतन करथे, फेर वोहा पूछे-ताछे के खुदे ठिकाना नइ पावय त कोनें हा वोला बता डरतिस। वोकर हलाकानी ला एक झन पुलिस वाला देखथे त गोठ ला सुनके, किस्सा ला समझ के रामू ला समझाथे कि टरेन के टईम टेबुल हा चउबीस घँव बेरा बतईया घड़ी के हिसाब ले चलथे, बारा घंटा वाला घड़ी हा एके तारीख मा दू घँव एके बेरा बताथे, अइसन में रेलवे के कोनों करमचारी ला भोरहा झन होवय, अउ भोरहा मा दुर्घटना झन होवय कइके चउबीस घँव बेरा बतईया वाला घड़ी के हिसाब ले टरेन चलथे, इही ला रेलवे टईम-टेबुल घलो केहे जाथे। येला एक घँव जाने के बाद मा यातरी मन ला घला सुभिता लागथे।
अब रामू के हाथ गोड़ जुड़ा जथे, थोथना ओरमा के अपन लोग-लइका डहर ला देख के कइथे वो टिकिट बनईया डिंगरा टूरा हा एक कान ला फोन मा दतायेच रीहिस अउ सट ले मोला टिकिट ला धरा दिस, ओखर लटर-पटर के मारे कुछु पूछे घला नइ सकेंव, रही जा रे डिंगरा टूरा गाँव लहुट के तोर बर बइठका कराहूँ। फेर मूँड़ धरके कइथे अब मेहा का करँव साहेब तिही उपाय बता। त पुलिस वाला कइथे फिकर के कोनों बात नइये, तँय पइसा नइ राखे होबे त हमन तोला बस बइठार के घर भेज देबो, अउ कहूँ पइसा राखे होबे त जिहाँ जाना हे तिहाँ के आने टरेन के टिकिट कटवा के ओखर सही बेरा मा बइठार देबो, अइसन हालत ले निपटे बर रेलवे बिभाग अउ शासन हा अड़बड़ अकन उदीम करके राखे हे। रहे से लेके सुरकछा तक सब बेवस्था इसटेसन मा रइथे। हाँ फेर अब दू चार आखर अइसन जिनिस के जानकारी रखना सब झन बर जरूरी हे। रामू पइसा धरे रीहिस इसटेसन मा लोग लइका ला खवा-पिया के चार घंटा अगोरे के पाछू टरेन पहुँचईस अउ पुलिस वाला के परसादे रामू अउ ओखर परवार हा पहिली पइत टरेन सफर के मजा अउ सुवाद पईस।

ललित साहू “जख्मी”
छुरा जिला – गरियाबंद (छ.ग.)