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कहानी : सेमी कस बँटागे मनखे

रामपुर नाव के एक ठन सुग्घर गाँव रीहिस, जिहाँ के सब मनखे सुनता सलाह अउ संगी मितानी, छोट-बड़े ला मान देवईया रीहिन, सिरतोन मा रामपुर मा रामराज हावय सरीख लागे। उहाँ के मुखिया रामदास घलो सबके हित सोचईया रीहिस, पूरा गाँव ला वोहा एके घर बरोबर समझे अउ जनता ला अपन लोग लइका बरोबर मया दुलार करे। फेर नवा युग नवा चरित्तर अउ फोन टीवी के प्रकोप ले कोन बाँचे हे?
एक घँव खाल्हे पारा वाला मनके बीचपारा वाला मन संग झगरा मातगे, झगरा के आगी एकट्ठा नइ बरीस, थोकन गोठ बात होके झगरा थिरागे, फेर सबके मन मा बैर हा थोक-थोक करके सिपचत-सिपचत भीतरे भीतर बगरत रीहिस, मुखिया रामदास ला ये सब बात के खबर रीहिस, फेर झगरा के बात आघू नइ आवत रीहिस ता वहू निपटारा नइ कर सकत रीहिस, अउ वोला कुछू उपाय घलो नइ सुझत रीहिस, वोहा झगरा के जर के पता लगाय के जतन करीस फेर सही बात के पता नइ चल पइस, बस अतकि थाहा लगिस कि शहर ले एक झन सकेलु नाव के मनखे पढ़लिख के आय हे, सकेलु के करम नाव ले बिपरीत हे वोहा सबला टोरवायच के बूता करथे। वोहा नेता अधिकारी मनले अपन पहुँच बताके लोगन ला बरगलावत रहिथे वोहा गाँव मा जमीन बेपार अउ राजपाठ के लालच मा हवय, जात धरम के नाव लेके उही सबला भड़काये हे। मोबाइल मा पेपर मा आने-आने जगा के दंगा झगरा अउ घटना किस्सा ला देखा के अउ कान भर के, जुआँ नशा के लत लगाके गाँव के सिधवा मनखे मन ला फाँसे हे।
मुखिया झगरा के जर सकेलु ले मिलिस अउ वोला अइसन सब करे बर मना करिस फेर मुखिया के ओखर ले मिलत ले देरी होगे रीहिस, वोला गाँव मा आय अब बछर भर होगे रीहिस वोखर संग देवईया गाँव के भोला सिधवा लोगन मन आघू आ गिन अउ मुखिया के आघू मूँड़ी निहार के रेंगईया मन घलो तमक के मुखिया ला चूप करा दिन, सकेलु घलो सिधवा बनके कही दिस मेहा कुछू गलत नइ करे हँव, बाहिर के गोठ-बात अउ सही गलत ला बताय मा का परहेज हे।



मुखिया कुछू नइ कही सकिस अउ घर आके गुनत बइठे रीहिस, ता वोहा अपन मन बहलाय बर अपन नातिन संग खेलत रीहिस अउ वोखर बहु हा साग रोटी ला लान के किहीस बाबू आज नोनी ला तिही खवा दे, तीन बछर के नोनी अड़बड़ गोठू रीहिस, एक ठन गोठ ला घेरी बेरी पूछय, वो दिन सेमी साग अउ रोटी बने राहय, ता ओखर नातिन खावत बेरा कइथे बबा ये साग हरे, रामदास कइथे ये सेमी साग हरे, ता लइका कइथे सेमी साग ये ता सेमी कहाँ हे, रामदास फोकला ला धरके कइथे, इही तो सेमी ये, नोनी फेर कइथे ये तो फोकला ये, सेमी कहाँ हे, रामदास सोचथे कि लइका ला ठग लेहूँ, ता वोहा बीजा ला देखाके सेमी हरे कही देथे, फेर लइका नइ माने वोहा कइथे येहा तो बीजा हरे, सेमी कहाँ हे, ता रामदास सोच में पड़ जथे अउ वोहा अड़बड़ सोच के फोकला के दूनो भाग ला धरके ओखर बीच मा बीजा राखके कइथे, ये हरे सेमी, ये पइत लइका मान जथे अउ खुश होके साग रोटी खाथे। लइका संग ये गोठ बात ले रामदास घलो खुश हो जथे।
अउ ओती झगरा के आगी पूरा गाँव मा बगर गे रहिथे, गाँव के आठ पारा जे कभू एक होके राहय अब दू भाग मा खँड़ागे, अउ एक दिन तो छोटकन रैली में पथरा फेंके के घटना ले जम्मों झन मारकाट मा उतारु हो जथे। झगरा के खबर मुखिया रामदास करा पहुँचथे ता वोला घर ले निकले के बेरा नोनी के गोठ सुरता आ जथे ता वोहा घरले अपन खिसा मा सेमी धर के जाथे। झगरा करईया मन मुखिया ला देख के थोकन थिराथे, ता मुखिया जम्मों झन ला बइठे बर कथे, लोगन मन दू भाग मा अलग-अलग बइठथे, एक डहर आने जात धरम के मन हा अउ दूसर डहर आने जात धरम के मन हा, मुखिया पारी-पारी पुछथे तुमन कोन हरो, ता दूनो खेमा के मनहा अपन परिचय अपन-अपन धरम के नाव बता के देथे। अब मुखिया अपन खिसा ले सेमी निकालथे अउ वोला फलिया के फोकला ला एक डहर अउ बीजा ला दूसर डहर देथे, अउ पूछथे तुमन का धरे हो, ता दूनो डहर के मन कइथे सेमी धरे हन, मुखिया हाँसथे अउ कथे सेमी कहाँ हे, एक डहर कइथे तुमन तो फोकला धरे हो, अउ एक डहर कइथे तुमन तो बीजा धरे हो, अब बताओ सेमी कहाँ हे, दूनो डहर के मध मूँड़ी ला गड़िया देथे। ता मुखिया फोकला अउ बीजा ला माँग के जूरिया के देखाथे येला कइथे सेमी।



जइसे सेमी फोरियाय के बाद अपन मूल स्वरूप ला खो देथे, वइसने तहू मन आने-आने जात धरम के हरन कइके अपन परिचय देवत हव, ता में पूछथँव कि जेला भगवान सिरजा के ये भुइयाँ मा भेजे रीहिस वो मनखे कहाँ हे। तुमन सब फोकला अउ बीजा मा बँट गेव अउ ये शहरी सकेलु राम हा अपन मतलब साधे बर तुमन ला टोर के साग राँधत हे मतलब झगरा करवावत हे। ये बैरी मन राजपाठ अउ धन दौलत के लालच मा खुद रइके सबला ये लालच देवत रहिथे। दूसर के झाँसा अउ गोठ बात मा आय के पहिली कभू ये सोचे हव कि हमन ला भगवान का करे बर भुइयाँ मा उतारे हे, अउ हमर जिनगी के सिरतोन मरम अउ काज का हरे, अतका दिन ले सुमत अउ एका मा गाँव आघू बढ़त रीहिस तेला तुमन छिन भर मा कइसे बिसरा डरेव। मुखिया रामदास के गोठ ला सब समझ के वो शहरी कपटी मनखे सकेलु ला गाँव ले निकाल देथे, अउ झगरा ला छोड़ के एक हो जथे, फेर टूटे रस्सी ला जोड़बे ता गाँठ दिखी जथे, सिरतोन कबे ता सबके भलाई इही मा हे कि रस्सी टूटे के गोठे झन होय।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)

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