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कहानी

छत्‍तीसगढ़ी लघु कथा : दांड़

सुन्ना घर पइस त सुकालू ह सुखिया के हाथ-बांह ल धर दिस। ये गोठ ह आगी सरीक गांव भर मं फइलगे, फेर का गांव मं पंचइत सकलइस, पंचइत मं पंच मन ह दुनों झिन ल पूछिस, अउ दुनों डहार के गोठ ल सुन के कहिस, सुकालू ल सुखिया करन बिहाव करे ल परही, सुकलु तंय हर तियार हस कि नइ बिहाव करे बर। सुकलू ह कहिस, मय तियार हंव। सुखिया ह चिहर के कहिस, मेहां ये दोखहा करन बिहाव नइ करंव जेन ल माईलोगिन के मान अउ सनमान के फिकर नइ हे, ओकर करन मय ह अपन जिनगी ल नइ बिता सकंव। पंचइत ह कहिस, बिहाव तो तोला करे बर परही, नइ करबे त ये गांव ल छोर के तोला जाय ल परही। सुखिया के आंखी ले आंसू ह नदिया कस बोहावत रहिस फेर कोनो ल कुछु फरक नइ परत रहिस।

मोला समझ मं नइ अइस कि पंचइत ह दांड़ सुकलू ल देवत रहिस कि सुखिया ल?

कु.सदानंदनी वर्मा
रिंगनी (सिमगा)
मो.नम्बर-7898808253


छत्‍तीसगढ़ी शब्‍दों में उच्‍चारण भेद के कारण कई अशुद्ध शब्‍द हमें शुद्ध प्रतीत होते हैं। इसको पीछे मुख्‍य कारण छत्‍तीसगढ़ी का मानकीकरण नहीं होना है। प्रस्‍तुत लघु कथा में प्रयुक्‍त शब्‍द ‘दांड़’ के बजाए ‘डांड़’ का प्रयोग ज्‍यादातर गांवों में होता है। छत्‍तीसगढ़ी शब्‍दों के छत्‍तीसगढ़ी करण के कारण ऐसे शब्‍द प्रचलन में आते हैं। प्रचलित छत्‍तीसगढ़ी शब्‍दों के छत्‍तीसगढ़ी करण का कोई औचित्‍य नहीं है, किन्‍तु शब्‍दों को और ठेठ बनाने या अपने आप को लोक के नजदीक ‘ठाढ़े’ रखने के लिए कुछेक लोगों (गांवों) के द्वारा उच्‍चारित ‘दांड़’ के बजाए ‘डांड़’ का प्रयोग किया जाना चाहिए। – संपादक

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