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किताब कोठी महाकाव्‍य

गरीबा महाकाव्य (पंचवईया पांत : बंगाला पांत)

पाठक – आलोचक ले मंय हा नमन करत मृदुबानी ।
छिंहीबिंही खंड़री निछथंय पर सच मं पीयत मानी ।।
एमन बुढ़ना ला झर्रा के नाक ला करथंय नक्टा ।
तभो ले लेखक नाम कमाथय – नाम हा चढ़थय ऊंचा ।।
मेहरुकविता लिखत बिधुन मन, ततकी मं मुजरिम मन अ‍ैन
तब बिसना कथय – “”तंय कवि अस, कविता लिखथस जन के लाभ.
झूठ बात ला सच बनवाये, करथस घटना के निर्माण
पर अब सच ला साबित कर, निज प्रतिभा के ध्वज कर ठाड़.
घटना – पात्र काल्पनिक खोजत, एमां बुद्धि समय हा ख्वार
तेकल ले तंय हमर बिपत लिख, काव्य वृक्ष पर खातू डार.”
कथय बीरसिंग -“”होय हे पेशी, भोला पुलिस झूठ कहि दीस
हमला कड़कड़ ले धंसाय बर, जहर बिखन दिस हमर खिलाफ.
हमर विरुद्ध गवाही देहंय – पल्टन अउ बुलुवा कोतवाल
उंकर मुखारबिन्द का कहिहय, हम नइ जानत ओकर हाल !”
मेहरुबोलिस – “” सुघर कहत हव, हम अन उंचहा साहित्यकार
खोड़रा मं लुकाय रहिथन अउ, लिखथन जमों जगत के हाल.
पर ओ होथय झूठ लबारी, पाठक हा पढ़थय जब लेख
होत दिग्भ्रमित – सच नइ जानय, आखिर पाथय अवगुन हानि.
अब मंय तुम्हर तोलगी ला धर, न्यायालय तक जाहंव आज
सूक्ष्म रुप से अवलोकन कर, काव्य बनांहव खुद के हाथ.”
मेहरुहा मुजरिम संग जावत, सत्य दृष्य देखे बर आज
खैरागढ़ मं पहुंच गीस तंह, टंकक ठेपू संग मं भेट.
मगन तुरुत टंकक ला बोलिस -“”हमर तोर पूर्व के पहचान
हवालात मं साथ खटे हन, कर तो भला हमर तंय याद !
मारपीट कर जुरुम करे हस, ओकर पेशी हे दिन कोन
लगे तोर पर के ठक धारा, तोर विरुद्ध गवाह हे कोन ?”
टंकक हंसिस – “”बता डारे हंव – थानेदार हा परिचित मोर
ओहर कृपा करिस मोर ऊपर, हवालात ले करिस अजाद.
कहां के दण्ड – कहां के धारा, होगिस खतम जतिक आरोप
अब मंय कहां तुम्हर अस मुजरिम, छेल्ला किंजरत हंव हर चौक.”
घुरुवा हा ठेपू ला बोलिस – “”बेचन ला गुचकेला देस
अपन जुरुम ला स्वीकारत हस, तब ले तंय बच गेस बेदाग.
हम भोला ला छुए घलो नइ, तब ले हमर मुड़ी पर गाज
न्यायालय मं खात घसीटा, एहर आय कहां के न्याय !”
ओतन पल्टन अउ बुलुवा ला, भोला अपन पास बलवैस
अउ पल्टन ला उभरावत हे -“”जानत हवस साफ सब गोठ.
तोर गांव मंय गेंव तोर सुन, तब हे तोरेच पर विश्वास
मोरेच तन बयान तंय देबे, ताकि विरोधी हा फंस जाय.
यदि घुरुवा के मदद ला करबे, न्यायालय मं उनकर जीत
तंहने मोर मुड़ी पर आफत, मोर जीविका जाहय छूट.”
पल्टन कथय -“”करव झन चिंता, भेखदास हा दुश्मन मोर
ओकर पक्ष लेत घुरुवा हा, तब ए बड़का दुश्मन मोर.
गांव के आपुस झगरा ला मंय, न्यायालय मं कहिहंव शोध
जब एमन फंस दण्डित होहंय, तभे मोर आत्मा हा जूड़.”
भोला ला बुलुवा ला धांसत -“”काम करत हस हमर विभाग
झूठ साक्ष्य देबे तंय रच पच, मुजरिम झन बोचकंय बेदाग.”
बुलुवा किहिस – “”याद हे अब तक, जब मंय बनेंव गांव – कोतवाल
मोर विरुद्ध चलिस बुलुवा हा, ओकर बदला लुहूं निकाल.”
आरक्षक हा फेर पूछथय -“”एक बात के उत्तर लान –
हमर विरुद्ध कोन हे साक्षी, घुरुवा मन के कोन गवाह ?”
बुलुवा कथय -“”नाम ला सुन लव – बल्ला अउ मालिक हे नाम
ओमन न्यायालय मं आहंय, घुरुवा मन के लेहंय पक्ष.
साक्षी दिहीं निघरघट अस बन – घुरुवा मन बिल्कुल निर्दाेष
ओमन भोला ला नइ मारिन, भोला खुद बोलत हे झूठ.”
भोला गरजिस -“”कान खोल सुन – बन्दबोड़ हा तुम्हर निवास
उंहचे रहिथंय बल्ला मालिक, तब हे तुम्हर सदा मिलजोल.
तुम ओमन ला साफ बताना – थाना पुलिस के शक्ति अपार
ओकर साथ कभू झन उलझव, वरना बहुत गलत परिणाम –
उनकर पर आरोप झूठ मढ़, फंसा सकत प्रकरण गंभीर
घुरुवा मन के दुर्गति होवत, उही रिकम के उंकरो हाल.
यदि ओमन हा चहत सुरक्षा, न्यायालय झन आवंय भूल
बन्दबोड़ मं रहंय कलेचुप, पर हित के रस्ता ला छोड़.”
न्यायालय के टेम अ‍ैस तंह, सब कोई न्यायालय गीन
मुंशी अधिवक्ता साक्षी मन, पहुंचिन लकर धकर धर रेम.
मोतिम न्यायाधीष अ‍ैस अउ, कुर्सी पर बइठिस बिन बेर
पिंजरा अस कटघरा बने हे, ओमां मुजरिम मन हें ठाड़.
दूसर तन कटघरा तउन मं, पल्टन अउ बुलुवा कोतवाल
एमन करत विचार अपन मन – हमला करिहंय काय सवाल !
शासन के अभिभाषक कण्टक, ओहर इंकर पास मं अ‍ैस
कहिथय -“”तुम्मन गांव मं रहिथव, तुम निष्कपट सरल इंसान.
लंदफंद ले घृणा करत हव, तब तुम पर हे बहुत यकीन
तुम्मन सत्य गवाही देहव, एको कनिक कहव नइ झूठ –
भोला तुम्हर गांव मं पहुंचिस, संग मं धर शासन के काम
तब मुजरिम मन एकर संग मं, जबरन झगरा ला कर दीन.
आरक्षक ला दोंह दोंह कुचरिन, ढेंकी मं कूटत जस धान
अपराधी मन धमकी देइन – हम लेबो तोर जीयत जान.
घटना होइस तेन ला टकटक, देखे हवय तुम्हर खुद नैन
बीच बचाव करेव तुम्मन तब, मुजरिम तुमला भी रचकैन ?”
पल्टन बुलुवा झप स्वीकारिन – “”तंय हेरे हस सत्य जबान
बिल्कुल साफ बात होइस हे, सच मं उथय सुरुज भगवान.”
ओमन ला छुट्टी मिल गिस तंह, लकर धकर बाहिर मं अ‍ैन
पल्टन हा बुलुवा ला बोलिस – “”हमर आज माछी अस हाल.
माछी खोजत रथय घाव ला, अमरा के पावत संतोष
हम्मन मन माफिक अमरे हन, विजयी होय बड़े जक होड़.
विस्तृत तर्क हमर तिर नइये, मुंह हा देतिस गलत निकाल
मगर हमर बूड़त डोंगा ला, खुद कण्टक हा लीस सम्हाल.”
न्यायालय मं रुके हे मेहरु, उहां के जांचत हे सच हाल
सुने रिहिस जे तथ्य पूर्व मं, सच उतरत हे आधच गोठ.
मेहरुपहुंचिस अजम के तिर मं, मुजरिम मन के इही वकील
मेहरुकिहिस – “”सुनत आवत हन, तेन बात पर ठुंक गिस कील.
जब गवाह मन हाजिर होइन, गीता के किरिया नइ खैन
ना “मी लार्ड’ किहिन अधिवक्ता, अउ ना बोम फार चिल्लैन.
अनुभव होवत हवय जेन अभि पहिली कहां उवाटी ।
लुलसा ला चढ़ जथय चेत जब परत कोड़ना माटी ।।
अजम हा मुच मुच मुसका बोलिस -“”अइसन दृष्य फिल्म के आय
दर्शक हा आकर्षित होथय, तब निर्माता झोरत नोट.
मगर इहां के कथा अउर कुछ – इहां होत कारज गंभीर
प्रकरण ला सुलझाय सोझ बर, तर्क रखत हें सोच विचार.
न्यायाधीष के बदली होथय, तब आथय नव न्यायाधीष
एकर बारे प्रश्न उछलथय – कोन किसम हे एकर न्याय!
सुनत निवेदन या दुत्कारत, शांति बुद्धि या उग्र स्वभाव
अक्सर कड़ा दण्ड ला देथय, या फिर दोष ले करत अजाद ?
एकर अर्थ जान अब अइसन – न्यायाधीष पर हे सब न्याय
मुजरिम ला बेदाग छोड़ दे, या दे सकत दण्ड ला धांय.
पर अइसन कभुकाल मं होथय, अक्सर होत तउन ला जान –
धारा साक्ष्य नियम अउ स्थिति, निर्णय देत इहिच अनुसार.
हमर बिखेद ला घलो सुनव तुम – हम वकील मन हन बदनाम –
पक्षकार ले रुपिया खाथंय, देखत रथंय स्वयंके स्वार्थ.
सच मं हम वकील मन स्वार्थी, एकर साथ एदे अउ गोठ –
पक्षकार हा जीत जाय कहि, हम्मन करथन अथक प्रयास.
पक्षकार यदि विजयी होवत, हम्मन खुशी होत भरपूर
अगर हार जावत हे ओहर, तब हम होवत मरे समान.”
मुजरिम मन ला अजम हा बोलिस – “”अब जब तुम न्यायालय आव
धीर बुद्धि निर्भीक निघरघट, तइसन साक्षी धर के लाव.
कण्टक अभिभाषक हा ओला, अटपट पूछ डिगाहय राह
ओकर सम्मुख जउन हा ठहरय, ओला लान लगा के थाह.”
तब घुरुवा हा अजम ला बोलिस – “”हमर गवाह हवंय हुसियार
उंकर नाम बल्ला अउ मालिक, ओमन कभू खांय नइ हार.”
अजम वकील ओ तिर ला छोड़िस, इंकर पास खेदू हा अ‍ैस
ओहर हा निÏश्चत लगत अउ, मुंह के रंगत चमकत तेज.
खेदू ला बीरसिंग हा बोलिस – “”तंय हस खूब निघरघट जीव
तोर विरुद्ध चलत हे प्रकरण, तब ले बघवा असन निफिक्र.
लगथय – तोर हाथ मं निर्णय, न्याय के दिश ला सकत किंजार
तोर विजय जब ध्रुव अस निश्चित, फोर भला तंय एकर भेद ?”
खेदू एल्हिस -“”तुम देहाती, जानव नइ अंदर के पोल
श्रम ला बजा अन्न उपजाथव, पर नइ पाव उचित खाद्यान्न.
शासन हा इनाम कई बांटत – भारत रत्न शिखर सम्मान
पर ग्रामीण के हाथ हा रीता, भाग गे मछरी जांग समान.
देश विदेश उच्च पद कतको, अधिकारी के पद ला पात
मगर गांव के शिक्षित मन हा, कहां उच्च पद पावत झींक !
देश के भक्त – समाज के सेवक, गांव मं होवत कई इंसान
पर ओमन विख्यात होंय नइ, डूब जात उनकर यश नाम.”
खेदू हा नंगत झोरिया दिस, लागिस बात हा जहर समान
मगर सत्य ला कोन हा काटय, सच के सदा मान सम्मान.
खेदू हा फिर बात बढ़ाइस -“”पूछत हव प्रकरण ला मोर
मोला जेन पलोंदी देवत, शासन पर हे ओकर धाक.
हांका पार कहत हंव मंय हा – निर्णय मं होहंव निर्दाेष
पर एकर बर समय मंगत हंव, तंहने पूर्ण जनार्दन गोठ.
छेरकू मंत्री जउन हा धारन, गुप्त रखत हंव ओकर नाम
खभर समान्य होत जग जहरित, लेकिन छुपत खभर संगीन.”
खेदू हंसत उहां ले हटथय, तभे बहल कवि ओ तिर अ‍ैस
बोलिस – “”हम ग्रामीण दुनों झन, तंय कवि अस – मंय तक कवि आंव.
रहन सहन अउ काम एक अस, तब मंय करत तोर पर आस
मुड़ी मिला के बात करन अउ, मन के भेद ला बाहिर लान.”
मेहरुमुसका प्रश्न उछालिस – “”तोर बात के अंदर राज
खभर विशेष लुका राखे हस, हां अब बता हृदय के बात ?”
बोलिस बहल -“”जान ले तंय हा – इहां विश्वविद्यालय खास
उहां बहुत झन लेखक आहंय, लेखक सम्मेलन हे खास.
आत रायगढ़ ले छन्नू हा, बिलासपुर के आत बिटान
आत रायपुर ले दानी हा, जगदलपुर ले सातो आत.
आत अम्बिकापुर ले मिलापा, दुर्ग ले परसादी हा आत
नंदगंइहा बइसाखू आवत, सन्तू ढेला तंय मंय और.
महासचिव – अध्यक्ष चुने बर, लेखक संघ के बीच चुनाव
हम तुम घलो उदीम उचाबो, ताकि पान हम पद एकाध.”
मेहरुकथय -“”ठीक बोलत हंस, अब तंय बता स्वयं के हाल
रचना काम चलत हे बढ़िया, सरलग चलत लेख के काम ?
“”हव मंय लेख चलावत सरलग, एकर संग अउ एक विचार –
मंय हा शहर रायपुर जावंव, उहां करंव साहित्य के काम.
आकाशवाणी अउ दूरदर्शन, दुनों केन्द्र मं हाजिर होंव
रचना ला प्रमाण मं राखंव, सब कोती करवांव प्रचार.”
“”दुनों केन्द्र मं निश्चय जा तंय, उहां अपन प्रतिभा ला खोल
यदि उद्देश्य सफलता पाबे, मंय पा लुहूं हर्ष संतोष.
अगर तोर रचना अस्वीकृत, पर तंय होबे झनिच उदास
काबर के उहां होत धांधली, प्रतिभा के होवत अपमान.
जेकर पहुंच रथय ऊपर तक, जे लेखक नामी दमदार
मात्र उही मन जगह अमरथंय, उंकरे रचना पात प्रचार.”
सरकिस बहल अपन रद्दा बल, अपराधी मन छोड़िन ठौर
न्यायालय के काम खतम तंह, उहां कोन बिलमन छन एक !
ओमन बस थोरिक अस टसके, अ‍ैस गरीबा उंकर समीप
ओकर संग मं एक युवक हे, जेहर सब संग हाथ मिलात.
कहिथय – “”मोर नाम हे जइतू, सेना के मंय आंव जवान
मंय हा मुढ़ीपार जावत हंव, कई दिन ले राखे हंव ठान.
भारत ला तुम्मन जानत हव, ओहर मोला बहुत बलैस
लेकिन जलगस भारत जीवित, मोला बखत मिलन नइ पैस.
भारत ला मंय भांटो मानों, तब अमरउती बहिनी आय
ओकर साथ भेंट मंय करिहंव, इही विचार पकड़ के आय.”
किहिस गरीबा हा मेहरुला – “”हमर साथ मं तंय चल मित्र
अगर एक कवि साथ मं होथय, मिलत सुने बर कथा विचित्र.”
मेहरुस्वीकारिस -“”सच बोलत – बहुत बिचित्र जगत के हाल
देश भक्त जनहितू एक तन, पर कोती घालुक चण्डाल.
भारत अपन देश के खातिर, अपन प्राण कर दिस बलिदान
पर छेरकू – धनवा जइसन मन, करत अपन जन के नुकसान.”
मेहरु- जइतू अउर गरीबा, मुढ़ीपार के धर लिन राह
भारत के घर मं पहुंचिन अऊ, लेवत हें अंदर के थाह.
अमरउती हा दुखी दिखत हे, हाथ चुरी ना मुड़ सिन्दूर
नाक फुली ना माथ न टिकली, धोवा लुगा उहू कुरकूर.
भारत के सुरता हा आवत दृष्य दिखत हे नाना ।
अमरउती मन सम्बोधन बर गावत विरह के गाना ।।
पहिली गवन के मोला डेहरी बइठारे,
नारे सुअना बइठेहवंव मन बांध
तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर,
ना रे सुअना दुख पाथय अंधनिरंध
भारत साथ पाएंव सुख थोरिक,
चल दिस देश बचाय
ओकर बिना एदे रात हा मोला,
सउत असन सताय.
जावत जावत किहिस भारत हा,
रखबे ए बात के चेत –
तुलसी के बिरवा तोर मुरझुर मुरझुर,
तोर पिया रन खेत.
तुलसी मं पानी छिड़क के मंय देखेंव,
रात बिरात के जाग
डारा बड़े झुमरय तंह जानंव,
भारत हा हरसात.
छोटे ला बड़का छुए तंह जानंव,
झींकत मोर बंहा
छोटे हटय तेला मानों मंय
बोलत – धर लेग जाहव कहां !
जहां दुनों मिल हालंय अउ होलंय,
हम जोड़ी हन एक
तीसर डार हलय बस थोरिक,
पर मनसे लिस देख.
हवा चलय कहुं झरपट आवय,
भारत क्रोध देखात
छोटे हा जावय बड़े तिर मं तंह,
मंय हा मनात पथात.
इसने कटत दुख के छन चुप चुप,
ान ला रखंव मन बांध
बस दू – चार दिवस नहकय तंह,
भारत पत्र भिजाय.
एक दिन देखेंव तुलसी ला हालत,
हो गेहे चालू लड़ई
उही बड़े डारा ऊपर बाढ़िस,
भारत कर दिस चढ़ई.
नींद न आवय – बिना छिन सोए,
काट डरेंव मंय रात
तुलसी के बिरवा संग मंय एके झन,
कलप कलप करेंव बात.
एक ठक पत्ता गिरिस तंह मानेव – बस एक दुश्मन कटिस
बर बर गीरिन जहां पत्ता मन,
शत्रु के लाश पटिस.
एक ठक फुलगी बढ़िस तंह मानेंव,
जीतिस के चौकी एक
कई ठक फुलगी नवा नवा देखेंव,
पाए हें चौकी अनेक.
मुंह झुलझुल ले उठ मंय नहाएंव,
बारेंव उदबत्ती दीप
तुलसी एहवातिन के पांव परेंव मंय,
मानेंव अड़बड़ सुख.
उही दिवस उपवास ला रहि के,
काटेंव हंसमुख दिन
नजरे नजर मं भारत हा झूलय,
आइस यादे हर छिन.
एक दिन देखेंव बहुत डारा मिल के,
बड़का पर झुम गीन
जान डरेंव भारत हा फंसगिस,
भाग नइ जतकत.
छिन रुक तुलसी के बिरवा हरियाइस,
होगिस शत्रु के नाश
टिकली अउ चूरी सिन्दूर अमर हे,
बंधगे हृदय विश्वास.
ओतके मं देखेंव ए दृष्य ला आगू
नारे सुअना
हो गेंव मंय हा बिचेत
तुलसी के बिरवा मोर मुरझुर – मुरझुर
नारे सुअना
जान डरेंव पति खेत.
नारे सुअना
मोर पती रन खेत ………. ।।
अमरउती हा बंद करिस जब खुद के बिपत कहानी ।
मेहरु- जइतू अउर गरीबा पहुंचिन तीनों प्राणी ।।
अमरउती इनकर बइठेबर, सरकी लानिस तेन तुनाय
बहुत अधीनी ले दिन काटत, काकर तिर जा बिपत सुनाय !
अमरउती के पति भारत हा, अपन देश बर जीवन दीस
मगर देशवासी मन स्वार्थी, छूटत कहां फर्ज के कर्ज !
“छत्तीसगढ़ी सरल मिट्टी अस, जउन करिस हे क्षेत्र विकास
पर छत्तीसगढ़िया मन हा भिड़, करत हइन्ता बीच बजार.
छत्तीसगढ़ी दीन कंगलिन अस, ओकर सदा होत हिनमान
“भाषा आय’ अगर बोलत, मुंह ला दबा – दबात अवाज.’
जेन मिलत अमरउती जेवत, सरफा परत बचे बर जीव
बसत गरीबी गाड़ के खमिहा, निर्बल के सुर्हरावत जीब.
तीनों झन सरकी पर बइठिन, मन मं नइ लाइन कुछ भेव
चिखला मं सनाय रहिथय पर, छिनमिन कहां करत हे नेव !
जइतू किहिस – “”तोर भाई हम, अब ले तंय झन कर कुछ फिक्र
जउन बेवस्ता आय तोर पर, हमर पास कर बेझिझक जिक्र.
भारत रिहिस राष्ट्र के प्रेमी, ओकर अस नइ भारत धाम
यद्यपि भारत हा जग मं नइ, तभो अमर हे ओकर नाम.
ओला नता मं भांटो मानों, हमर दुनों मं चलय मजाक
ओला हार जाय कहि सोचंव, मगर ऊंच तन ओकर नाक.
मंय बीमार परेंव बेधड़क, भारत जतन करिस दुख झेल
मोला खूब प्रसन्न रहय कहि, हंसा डरय बिजरा के एल.
मंय घबरा के अइसे बोलंव – अब नइ बांचय जीवन मोर
तंय हा मोला छोड़ के भग झन, जलगस नइ पहुंचत समसान.”
भारत हा मुसकावत बोलय -“”अभी प्रसन्न कहां यमराज
साले, तोला कोन मारिहय, बचे हवय अभि देश के काम.
अगर कहूं तन जाय के होहय, तब हे मोर प्रथम अधिकार
सत्य बचन ला जांच देखबे – होवत विजय मोर के तोर ?”
वास्तव मं भारत हा जीतिस, अउ मंय हार गेंव हर शर्त
ओकर स्मृति सदा सतावत, चुहे धरत आंसू के धार.”
सबके आंसू छलक बोहावत, आंसू रोक सकिस नइ आंख
नदिया मं बंधाय बांधा हा, बढ़त पुरा नइ पावय रोक.
अमरउती हा आंख पोंछतिस, तंहने लुगा चिरा गिस फर्र
दुब्बर ला परेशान करे बर, दू असाढ़ आ जाथय सर्र.
मेहरुलुगा लाय बर उठथय, अमरउती हा छेंकिस बीच –
“”भारत हा मोला शिक्षा दिस – कभु झन लेबे पर के चीज.
जलगस मंय हा जीवित जग मं, पूरा करिहंव तोर सवांग
अगर युद्ध मं मंय हा चंदन, तब झन तजबे आस कड़ांग.
अपन जिन्दगी अवस पालबे, महिनत कर – दुख संग कर होड़
देसू हा जब बाढ़ जहय तंह, पटक दिही सब सुख ला गोड़.”
देसू नाम सुनिन तीनों झन, जकर बकर देखत सब कोत
जइसे नाविक बीच सिन्धु मं, खोजत रथय कहां के पोत !
जइतू अचरत मं भर पूछिस – “”कते डहर हे देसू ।
भांचा ला हम चहत देखना – जस फागुन हा टेसू ।।
अमरउती हा शर्म मं गड़गे, देखे लगिस स्वयं के पांव
एमन बिगर बताय समझ गिन, हमर बहिन हे भारी पांव.
“”यदपि जिये के अब लालच नइ, पर ए कारन घसलत – हाय
देश डहर जे नाम हा जुड़थय, जीयत ओकर फूल बचाय. ”
मेहरुओला ढाढस बांधिस – “”मरना नइ संहराय के काम
कर संघर्ष जउन ही जीयत, ओकर जगमग होवत नाम.
लक्ष्मीबाई जिनगी खोतिस, पति चिंता मं चिता मं कूद
गोर मन संग कोन हा लड़तिस, अजर अमर नइ रहितिस नाम.”
कथय गरीबा, अमरउती ला – “”तंय हा हमर मदद नइ लेत
तोर पास हे धन के कमती, तब तंय कइसे भरबे पेट ?”
अमरउती बोलिस – “”मंय पाहंव, शासन ले अड़बड़ अक नोट
जीवन अपन चलाहंव सुदृढ़, देसू बर रख लुहूं रपोट.”
मेहरुकिहिस – “”वाह रे शासन, तंय देथस आश्वासन मात्र
मरन देस ना देस मोटावन, जीवित के करथस दशगात्र.”
कथय गरीबा हा जइतू ला – “”तंय हा बता एक ठन भेद
जे सैनिक शहीद हो जाथय, ओकर रथय वंश परिवार.
ओकर मदद करत शासन हा, ताकि अभाव कष्ट हो दूर
अमरउती कब सुविधा पाहय, पेंशन भूमि नगद मं नोट ?”
जइतू कथय -“”साफ फोरत हंव – शासन मंगत अचूक प्रमाण
यदि सैनिक के मृत्यु होय हे, मिलना चहिये ओकर लाश.
पर भारत के जटिल हे प्रकरण, हम जानत हन वाजिब गोठ
भारत हा दुश्मन ला मारिस, ओकर संग खुद होय शहीद.
पर भारत के लाश मिलिस नइ, तब शासन दुविधा के बीच
भारत ला “फरार’ मानत अउ, मदद करे बर हे असमर्थ.
अमरउती ला मदद मिलय नइ, ना भुंइया ना धन के लाभ
हम ओला ढाढस हे सकथन, एकर सिवा शक्ति नइ और.”
अमरउती ला दिन सम्बोधन, तीनों झन अब गोड़ हटात
“भाई मन बिन खाय लहुट गिन’ इही सोच बहिनी पछतात.
तीनों झन पाछू नइ देखिन, रेंगिन चुप – पटके बिन पांव
पर जब जानिन – दिदी हिम्मती, गरब साथ देखिन कई घांव.
एमन आगू कोती रेंगिन, जहां पुसऊ के घर तिर गीन
टीकम चम्पी देवलू बोंगडू, खिघू आदि के लगे हे भीड़.
पुसऊ हा रोवत मुड़ ला पटकत, अपन प्राण तक के सुध खोय
देवलू पूछिस -“”काबर कलपत, आय तोर पर का तकलीफ ?”
मन सम्बोधिस तहां पुसऊ हा, खोले बर लग जथय बिखेद –
“”जान लेंव मंय कतका होथय, पुंजलग अउ कंगला मं भेद !
मंय हा करों घमंड उठा मुड़ – असरुहवय अचक धनवान
ओला मंय समधी बनाय हंव, यने उठेहंव मंय खुद ऊंच.
पर अब वाजिब पता चलिस हे – अपन बेवस्ता फोरत साफ –
मोर दुलौरिन अस धरमिन हा, नइ जीयत हे ए संसार.
हत्यारा फंकट अउ असरु, मोर टुरी के जीवन लीन
दाइज के दानव आखिर मं, धरमिन ला खुद के चइ लीस.”
मनसे मन कारण जानिस तंह, कोइला अस मुंह करिया गीस
जइसे घटके गंहुवारी ला, कुहकुह पाला हा झड़कैस.
टीकम टांचिस तुरुत पुसऊ ला -“”अचरज होत बात सुन तोर
तंय पतियाय के लाइक गोठिया, हमला काबर करत अवाक !
धरमिन आय तोर सग पुत्री, तब ले मांगत ओकर मौत
लगथय -“”तंय पगला होगे हस, काम करत नइ तोर दिमाग ?”
पुसऊ किहिस -“”मंय हा नइ पगला, जउन बताय जमों सच आय
यदि विश्वास मोर ऊपर नइ, पता करव जा छुईखदान.
असली मं मंय समझ पाय नइ, धरमबती के भाषा व्यंग्य
मंय भुलाय रेहेंव गुमान मं – समधी पाय धनी अड़जंग.
मोर मया हा जहां बीत गिस, पहुंच गेंव खट छुईखदान
असरुके व्यवहार देख के, मोर प्रान हा सुखगे ठाड़.
मोर बिगर ओंमन हा दे दिन, मोर मया धरमिन ला दाग
मुख दरसन तक मिल नइ पाइस, तब लगगे तन बदन मं आग.
समधी ला कारण पूछेंव मंय, ओहर कुछ नइ दीस जुवाप
अउ दमांद तिर प्रश्न करेंव तब, ओहर फुंफकारिस जस सांप.
खखुवा के फंकट पर बिफड़ेंव – “”कहां करे धरमिन ला मोर
सम्मुख लान करव अभि सुपरुत, वरना बना दुहूं गत तोर.”
फंकट बोलिस -“”बता तिंही हा – एक वायदा जे कर देस –
मंय हा दुहूं फटफटी तोला, ओला लाने हस का साथ !
तोर पास नइ फुटहा कौड़ी, तब काबर मारे हस डींग
पास मं नइ हरिया अक भुंइया, पूछत पर के कतका खेत !
चालबाज अस तंय सोचत हस – समधी के धन खाहंव लूट
मगर दार हा चुरन पात नइ, तब चहली मतात सब खूंट.
धरमिन हा खुद जीवन ला दिस, रुतो अपन तन माटीतेल
पर तंय बद्दी डारत हम पर, हट जा वरना दुहूं गफेल.”
फंकट धरिस मोर चेचा ला, घर ले बाहिर दीस खेदार
मुड़ ला पटकत उहां ला छोड़ेंव, पहुंच गेंव जे जगह बजार.
हर मनसे के मुंह ले होवत धरमबती के चर्चा ।
उंकर बात सुन अइसे लगगिस – परत मोर पर बरछा ।।
सुनन सकय नइ भिथिया तक हा, नम्मू किहिस कान मं मोर –
“”होना रिहिस तेन तो होगिस, अब तंय घिरिया बात जतेक.
घटना ला लइका तक जानत – हतियारा हे तोर दमांद
मगर साक्ष्य ला दिही कोन हा, फंकट रख दिस सब ला बांध.
अगर भूल के बोम मचाबे, तोरेच पर आहय सब कष्ट
असरुहवय बिकट चलवन्ता, राख बनाही जीवन तोर.”
“”हे कानून सबो के भल बर, तब काबर होहय अन्याय
सुरुखुरुमंय थाना जावत, मोर दुखी के उंहे हियाव.”
अतका बोल ओ जगहा ला तज, थाना पहुंच गेंव गोहराय
बोलेंव – अत्याचार होय हे, तब मंय आय इहां तक दौड़.
असरुडहर ढुलंग गें सब झन, लेवय कोन मोर अब पक्ष
यदि गोहार ला तुम सुन लेहव, तंहने निश्चय न्याय के जीत.”
थानेदार हा मोला घूरिस, किहिस बाद मं डारा मार –
“”तोर टुरी हा मरिस जेन छन, चिरई घलो नई रिहिस मकान.
संकरी लगा – भितर घर मं घुस, धरमिन आत्मघात कर लीस
निरपराध हें फंकट असरु, तंय झन बढ़ा व्यर्थ के बात.
मंय फंसाय बर यत्न करे हंव, मगर प्रमाण हाथ नइ अ‍ैस
आखिर प्रकरण ला खारिज कर, लहुट गेंव चुप उल्टा पांव.”
मंय अड़बड़ करलई करेंव तंह, थानेदार भड़क गिस जोर
तंहने छाती पर पथरा रख; लहुटेंव मुढ़ीपार के खोर.”
दुखी पुसऊ ला दीस सांत्वना, फेर गरीबा बोलिस सोच –
“”लगथय – सबल धनी मन खाहंय, हिनहर के ओद्दा तन नोच.
सब तन इहिच कथा ला सुनथंव – मनसे ला जेवत इन्सान
दाइज दानव हा छुछुवावत, अब नइ बांचय जीयत प्राण.
जब मंय एकर अंदर घुसथंव, दिखत नदानी स्वयं हमार
एक खात धोखा तब दूसर, बत्तर अस देवत हे नेम.
थोथना भार गिरत हन भर्रस, तंहने चेत लहुटथय खूंट
ऊंट जहां जंगल पर चढ़थय, ओकर भरभस जाथय टूट.
घरमिन के शादी जोंगे हस बोर के खुद के पूंजी ।
दूध – दूहना दुनों फूटगें गोभत दुख के सूजी ।।
जुगनू – सुरुज एक नइ होवंय, अन्तर होथय अन्धनिरन्ध
सब रहस्य ला जान के काबर, असरुसंग बनाय सम्बन्ध !
धरमिन ला सुख पाहय कहि के, फंकट ला तंय लड़की देस
लेकिन यहू बात ला जानत – धरती नभ होवंय नइ भेंट.
पुचकट लछनी बचे हवय अभि, ओकर कइसे निभिहय ब्याह
पूंजी पसरा राह पकड़ लिस, टोर भला अब खुद के न्याय ?”
धर के मुड़ी बइठ के उखरु, सुनत पुसऊ हा धर के ध्यान
कहिथय -“”सोला आना सत्तम, होगिस खतम मोर अभिमान.
एक बिहाव मं नसना टूटिस, जतका अस धन जमों खुवार
लछनी के शादी अब मुश्किल, जीवन मोर होत धिरकार.”
जइतू बोलिस -“”फिक्कर झन कर, हिम्मत अंड़ा बढ़ा तंय गोड़
धीरज – कर्म साथ यदि होवत, मनसे जीत जथय सब होड़.
लछनी के शादी जब होहय, तब झन करबे वर के छांट
नेक व्यक्ति अउ बंहाबली संग, जोर सकत वैवाहिक गांठ.
यदि बसुन्दरा तभो फिकर नइ, पर आदत मं निश्छल साफ
बिपत देख झन घबरा जावय, अइसन वर ला पहिली देख.
हम उपदेश कहां ले देवन, उमर मं हम अन लइका तोर
तंय जग के सब भेद ला जानत, अनुभव तक मं कुबल सजोर.”
बुजरुक खिघू बहुत ला सुनथय, तंहने बफल के बोलिस सजोर-
“”अतिक बखत ले तोर सुने हंव, अब तुम सुनव बात ला मोर.
तुम्मन आजकल के टूरा, बड़बड़ात बादर अस खूब
लेकिन मदद करे ले भगथव, जइसे नंदा जथय बन दूब.
खुद ला बड़ ज्ञानिक बोलत हस, बुजरुक ला देवत उपदेश
अगर बिपत ला हरना होहय, तंहने घुसड़ जहय सब टेस.
न्यायालय सच निर्णय देतिस, दैनिक सत्य बतातिस सोध
तब फिर काकर गरज परे हे – इनकर डंट के करय विरोध !
तंय हा चाहत देश के उन्नति, मगर विचार होय नइ पूर्ण
जलगस जनता कष्ट भोगिहय, कोदई समान छरा के चूर्ण.”
खिघू एल्ह के ताना मारिस, तंह जइतू ला चढ़गे खार
यद्यपि मनसे नींद ला भांजत, मगर चढ़त बिच्छी के झार.
पूछिस -“”काबर कहत बिस्कुटक, साफ बात ला सब तिर फोर
अपन शक्ति भर मदद ला देहंव, मोर पांव पाछू नइ जाय.”
धांधिस खिघू -“”अगर राजू हस, लछनी संग कर लेव बिहाव
पुसऊ के फिक्र खतम चुर्रुस ले, ओकर जीवन नव उत्साह.”
खूब अकबका भीड़ हा देखत, बोलई बंद मुंह हा चुपचाप
बक खा गीन गरीबा मेहरु, मानों सूंघिस बिखहर सांप.
हांक बजा के जइतू बोलिस -“”सुन लव बात कृषक बनिहार
मंय हा लछनी ला अपनाहंव, खिघू के सरियत हा स्वीकार.
मंय हा दाइज नइ मांगव – नइ होवन दंव बरबादी ।
व्यर्थ खर्च ला रोक लगाबो – साधारण अस शादी ।।
सब मनसे के हृदय फूल गिस, मगर पुसऊ ला ब्यापत फिक्र
चम्पी हा कारण जाने बर, करिस पुसऊ ले तुरुत सवाल –
“”जइतू हा स्वीकार लीस सब, करिहय लछनी साथ बिहाव
ओहर दाइज तक नइ मांगत, हर्षित हवंय जमों इंसान.
नोनी के तंय सगे ददा अस, मगर लुकावत अपन विचार
यदि मन मं शंका हे कोई, सब के पास खोल दे साफ ?”
बोलिस पुसऊ -“”तुमन जानत हव – भारत हा शहीद हो गीस
ओकर विधवा अमरउती हा, पावत हवय कष्ट गिदगीद.
याने सेना के जवान मन, बोकरा असन मरत अध बीच
तंहने ओकर खटला बपरी, आपसरुप घुसत दुख कीच.
यदि जइतू पर कुछ दुर्घटना, लछनी के भावी बर्बाद
इही सोच मंय नटत पिछू तन, जइतू ला नइ देत जुवाप.”
मेहरुकथय -“”गलत सोचत हस, शंका तोर स्वप्न अस व्यर्थ
सब सैनिक मन बीच मरंय नइ, कतको झन भोगत सुख अर्थ.
मन के भ्रम डर ला बाहिर कर, लछनी ला जइतू संग भेज
इनकर जोड़ी लकलक फभिहय, तोर माथ हा उठिहय ऊंच.”
खिघू किहिस -“”शुभ टेम पाय हस, लछनी ला जइतू तिर हार
सब के मन जोड़ी पर जावत, तंय संबंध ला कर सिवकार.
अगर सुअवसर ले चूकत हस, फिर नइ पास समय कंगाल
जइसे बेंदरा फेर पाय नइ, अगर हाथ ले छूटत डाल.”
पुसऊ जमों के कहना सुनथय, मन मं खूब विचारिस घोख
बोलिस -“”तुम्हर सलाह जंचत हे, मंय उत्तर देवत हंव सोध.
लछनी ला मंय हिले लगाहंव, सिर्फ एक जइतू के साथ
मगर “बिदा’ ला अभि रोकत हंव, एक बात हा आवत आड़ –
धरमिन – आत्मा शांत होय नइ, ए कारण शुभ काम थेम्हात
कुछ दिन बाद अपन लछनी ला, करिहंव बिदा हर्ष के साथ.
पर जइतू ले आस एक ठक – रहय अपन प्रण मं अंड़ ठाड़
वरना लछनी के चरित्र पर, लग जाहय बदनाम के दाग.”
जइतू हा स्वीकार करिस तंह, सबके मन भर गिस संतोष
पुसऊ के हिरदे फूल फूल गिस, काबर के पागिस प्रण ठोस.
खिघू हा पुसऊ ला झिड़की दिस -“”जइतू जब बन गीस दमांद
एमन ला जेवन करवा अउ, बढ़ा प्रेम ला कड़कड़ बांध.
जइतू मेहरुपुसऊ गरीबा बइठिन खाए खाना ।
लछनी लजालजा के परसत देखत हे करनेखी ।।
जइतू अउ लछनी मन देखिन, एक दुसर ला तिरछा नैन
कुछ मुसकान मुंहू पर आवत, मगर प्रेम नइ खोलिन बैन.
इंकर दुनों के हालत देखिन, मेहरुअउर गरीबा मित्र
मगर बात ला लुका के रख लिन, फइलन दीन प्रेम के इत्र.
जेवन कर जब बाहिर आथंय, तब इनकर मं चलत मजाक
कथय गरीबा हा मेहरुला -“”सुन तो मित्र एक ठक बात.
मंय लछनी ला देख पाय नइ, मंय तो भोजन मं बिपताय
यदि तंय लछनी ला देखे हस, बता भला ओकर कस रुप ?”
मेहरुकिहिस – “”करंव का वर्णन, लछनी हे खूबसूरत दिव्य
जइतू ओकर एंड़ी के धोवन, टका सेर के अंतर जान.
बिगर पुछन्ता के होवत हम, जइतू करय हमर नइ याद
लछनी संग मं भूले रहिहय, काकर करा करन फरियाद !”
जइतू हा मुसकावत बोलिस – “”झनिच लगाव मोर पर दोष
सब संबंध तुम्ही जोड़े हव, अपन कर्मफल तुम खुद खाव
पर मंय रायगढ़ शहर मं रहिथंव, हम जानत मित्रता के अर्थ
तुम्हर कदर जीवन भर करिहंव, अमर सदा बर रिश्ता मीठ.”
तीनों झन सुन्तापुर लहुटिन, अ‍ैस गरीबा अपन मकान
तभे अ‍ैस टहलू अउ बोलिस -“”आय मोर पर दुख के भार.
जब धनवा के सब नौकर मन, करे रेहेन हठकर हड़ताल
उही बखत मंय बदे रेहे हंव – बोहंव अवस जंवारा जोत.
मोर कसम हा झन टूटय कहि, उठा डरे हंव बड़ जक काम
पर रुपिया के परत लचारी, जबकिन अठवई लगगे आज.
नरियर लिम्बू बोकरा कुकरी, अब तक ले नइ पाय खरीद
देव काम हा सिद्ध हे निश्चय – जब लेहंव ऊपर के चीज.
मोर पास हे खेत एक ठन, ओला बेच दुहूं मंय आज
यद्यपि अंतस मं दुख होवत, मगर सिद्ध करिहंव शुभ काम.”
कथय गरीबा -“”भइया टहलू, अब तो नींद छोड़ के जाग
तोर पास जब कुछ कूबत नइ, काबर धरत व्यर्थ फटराग !
देव – धर्म ला निश्चय मानों, लेकिन पूर्व जांच लव टेंट
गलत काम ला तंय उठाय हस, जब नइ शक्ति भरे बर पेट.
अब तंय हा कइसे निपटाबे, आय मुड़ी पर गहगट काम
पूर्ण करत तब कंगला होवत, अगर अपूर्ण होत बदनाम.”
किहिस गरीबा हा समझौती, पर टहलू ला लग गिस बाण
तमकिस -“”सब उपदेश ला देथंय, मगर मदद ले झींकत हाथ.
धनसहाय हा हवय दयालू, जेहर सबके हरथय कष्ट
ओकर शरण मं अब गिरना हे, काबर करंव समय ला नष्ट !”
खूब भड़क के कथय गरीबा -“”अपन ला बेंचेस धनवा – हाथ
अब ओकर तिर खेत ला बेचत, अपन गृहस्थी बेंच दे बाद.
तुम्हरे धन ला धनवा खाथय, ऊपर ले हलात छे हाल
साग के मोल मं धरती लेथय, सब ला बना डरिस कंगाल.”
टहलू किहिस – “”मोर दुख ला अब धनवा काट उड़ाही ।
तोर बात ला अगर जानिहय – धुमड़ा तोर खेदाही ।।
कथय गरीबा -“”टेस बता ले, तंय हा खर्चा कर ले खूब
तंय हा बोये हवस जंवारा, तहू ला कहि आवश्यक काम.
धनसहाय के परसंसा कर, पर सबके फल मं नुकसान
धनवा ला तंय कहत हितैषी, तोला उहिच छोड़ाहय गांव.”
कुरबुरात टहलू हा रेंगिस, जरमिर धनवा के घर गीस
ओकर तिर मं लिख दिस लिखरी, ताकि खूब बजनी बज जाय.
धनवा कहिथय -“”मंय जानत हंव – कहां गरीबा के दिल साफ !
इरखादोसी रखत मोर बर, तभो ले मंय कर देथंव माफ.
काबर पहुंचे हवस मोरतिर, फुरिया भला स्वयं के काम
अपन शक्ति भर मदद ला करिहंव, यद्यपि तंय गुनहगरा आस.”
टहलू बोलिस -“”तंय जानत हस – मंय हा फुलवारी ला बोय
पर रुपिया बर लंगड़ी खावत, धुरा ला मंय पटकत हंव दोंय.
मोर पास हे खेत एकेच ठक, ओला अपन पास रख लेव
ओकर बल्दा रुपिया देके, अड़त काम ला सरका देव.”
धनवा डांटिस -“”तंय अबूज अस, काबर बेचत अपन जमीन
ओला अपन पास तंय धर रख, अपन हाथ रोटी झन छीन.
यदि तोला रुपिया आवश्यक, मंय बन जावत धारन तोर
रुपिया ला वापिस नइ लेवंव, धर्म काम मं उड़िहय शोर.
लेकिन जभे मोर नौकर मन, करंय भड़क के मोर विरोध
मोर पक्ष ला तंय हा लेबे, काम बीच झन हो अवरोध.”
धनसहाय हा रुपिया गिन दिस, टहलू लीस लमा के हाथ
ओतकी बखत झड़ी हा आथय, सुंतिया पयकड़ा ओकर हाथ.
गहना ला धनवा ला सौंपिस, तंह धनवा हा रखिस सवाल –
“”मोला काबर गहना देवत, कुछ तो बता गोठ ला साफ ?”
किहिस झड़ी – “”मालिक, तंय हा सुन – मोला देस बाढ़ी मं धान
उही कर्ज ला छूट दुहूं मंय, तंय गहना ला कर स्वीकार.”
धनवा कथय -“”कहां भागत हस, अतका लउहा के का बात
नवा फसल जब हाथ मं आतिस, तंह लागा ला देतेस छूट.”
“”मोर परानी बिस्वासा हा, मर के सरग तनी चल दीस
ओकर गहना सरत घरे मं, अउ गहगट कर्जा मुड़ मोर.
मोर कष्ट मं मदद करे हस, मोर फर्ज हे कर्ज पटाय
मालिक, तंय हा गलत सोच झन, करहूं मान तोर अहसान.”
टहलू – झड़ी निकल गिन बाहिर, तंहने टहलू हेरिस बोल –
“”धनसहाय हे बहुत दयालू, ओकर असन कोन अउ आन !
मोर जमीन ला हड़पे लेतिस, हाथ ले भगतिस धनहा नाट
मंय मूरख हीरा त्यागन कर, कांच ला धरतेंव बिगर उवाट.
गहगट धान तभो झोझा पर, बिगड़ के रहतेंव मंय कंगाल
अपन हाथ मं चुन के गिरातेंव, फसकरा बइठे हंव जे डाल.”
बोलिस झड़ी -“”ठीक बोलत हस, धनवा के हिरदे हे साफ
गिरे परे ला पकड़ उठाथय, दीन हीन के करत सहाय.
मंय ओकर लागा छूटे हंव, मुड़ के उतरिस हे सब बोझ
अब मोला निÏश्चत जनावत, वाकई लागा हे बेकार.”
धनवा के गुन ला गावत ओ तिर ले रेंगिस टहलू ।
आगू तन बूता का करना तेकर हेरत पहलू ।।
नम्मी के दिन दन्न पहुंच गिस, होम हवन टहलू घर होत
सब ग्रामीण उंहे सकला गिन, देखत हवंय जंवारा जोत.
फुलवारी के पांव परिन अउ, ठंडा बर लेगत हें ताल
टहलू के खटला बोधनी हा, फट ले धर लिस बने सम्हाल.
धोवा लुगा पहिर के बोधनी, छरिया रखे हवय सब बाल
जोत जंवारा ला मुड पर रख, चलत हलू अक गोड़ उसाल.
टहलू धरे हाथ मं खप्पर, गुंगुवा उड़त आंख तक जात
गर्मी कारन चुहत पसीना, पर ओला पोंछन नइ पात.
चोवा – गुहा साथ भगवानी, बन के देव देखावत जोश
लोहा के तिरछूल धरे हें, ओला ऊपर तनी उठात.
हा हा करके नंगत कूदत, मुड़ पर दही थपथपा थोप
अपन देह ला सांट मं पीटत, लोर परत तेकर नइ ख्याल.
लोह खड़ऊ पर चढ़ पोखन हा, रेंगत हवय पचापच कूद
गोड़ पिरावत तेकर गम नइ, लोगन झन बोलंय – मरदूद.
बइगा हा भुन भुन मंतर पढ़, मारत कामिल लिमऊ ला काट
जोत ले ऊपर चांउर छीतत, अउ कभु पर ले मांगत सांट.
बउदा भुखू मंगतू अउ नथुवा, उंकर साथ मं अउ कई लोग
ओ सेवक मन बाजा ला धर, खूब बजावत धुन के साथ.
एक दुसर के राग ला झोंकत, मार अवाज गात जसगीत
दूसर तन के सुध बुध नइये, मात्र गीत पर उंकर धियान –
“”बर अगुवावय – पीपर पिछुवावय
हो मैय्या मोरे
लिमवा हे धरम दुवारे
सेवा में हो मैय्या हमूं हा आबो … ।
नीमवाकेनीर तीर मोर गड़ेला हिंडोलना
लाखों आवय लाखों जावंय … ।
कोने मैय्या झुले हो मोर कोन हा झुलावे
कोने मैय्या देखन को आवे … ।
बूढ़ी मैय्या झुले कोदइया मैय्या झुलावय हो
लंगुरे हा देखन को आवै … ।
झुलत झुलत मैय्या बिधुन हो गई हो
टूट गई नौ सेर के हार हो … ।
कामें सकेलंव मैय्या मोरे हरवा अऊ डोलवा
कामें सकेलंव नौ सेर हार हो … ।
टोपली सकेलय मैय्या हरवा अउ डोलवा
दौंरी सकेलय नौ सेर हार हो … ।
कामें गुंथाये मैय्या हरवा अउ डोरवा
कामें गुथाये नौ सेर हार हो … ।
पटुवे गुंथाये मैय्या हरवा अउ डोरवा
रेशम गुंथाये नौ सेर हार हो … ।
बूढ़ी मांई पहिरे हरवा अउ डोरवा
लंगुरे हा पहिरे नौ सेर हार हो … ।
सेवा मं हो मैय्या हमूं हा आबो … ।।
घाम जनावत तभो ले मनखे देख – सुनत हें गाना ।
नवकल्ली मन खांद बइठके आनंद लेवत नाना ।।
निरबंसी औरत हा लानत, हंउला मं भर भर जल साफ
ओला धरती पर रुकोत अउ, चिखला पर खुद हा सुत जात.
सोचत – मंय ओरछत हंव पानी, तब प्रसन्न होहय भगवान
सेवा करे मं सेवा मिलिहय, मोर गोद आहय सन्तान.
बहुरा काम सिद्ध होवय कहि, केंवरी बहू ला शिक्षा देत –
“”चेत लेग झन दूसर कोती, सिर्फ देव पर रख तंय ध्यान.
चिखला माटी पर ढलगे हस, लेकिन झन कर एकर फिक्र
दिही देव वरदान मं तोला – चंदा असन एक औलाद.”
केंवरी हा पेट घंइया ढलगिस, देव ला बिनवत बारम्बार
बोधनी हा ओकर ऊपर ले, पांव उठाके नहकत पार.
पर चिखला मं पांव फिसल गिस, तंह बोधनी गिर गीस दनाक
जोत जंवारा हा गिर जाथय, सुते केंवरी पर भड़ड़ाक.
केंवरी के पति हवलदार हा, कुआं ले जल हेरत भर लेंज
केंवरी के चित्कार ला सुनथय, होगिस सुन्नबुद्धि जे तेज.
हवलदार झुक के गिर जाथय, कुआं के अंदर मुड़ के भार
वंश बढ़ाय उदिम ला फांदत, मगर परत जीवन पर वार.
हवलदार हा बच जावय कहि, कुआं डहर दउड़िन सब व्यक्ति
बोम परत ओमन चिल्लावत, बीच मं रुकगे होवत भक्ति.
अंदर कुआ कोन हा जावय होवत शक्ति परीक्षा ।
हवलदार ला ऊपर लानय बचा अपन जिनगानी ।।
पिनकू हा बहुरा ला पूछिस -“”जब तुम्हरे पर संकट आय
बुकतू कहां दिखत नइ दउहा, मदद करे बर कार भगात ?”
बहुरा आंसू ढारत बोलिस – “”दुब्बर बर दू ठक बरसात
बुतकू ला अजार हा टोरत, खटिया छोड़ उठन नइ पात.
हवलदार पर गाज गिरत अब, ओकर हालत जानत ईश
तुम्हीं बचाव कुआं अंदर घुस, तुम्हर सिवाय मोर अउ कोन !”
कथय गरीबा ला पिनकू हा – “”तंय हा फुरिया अपन विचार
तिंही एक झन लान सकत हस, हवलदार ला बाहिर पार.”
झंउहा ला डोरी मं फांसिन, अब “चइली’ कड़कड़ बंध गीस
ओकर पर बइठीस गरीबा, कुआं मं घुसरिस हिम्मत बांध.
हवलदार ला कबिया धरथय, ओला राखिस खुद के पास
गुहा साथ भगवानी फेंकन, आगू तन के जोंगत काम.
ओमन डोरी ला झींकत हें, वजन के कारण फूलत सांस
लेकिन करतब पूर्ण करे बर, एकोकन नइ थेम्हत काम.
बाहिर पार गरीबा निकलिस, हवलदार हा ओकर जून
बने देह भर घाव बहुत ठक, जगह जगह ले फेंकत खून.
चटपट बैठक बैठ गीस तब, फेंकन बोलिस जोर अवाज –
“”भाई बहिनी शांत रहव तुम, मोर गोहार ला सरवन लेव.
हवलदार हे मरे के लाइक, केंवरी के घायल हे देह
दैविक काम उठावत टहलू, तउन मं पर गिस फट ले आड़.
बहुत अनर्थ होय हे काबर, आखिर कोन रचिस षड़यंत्र
तुम्मन जमों एक संग मिल जुल, वाजिब बात पता कर लेव !”
डकहर हा टहलू ला बोलिस -“”तंय हा जोत जंवारा बोय
लेकिन दैविक काम मं बाधा, काम होय हे अशुभ खराब.
यद्यपि हवलदार हा जीयत, पर झूलत हे मृत्यु के बीच
ओकर खड़े होय बर लगिहय, अड़बड़ अक रुपिया के खर्च.
जमों खर्च ला उठा तिंहिच भर, हवलदार ला तंय कर ठाड़
ए दुर्घटना तोरेच कारण, तब सब जिम्मेदारी तोर.”
टहलू छरकिस -“”मंय लचार हंव, पहिलिच रिता होय हे जेब
फेर कहां ले रुपिया लानंव, मोर मुड़ी मं झन रख बोझ.”
कहिथय सुखी -“”बहाना झन कर, तोर पास हे धनहा खेत
ओला हवलदार के हक कर, वरना तंय फंसबे हर ओर.”
हवलदार ला टहलू हा दिस अपन एकड़ा डोली ।
धनवा तिर ले बचिस तेन हा जावत पर के झोली ।।
धनवा हा पूछिस बोधनी ला – “”तंय हा चलत ठीक अस चाल
पर केंवरी पर दन्न गिरे हस, खुद तन तक नइ सकेस सम्हाल.
तोला फट ले कोन ढकेलिस, दुर्घटना का कारण होय
बइठक पास रहस्य बता तंय, एकर बिन नियाव नइ होय ?”
किहिस बोधनी -“”का बोलंव मंय – सब ला नाश करिस विज्ञान
यद्यपि मंय सच ला गोठियाहंव, पर हो जहय अंधविश्वास.
मोर गोड़ आगू तन रेंगत, तभे उदुप दुखिया दिख गीस
छरिया चुंदी – आंख ला छटका, चुहके बर रक्सिन हा अ‍ैस.
मोला उठा दोय ले पटकिस, फट चढ़ गिस छाती पर मोर
सपसप मोर लहू ला चुहकिस, तब मंय दिखत बहुत कमजोर.”
कैना हा दुखिया ला बोलिस – “”जमों कार्यक्रम सत्यानाश
एकर दोष तोर मुड़ बइठत, काबर करे अनीतिक काम ?”
दुखिया कथय – “”गोहार ला सुन लव – मंय हा रखत अपन सच तर्क
मंय निर्दाेष हवंव वाजिब मं, नइ चढ़ात हंव गप के वर्क.
देखत रेहेंव जंवारा ला मंय, बोधनी ले रहि अड़बड़ दूर
गिरिस बोधनी खुद गल्ती ले, तब पर – पर लांछन झन आय.
जादू टोना जग मं नइये, तंत्र मंत्र हा झूठके जाल
तब मंय कहां ले टोनही रक्सिन, मोला झनिच करव बदनाम.”
धनवा हा बउदा ला बोलिस – “” तुम अमली के गोजा लेव
दुखिया ला पीटव मरते दम, मंत्र के शक्ति खतम कर देव.
आय गांव के नियम इही हा, नियम के पालन निश्चय होय
तभे गांव पर बिपत आय नइ, दुखिया तक हो जाहय सोझ.
एकर पर हम सोग मरत हन, पर दुखिया बोलत हे झूठ
अबला समझ तरस खावत हन, लेकिन एहर मारत मूठ.
एला अगर दण्ड नइ देवत, टोनही हमला खाहय भूंज
दुखिया ला मरते दम झोरव, टूटय झन गांव के कानून.”
बउदा अमली गोजा धर लिस, दुखिया ला सड़सड़ रचकात
दुखिया हा मतात हे खुर्री, मगर मार ले बच नइ पात.
अतियाचार राजबयजन्त्री, मनखे मन देखत चुपचाप
ओमन ला विश्वास कड़ाकड़ – जादू टोना हर अतराप.
केजा हा सब झन ला बोलिस -“”बउदा ला झन मारो रोक
ओहर दुखिया ला झोरत हे, टोनही ला कंस पीटन देव.
दुखिया तंत्र मंत्र के ज्ञाता, पर ला करत हवय बर्बाद
पर बर जेहर गड्ढा कोड़त, उहू एक दिन सजा ला पाय.”
दुखिया हा लस खांके गिरतिस, अ‍ैस गरीबा करे बचाव
बउदा उहू ला मारिस गोजा, मगर गरीबा देवत जोम.
ताकत लगा झटक लिस गोजा, बउदा ला मारिस भर लात
बउदा हा भुंइया पर गिरगिस, रटरट टूटिस दू ठक दांत.
धनसहाय हा नाटक देखत, लेवत हे अन्याय के पक्ष
बोलिस -“”तंय काबर छेंकत हस, बड़ा आय हस बन के शेर.
दुखिया के हम रगड़ा टोरत, ताकि दुसर मन पावंय सीख
पर तंय गलत पलोंदी देवत, टोनही के बढ़ात हस मान !”
धनवा हा नक्सा मारे बर, दांत कटर के धमकी दीस
मगर गरीबा भय नइ खाइस, उहू शक्ति भर चमकी दीस –
“”जादू टोना नइये जग मं, एकर हवय तोर तिर ज्ञान
मगर गांव मं राज करे बर, रुढ़ि के पक्ष लेत हस तान.
औरत के स्तर उठाय बर, तंय दूसर ला देत सलाह
पर दुखिया ला खुद पिटवावत, इही आय का हरचंद न्याय ?”
धनवा बोलिस -“”मंय देखत हंव – लेवत हस दुखिया के पक्ष
एकर अर्थ इही तो होथय – ओकर तोर बीच संबंध.
यदि ए बात अगर सच अस सच, खुले आम दुखिया ला लेग
तुम्हर बीच हम आड़ बनन नइ, काबर परन प्रेम मं बेंग ?”
खड़े भीड़ दुखिया ला एल्हत, फगनी उड़ावत हांसी ।
कमउ मरद ला कभू छोड़ झन ओकर बन जा दासी ।।
कथय गरीबा ला बन्जू हा – “”खतरा साथ करत तंय खेल
दुखिया हा अखण्ड टोनही ए, पत्नी बना अपन घर लेग.
मनसे तोर प्रशंसा करिहंय – हवय गरीबा निर्भय जीव
दुखिया खतरनाक टोनही हे, तउनो तक ला अपन बनैस.”
दुखिया ला चढ़गीस रोष तंह, कहिथय सबके मुंह ला थेम –
“”भले गरीबा छरक भगय पर, ओकर मोर चलत हे प्रेम.
धनवा अउ ग्रामीण जमों मिल, पंइठू बर खिरखिन्द मचात
उंकर बात ला मानत हंव मंय – घुसत गरीबा के घर आज.”
कथय गरीबा -“”कइसे बोलत – तोर मोर कुछ नइ संबंध
अपन साथ तोला नइ राखंव, जा घर अपन बात कर बंद.”
दुखिया किहिस -“”कहत हस ठौंका, अब तक रिहिस अलग अस राह
पर जब सब झन जोश चढ़ावत, एक सात करबो निर्वाह.”
दुखिया गोड़ पटक के रेंगिस, ओकर पिछू गरीबा गीस
करय गरीबा हा का रउती – दुखियाबती ला अपना लीस.
पिनकू अपन मकान मं अमरिस, तंह कोदिया हा रखिस सवाल –
“”नम्मी परब आज मानत हन, एकर तोला हे कुछ ज्ञान !
कब के चीला बने रखे हंव, देखत हवंव राह मंय तोर
लेकिन तंय छयलानी मारत, एती करा होत सब चीज.”
कोदिया हा चीला परसिस तंह, पिनकू देखत पलट उसेल
चीला दिखत हवय घिनमिन अस – थोरिक अस डराय गुड़ तेल.
कोदिया हा पिनकू के दाई, तब कोदिया हा जेवन दीस
तेला पिनकू हा नइ भावत, यने स्नेह के हे अपमान.
पिनकू हिनथय -“”दाई, तंय सुन – पेट मं चीला कइसे जाय
देखत साठ भिरंगगे मन हा, नइ जानस का जिनिस पकाय ?”
कोदिया सुनिस अन्न के फदिहत, तंहने भड़क कथय फुंफकार –
“”रज गज खा के पले बढ़े हस, लेकिन आज करत इंकार.
पहिली के धन कहां हमर तिर, बस दू हरिया पुरती खार
तोर ददा ला रोग धरिस तंह, जमों बोहा गिस धारोधार.
ओकर प्रान हा होगिस चंदन, अब तंय देख बिपत के खेल
घर के जमों जिनिस हा भटगे – पैजन पहुंचा फुली हमेल.
तंय रांड़ी अनाथिन के लइका, लेकिन करत धनी संग रार
अवघट घट मं यदि मिल जाबे, ओमन दिहीं मार फटकार.
तोला नांदगांव भेजे हंव, विद्या पाय मोर प्रिय पुत्र
पर तंय हा चुनाव तक लड़थस, भूल जथस करतब के सूत्र.”
पिनकू हा क्रोधित हो जाथय, कोदिया के सुन भाखा टांठ
चीला ला धरलिस फटके बर, छोड़ दीस कुछ खाय विचार.
पर कोदिया हा फिर समझाथय -“”महिनत करथंय श्रमिक किसान
बहुत कठिन मं अन्न हा उपजत, तब झन करव अन्न हिनमान.”
पिनकू हा चीला ला झड़किस, पाठ करत हे अपन किताब
पढ़ते पढ़त नींद चपकिस तंह, कतको किसम के देखत ख्वाब.
बड़े फजर पिनकू हा उठथय, लेवत हवय खींच के सांस
देखे हवय रात भर सपना, फोरत हे कोदिया के पास –
“”दाई, तोला मार डरे हंव, ढेखरा अस तिर के घिरलात
तोला मरघट लेग गेंव अउ, तोर मांस ला चिथके खात.
ममता ला उड़ेल तंय बोलेस – पिनकू, तंय हा झन मर भूख
मोर करेजा ला जेवन कर, लेकिन स्वास्थ्य बना तंय टंच.”
दोंह दोंह पेट हा भरगे तंहने पकड़ेंव घर के रद्दा ।
घुप अंधियार – गिरंव मंय दन दन हालत होगे खस्ता ।।
प्रेम दिखाय मोर ऊपर तंय – यहदे राह तोर घर जाय
मोर मान के सरलग तंय चल, लगन पाय नइ धक्का खाय.”
तोर मान मंय पाय ठिंहा ला, मगर ख्याल आइस कुछ बाद
सपना मं मंय खूब रोय हंव, रहि रहि करेंव याद ला तोर.
उमचिस नींद तंहा मंय जाचेंव – दसना मं आंसू के धार
बाय बियाकुल जीव करत हे, मन पछतावत बारम्बार.”
पिनकू बोलिस -“”मंय जवान हंव, पर किंजरत ठेलहा बेकार
यद्यपि शासन करत कुजानिक, लेकिन कतरा दोष लगान !
तंय हा बिसर मोर सब गल्ती, पढ़त पढ़त मंय करिहंव काम
मंय अनाज के मान ला रखिहंव, गप नइ मारंव गाड़ के खाम.”
कोदिया अपन पुत्र पिनकू ला, छाती लगा स्नेह बरसात
ममता दृष्य हो जातिस अंकित, चित्रकार यदि ओतकी टेम.
पिनकू हा मेहरुतिर पहुंचिस, उहां कहत सपना के हाल –
“”वास्तव मं तुलना नइ होवय, मां के ममता संग सब चीज.
स्वयं कष्ट ला भोगत लेकिन, करत पुत्र पर अतुलित प्यार
दूध के ऋण ला कोन हा छूटत, रहत अंत तक ओकर भार.”
मेहरुआंखी फाड़ सुनत हे, ओला होत बहुत आश्चर्य –
“”जेन गोठ तंय अभि बोले हस, वास्तव मं भावनात्मक आय.
ममता ला उंचहा दर्जा दिन, लेखक मन हा बिगर विचार
याने ददा अउ महतारी मं, कर दिन ठाड़ भेद दीवार.
एमन दुनों एक अस करथंय, अपन फूल पर प्यार समान
एक तराजु मं तउलावंय, एक भार के इज्जत मान.”
पिनकू गुनिस – तर्क वाजिब हे, सुद्धू आय पुरुष इंसान
करिस गरीबा के पालन ला, एकोकनिक करिस नइ भेव.
याने बालक के रक्षा बर, औरत मरद करत हें यत्न
ओमन पांय एक इज्जत यश, कउनो झनिच पाय पद ऊंच.
पिनकू हा मेहरुला बोलिस -“”परब दसरहा मानत आज
चल “बंछोर’ दुनों झन जाबो, उहां जात मानव के भीड़.
उहां “रामलीला’ तक खेलत, होत राम – रावण मं युद्ध
जब रावण हा मारे जाथय, नाटक देख होत मन शुद्ध.”
मेहरुकिहिस – “”करिस रावण हा, जग ले बाहिर का अन्याय
मार खात हर बछर बिचारा, ओकर अबगुन ला कहि साफ ?”
“”जनता ला दिस कष्ट भयंकर, हिनहर मन पर अत्याचार
नारी के हिनमान करिस हे, यने रिहिस धरती बर भार.”
“”तंय उदाहरण जइसन देवत, वइसन रावण जियत समाज
हिनहर मन के लहू चुहकथय, भोगत हवय स्वर्ग के राज.
कागज लकड़ी ला बारे मं, रावण हा समाप्त नइ होय
ओहर रक्तबीज अस बाढ़त, बिपत बांट के सुख ला पात.
जीयत रावण जलगस किंजरत, तलगस दुख पाहय संसार
पहिली एकर बुता बनावव, तब होही जग के उद्धार.
पर ए काम बहुत मुस्कुल हे, हवय दुनों रावण मं भेद
ओ रावण के रिहिस मुड़ी दस, याने रिहिस अलग पहिचान.
तभे राम हा मार गिरा दिस, उहि रावण ला बिल्कुल तूक
अपन लक्ष्य ला राम अमर लिस, उही कथा सुनथन बन मूक.
लेकिन हवय आधुनिक रावण, सबके मित्र नेक इंसान
वेष चाल अउ काम प्रतिष्ठित, हमरे घर कर ओकर थान.
हम रावण ला मारे चाहत, लेकिन कहां अलग पहिचान
तब खलनायक हा बच जाथय, अउ नायक पर परथय बान.”
पिनकू बोलिस -“”ठीक कहत हस, इही मं चरपट होवत देश
पर तंय मोला बुद्धू समझत, तब देवत बढ़ के उपदेश ?”
मेहरुफांकिस -“”गलत समझ झन, मंय देवत हंव नेक सलाह
ठीक बात ला यदि नइ अमरत, तुम धर सकत गलत असराह.
तुम जवान के तिर मं होथय, अड़बड़ शक्ति भयंकर जोश
लेकिन क्रोध अधिक ते कारण, तुम्मन खोवत हव सच होश.
देश विकास करे बर धरथव, करना चहत तुमन नव क्रांति
पर दिग्भ्रमित तुमन हो जाथव, तंहने अपन लक्ष्य नइ पाव.
रावण कोन आय तेला पहिली सच पता लगाना ।
ओकर बाद प्रहार करे बर जावव धर के बाना ।।
अपन बुद्धि ला शांत धीर रख उचित राह पर जाओ ।
जउन काम तेला पूरन कर लक्ष्य सफलता पाओ ।।

५. बंगाला पांत समाप्त