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कविता

हमर पूंजी

दाई के मया अऊ ददा के गारी।
बस अतकी हमर पूंजी संगवारी।
सुवारी के रिस अऊ लईका के किलकारी।
बस अतकी हमर पूंजी संगवारी।
कोठी भर पीरा अउ भरपेट लचारी।
बस अतकी हमर पूंजी संगवारी।
हिरदे के निरमल;नी जानन लबारी।
बस अतकी हमर पूंजी संगवारी।
कोठा म धेनु अऊ छोटकुन कोला बारी।
बस अतकी हमर पूंजी संगवारी।

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा)

4 replies on “हमर पूंजी”

Chhattisgarhi bhakha maya ke bhakha hai…
Ki Apne vani me sajo ke rakhane ki aavshyakta hai…

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