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छत्तीसगढ़ी के उपन्यास : मोर बिचार

मानुस समाज म हजारों साल ले डोकरी दाई के मुह ले कहिनी कहे के परम्परा रहे हे. हमर पारंपरिक कहिनी मन म देबी-देंवता, जादू-मंतर, विरह-परेम के अचरज मिंझरा किस्सा रहय. वो समें म हमर सियान मन ये कहिनी मन के सहारा लेके समाज ला सीख देहे के उदीम करंय. समें के अनुसार कहिनी के ये रूप के बिकास होइस, सियान मन हा कहिनी के ये रूप के रोचकता ला बनाए खातिर नवा उदीम करत कहिनी के बिसय ला समें के संग जोरे खातिर येखर पद्य रूप ल धीरे धीरे समाज म बगराइन. पद्य कहिनी के इही बड़े रूप लोक गाथा बनके पूरा संसार के समाज म छाइस. लोक गाथा ह पारंपरिक वाचिक रूप ले कहे जात कहिनी के बिसय अउ पुरातन के किस्सा ला गीत रूप म हमर आघू लाइस. इही समें म लोक गाथा के खयालेकुछ किस्सा ला सिरतोन रूप म प्रस्तुत करे के प्रयास घलव सुरू होइस. किस्सा ह अपन पुरातन रूप के बंधना ला छोर के नवा रूप घरे बर छटपटाए लागिस. परेम गाथा अउ बीर गाथा मन म भले बड़ई बखान करे गीस फेर ओखरे संगें संग ओ समे के सामाजिक स्थिति के बरनन घलो येमा समावत गीत. इही ह आघू जाके अभिन के कहिनी अउ उपन्यास के अधार बनिस.




उपन्यास अउ कहिनी के कला रूप अभीन के जुग के उपज आए. नाटक अउ कविता कस उपन्यास अउ कहिनी लिखे के रीत जुन्ना नोहय. जुन्ना समें के हमर जम्मो साहित्य रीति, नीति सिक्छा के गोठ बात बताथे उंहें उपन्यास हा एखर संग असल जीवन अउ असल समे के गोठ बात करत, धरती के मनखे के सिरतोन किस्सा बताथे. उपन्‍यास म मनखे अउ ओखर समाज के नजीक के जम्मो जिनिस, रोजी रोटी अउ जीवन यापन के रीत नीत मन ह सामाथे. मनखे अपन इही सब के संग जीथे, ये जिनिस मन ओखर जीवन ला प्रभावित घलो करथे, समे अउ परिस्थिति ले मनुस लड़थे. घेरी बेरी येमा ओरझथे अउ जम्मो ला बल्दे के उदीम करत मनखे अपन चरित अउ स्वभाव ला बनाथे. ये जम्‍मो ला समकुल सकेल के एकजइ करत, कथा, उप कथा ल संघारत, उपन्‍यास अपन रूप धरथे, कुल मिला के किस्सा म जीवन अउ समाज के चउतरफा बरनन ह उपन्यास बनथे. उपन्यास ह गहिर ले सोंचे के मांग करथे अउ अपन पात्र मन संग जुराव के पहिली, समाज के अंतस म जुरे बर दबाव तको बनाथे. चारो मुड़ा बगरे अउ होवत कामबुता ल उपन्यास ह अपन कथा म एकसर करथे. रोजे रोज के जीवन अउ जुन्ना समें के उलटफेर म मानुस पन के करलई ल ओहर सुनथे. लिखइया रचनाकार के पीरा तको एमा संघरत जाथे, अपने जीवन के कहिनी दूसर पात्र के रूप म उतरत जाथे. समाज के इही रूप ला देखावत, अपन भावना ला सबद देवत उपन्यासकार अपन असल रूप म खुदे बिवस्‍था के बिरोधी बनत जाथे नइ ते बिरोध के आवाज बन जाथे.

छत्तीसगढ़ी म बिरोध के ये आरो ल गम पाए के उदीम हम कहूं करन त छत्‍तीसगढ़ी गद्य के बिकास के नब्बे साल म गिनती के उपन्यास छप के पढ़ईया मन के आघू आ पाये हावय. इतिहास ल देखन त 19 वीं सदी के बढ़ोतरी के समें म छापाखाना के आए अउ संगें संग पेपर गजट मन के प्रचार-प्रसार ले हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो साहित्य के अंजोर छत्‍तीसगढ़ म सरलग बगरे सुरू होए रहिसे। इही समे म छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के विकास के पीका फुटिस. रचनाकार मन पद्य के संग निबंध, नाटक, कहिनी, बियंग अउ उपन्यास के रचना घलव करे लागिन. कहिनी के पेंड़ ह डारा खांधा बढ़ावत बड़का रूख बनके पहिली पइत ‘हीरू के कहिनी’ के रूप म आघू आइस. पाण्‍डेय बंशीधर शर्मा के के ये रचना के पाछू दू चार करत उपन्‍यास ह पाठक मन के हाथ म आये लागिस. हीरू के कहिनी के पाछू शिवशंकर शुक्‍ल के ‘दियना के अंजोर’ अउ ‘मोंगरा’, लखन लाल गुप्‍त के ‘चंदा अमरित बरसाईस’, केयूर भूषण के ‘कुल के मरजाद’, ‘लोकलाज’, ‘समें के बलिहारी’ अउ ‘कहॉं बिलागे मोर धान के कटोरा’, डॉ. परदेशीराम वर्मा के ‘आवा’, डॉ. जे.आर.सोनी के ‘उढ़रिया’ अउ ‘चंद्रकला’, रामनाथ साहू के ‘कका के घर’ अउ ‘माटी के बरतन’, ठाकुर हृदय सिंह चौहान के ‘फुटहा करम’, कृष्ण कुमार शर्मा के ‘छेरछेरा’, संतोष कुमार चौबे के ‘भाग जबर करनी म दिखथे’, श्रीमती सरला शर्मा के ‘माटी के मितान’, श्रीमती सुधा वर्मा के ‘बन के चँदैनी’, कामेश्वर पाण्डेय के ‘तुँहर जाए ले गिंया’ ये उपन्यास अभी तलक हमर छत्तीसगढ़ी भाषा म नजर आथे. कुछ अउ उपन्‍यास के आरो मिलथे जउन हा छप नइ पाये हे, नइ ते छपे के तइयारी म हावय. डॉ.सुधीर शर्मा ह अभी तक के उपन्यास मन के गिनती 28 बताथें. हो सकत हावय के इंखर ले अकतिहा अउ कोनो उपन्‍यास लिखे गए होही तेखर जानकारी हमला नइ हे.




28 ठन छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास मन म हीरू के कहिनी, दियना के अंजोर, मोंगरा, चंदा अमरित बरसाईस, कुल के मरजाद, लोकलाज, समें के बलिहारी, कहॉं बिलागे मोर धान के कटोरा, आवा, उढ़रिया, चंद्रकला, कका के घर, माटी के बरतन, फुटहा करम, छेरछेरा, भाग जबर करनी म दिखथे, माटी के मितान, बन के चँदैनी भर के जानकारी हमर मेरन हावय. येमा दियना के अंजोर, मोंगरा, चंद्रकला अउ आवा सर्वसुलभ रूप म इंटरनेट म हावय, बाकी के उपन्‍यास कोनो सार्वजनिक पुस्‍तकालय मन म एके जघा नइ हे, जिहां पाठक अउ सोध करइया बिद्यार्थी येला पढ़ सकय. वैभव प्रकाशन ले छपे उपन्‍यास मन ला छोंड दन त आने उपन्‍यास ह बिसाये म घलो नई मिल सके, काबर के ये ह बजार म घलो नइ हे. ये आलेख ल लिखे खातिर पढ़ना जरूरी रहिसे तेखर सेती मंगनी अउ उधारी म इमन ला पढ़े के उदीम हम कर पाये हंन. ‘माटी के बरतन’, ‘माटी के मितान’ अउ ‘तुँहर जाए ले गिंया’ अभी अभी छप के आए हावय.

अब आवव कोन आघू छपिस कोन पाछू छपिस तेखर निरनय करे बिना कुछ उपन्‍यास के कहिनी सार ला थोरकुन हम जान लेवन.

पाण्‍डेय बंशीधर शर्मा के उपन्‍यास ‘हीरू के कहिनी’ ह असल म उपन्यास ना होके बड़का कहिनीच आए भले हम येला उपन्यास या नान्हे उपन्यास कहि दन. डॉ.सुधीर शर्मा अउ आलोचक नन्‍दकिशोर तिवारी घलव येला बड़का कहिनीच मानथें. हीरू के कहिनी सपाट कथानक ले हीरू के दुखपीरा संघर्ष के कहिनी बताथे, छोटे ले बड़े बने के मनखे के अंतस के संउख ला गोठियाथे. हीरू के बचपने म ओखर बाप गुजर गए रहिथे, हीरू के दाई चुरी पहिरी प्रथा के कारन दूसर पति बना लेथे. हीरू के दूसर ददा चाहथे के वो ह खेत म काम करे जबकि हीरू पढ़ना चाहथे. ओखर संउख लगन अउ मेहनत ले पहिली वो ह मास्टर बनथे तहां ले राजा के मंत्री तको बन जाथे. जब राजा के कामगार मन किसान मन उप्पर अतियाचार करथे त हीरू राजा ला नीत बताथे अउ पंचायत राज बिवस्था कायम करवाथे. वो समय के मांग शिक्छा अउ पंचायत राज ला कहिनी के माध्यम ले समाज म लाए के खातिर ये उपन्यास के रचना होए रहिस. ‘हीरू के कहिनी’ म हीरू संग ददा, दाई, दाई के दूसर बिहाव करे के पाछू नवा बने ददा, राजा अउ करमचारी मन ला लेखक ह लेहे हावय, जउन समें म ये कहिनी उपन्‍यास लिखे गए रहिस होही ते समय म पंचायती राज सपना रहिस होही अउ कोनो हीरू पढ़ लिख के राजा के करमचारी मन के अतियाचार के बिरोध करे के सोंच राखत रहिस होही.

‘हीरू के कहिनी’ के पाछू साहित्‍य के एक ठन विधा के रूप म उपन्‍यास लिखे के पहिली समरथ उदीम शिवशंकर शुक्‍ल हर करिन. उखर उपन्‍यास ‘दियना के अंजोर’ छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य म उपन्‍यास के जम्‍मो गुन अउ तत्‍व लेके पढ़इया मन के आघू आईस. ये उपन्‍यास म गांव गंवई के सुघ्‍घर बरनन हावय. ये उपन्‍यास म मुरारी अउ बंशी दू भाई के परेम के किस्‍सा हावय संगें संग कुरद्दा म रेंगत भाई ला सहीं रद्दा देखाए के उदीम हावय. येमा देवर भउजी के परेम के घलव सुघ्‍घर बरनन हावय. शुक्‍ल जी के भाषा सहज अउ सरल हावय. उमन नारी हिरदे के भावना ला, उंखर अंतस के पीरा ल एक संवेदनसील लेखक कस समझथें अउ उपन्‍यास म मुहाचाही के रूप म बोलवाथें –

‘वाह रे समाज ते हा घलोक कतेक गिर गेय हावस। जऊन दुलरवा हा काली समाज बर कलंक रिहिस उही हा कहुं अब मया के ओघा मा अपन ला सम्हालत हे, तभो तुमन ला ओमा खोट दिखथे। फेर दुलरवा हा भौजी ला दाई कहिथे। का तुंहर मा अतको समझ नई’

‘दियना के अँजोर’ म छत्‍तीसगढ़ी पारंपरिक तीज तिहार के सुघ्‍घर बरनन कथानक के बीच बीच मा आथे जेन ह उपन्‍यास म रोचकता बढ़ाथे. ‘दियना के अंजोर’ के पाछू छत्‍तीसगढ़ी गद्य साहित्‍य के कोठी ल उपन्‍यास के संगें संग कहिनी अउ लोक कहिनी म भरईया शिवशंकर शुक्‍ल के दूसर उपन्‍यास ‘मोगरा’ आइस. ‘मोंगरा’ गरीब किसान परिवार के कहिनी आए. उपन्‍यासकार मंगलू के रूप म एमा सरल गंवइहा, हिम्‍मती, गरीब किसान ला परगट करे हावय उहें मनखे के सुख चुहकईया, चारी म रस लेवईया रामधन के करनी संग कहिनी के चौसर बिछाए हावय. एमा एखर नाईका के नाम मोंगरा हावय. येमा देवर भउजी के परबित नता ला दाई बेटा कस सुघ्‍घर बताए गए हे. ये बारे म नन्‍दकिशोर तिवारी ह कहिथें के ये समकुल उपन्‍यास लेखके के हिन्‍दी उपन्‍यास ‘भाभी का मंदिर’ के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद आए. मोंगरा के बिहाव गरीबी के खातिर कुमारग रेंगइया फिरंता संग होथे फिरंता हा अवैध दारू के घंघा करे लागथे, ओला जेल हो जाथे तभो मोंगरा ओला सही रद्दा म लाये के सरलग उदीम करथे, परिवार संग सुघ्‍घर हिल मिल के रहत मोंगरा नवा बिहान लाथे. मोंगरा अउ केकती दूनों ये उपन्‍यास म अपन अपन रूप देखावत नारी अस्मिता अउ नारी जागरन के संदेसा देथें. फिरंता समें के जवान मनखे कस मया पिरीत अउ सहीं सलाह नइ मिले के कारन कुमारग जाथे त मोंगरा के मया अउ सहीं रद्दा बताये ले वो ह समाज म अपन मिहनत ले उठ बइठथे. शिवशंकर शुक्‍ल के ये दूनों उपन्‍यास के पाछू सरलग उपन्‍यास पाठक मन के हाथ म आये लागिस. हम ये कहि सकत हावन के छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य म उपन्‍यास लेखन अउ पाठन के चिभिक इही समे ले लग गे. नन्‍दकिशोर तिवारी जी ह अपन पुस्‍तक ‘छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य दशा और दिशा’ म उपन्‍यास उप्‍पर लिखत येमन के बारे म सुघ्‍घर बखान करें हांवय जउन हा हमर उपन्‍यास साहित्‍य के सरलग बिकास के असल रूप ला उजागर करथे. उमन ह ‘हीरू के कहिनी’ ले लेके रामनाथ साहू के ‘कका के घर’ के गोठ करें हांवय. ‘कका के घर’ उंखर आलेख लिखे के बखत लोकाक्षर म सरलग छपत रहिस तेखर खातिर उमन ह ओखर बर मंगलाचरन भर पढ़ के अपन आलेख ला बाढ़े सरा करें हांवय.




लखन लाल गुप्‍त के उपन्‍यास ‘चंदा अमरित बरसाईस’ म गांव गंवई के बरनन हावय, येमा भाई भाई के बीच परेम के किस्‍सा हावय, ये उपन्‍यास म हमर रिति रिवाज, संस्‍कृति अउ परम्‍परा के सुघ्‍घर चित्रण करे गए हावय. ठाकुर हृदय सिंह चौहान के उपन्‍यास ‘फुटहा करम’ म अभागिन विधवा राधा के कहिनी हे. बाल विधवा नारी के दुख पीरा अउ गांव के स्‍कूल मास्‍टर संग परेम के किस्‍सा येमा हावय. विधवा विवाह के संदेसा देवत ये उपन्‍यास म नारी हिरदे के पीरा संग शिक्‍छा के सुघ्‍घर कथा हावय. केयूर भूषण के उपन्‍यास ‘कुल के मरजाद’ राजघराना के एतिहासिक कथा ला बताथे, रजवाड़ा मन के भीतर के बात, उंहा चलत राजनीति के संग राजपरिवार के सेवक मन के उठ जागे के सुघ्‍घर बरनन हावय. केयूर भूषण के दू तीन अउ उपन्‍यास लोकाक्षर म सरलग छपे हावय फेर हमर तिर लोकाक्षर के जम्‍मो प्रति नइ होए के कारन हम उंखर लेखन परम्‍परा ला बने सहिन टमडे म असहाए पाथन. केयूर भूषण के दूसर उपन्‍यास ‘लोक लाज’ ह जैन परिवार अउ हिन्‍दू परिवार के कहिनी आए, येमा धरम करम के रूढ़ी म बंधाए समाज के कलई ला खोले गेहे. सन्‍यास अउ गृहस्‍थ के बीच लटकत मनखे के सोंच ला बाहिर लाए म उपन्‍यासकार सुफल होए हे. उपन्यास ‘समे के बलिहारी’ म समाज म होत परिवर्तन अउ जुग बदले के भरोसा हावय. क्लब संस्कृति, राजनीति के चाल चरित्तर अउ अभीन के युवा वर्ग म बाढ़त बुरई के बढ़िया कलई खोले गए हावय. येमा मंत्री महोदय के उदघाटन बरोबर पाखाना झारे अवई अउ पाखाना ल सेंठ फूल म सजाई जइसे चुरपुर बियंग हावय.

कृष्‍ण कुमार शर्मा के उपन्‍यास ‘छेरछेरा’ छत्‍तीसगढ़ के अन्‍न दान के परम्‍परा ला उजागर करत लिखे गए उपन्‍यास आए. ये उपन्‍यास ह वो समे म प्रचलित टोनही प्रथा के घलव पुरजोर बिरोध प्रस्‍तुत करथे, मालगुजारी सासन अउ अतियाचार के बात ला गोहरावत कहिनी म मालगुजार के बेटे हा उजर के झंडा उंचाथे. विनोबा भावे के सपना ला साकर करत ये कहानी म सामाजिक आन्‍दोलन अपन पीका फोरे हावय.

डॉ.जे.आर.सोनी के उपन्‍यास ‘उढ़रिया’ उपन्‍यास म गरीब बाम्‍हन परिवार के कहिनी हावय. छुवा छूत, जात पात के सामाजिक बुराई संग लटपटाए गरीबी ह खुदे संदेसा कहिथे अउ सामाजिक बुराई के नास करत बाम्‍हन लड़की सतनामी लड़का संग बिहाव करके समाज म संदेसा देथे. डॉ.जे.आर.सोनी के उपन्‍यास ‘चंद्रकला’ मा बाम्हन के लइका ल यादव जात के दाई अपन दूध पियाथे अउ दूध के नता उम्‍मर भर दाई बेटा ला जोरे रहिथे। चन्द्रप्रकाश पी. एस.सी. के परीक्‍छा म बइठथे, घूस के बिना ओखर नौकरी लगई संभव होवत नई दिखे त नगर पालिका म बाबू के नौकरी करत चंद्रकला ह पालिका के अधियक्‍छ मालूराम अग्रवाल ल अपन सरबस संउप देथे। चंद्रकला मालूराम के रक्‍खी बन जाथे, चंद्रप्रकाश नायब तहसीलदार बन जाथे। राजनीति, धरम अउ समाज के अलग अलग मनखे मन के बरनन करत उपन्‍यासकार अभीन के समाज के अइना जइसे फोटू अपन सबद के माध्‍यम ले देखाथे. डॉ.सुधीर शर्मा कहिथें के डॉ.सोनी छत्‍तीसगढ़ी संस्‍कृति के संगें संग दलित सोसित समाज के द्वंद ला सुघ्‍धर सबद देथें जउन हा उंखर जम्‍मों रचना मन म सिरतोन दिखथे. ये उपन्‍यास म मोंगरा के रूप म छत्‍तीसगढ़ के बेटी मन के हिम्‍मत अउ ताकत के कथा कहे गए हे तेखरे सेती डॉ.परदेशीराम वर्मा ह ये उपन्‍यास ल ‘छत्‍तीसगढ़ की बेटियों की शौर्यगाथा’ कहिथे.

डॉ.जे.आर.सोनी अपन भाषा सैली अउ मुहा चाही म उपन्‍यास के मूल संदेसा के पाछू छुपे पीरा ला धीरे धीरे चुहावत रहिथे, उपन्‍यास ला पढ़त खानी ये पीरा पाठक मन के अंतस मा टीसत आघू बाढ़थे – पुस्पा रमौतीन ल अपन दुःख के पहाड़ ल बताईच । रमौतीन के आँखी ल आँसू आ जाथे । पुस्पा के आँसू के गंगा फूट जाथे, रोवत-रोवत बताथे, कई झन सगा मन ऐती ओती बात फैला देय हे के ससुर के संबंध हे, काबर ससुर अऊ बूह एके घर म रईथे । ससुर बिचारा बीमार एक कमरा म पड़े रथे । चपरासी मन सेवा जतन करत रथे । यदि मय छोड़ देहंव, तो कोई नईये । मोर सास के मउत पाँच साल पहिली होगे हे ।

पतिव्रता नारी के मन म अपन पति बर परेम अउ परंपरा के अंचरा मया ला उमन बड़ सुघ्‍घर ढंग ले अपन ये उपन्‍यास म उभारथें – पुस्पा बहुत गिड़िगड़ाथे, पर मानिच नहीं । बहुरिया तंय ओकर पक्छ लेथच, जेहा तोला बीस साल ले छोर देहे । सधवा होके तंय विधवा हच, अईसे बेटा ले झन होवय बेटा अच्छा रहितिच । मंय चिट्ठी पत्री भेज के थक गय हंव । बलराम ईसाई धर्म स्वीकार कर ले हे, ईसाई धर्म के महिला ले सादी करके ईसाई होगे हे । अईसे अधर्मी टूरा ल मंय अपन सम्पति ले वंचित करत हंव, ओला कोई अधिकार नई हे । ओला मंय मर जाहंव त चिता म आगी लगाय झन देबे । बलराम ह ऐती के धियान देय ल छोड़ दे हे । बाबूजी कतको छोड़ दे हे फेर मोर पति ऐ, जब तक जीयते हे मय माँग म सिंदूर अऊ हात म चूड़ी पहन सकत हंव । ठीक हे बहु तोर मन भनसाहत हे । अइसे बेईमान ल तय पति मानस हस तोर बड़प्पन ए, तोर संस्कार ऐ । पुस्पा के आँखी ले आँसू टपक जाथे ।




संतोष कुमार चौबे के उपन्यास ‘भाग जबर करनी म दिखथे’ म पुरखा के करनी भरनी के खातिर दुख पावत पुरूष के मेहनत के बल म उपर उठई अउ वइसनहे एक नारी ला दुख अउ संकट संग लड़ के अपन लइका मन के भाग बनई के किस्सा हावय. एक किस्सा म दाई ददा के लेहे करजा ला बेटा नाती मन ला छुटे के खीख परम्परा के येमा बरनन हावय. येखरे खातिर सुकलाल के सरबस बेंचा जाथे. फेर मिहनत के बल म ओ ह जमीन जयजात संग साधू बबा के असीस ले नोनी बाबू पाथे. समें के संग नोनी बाबू के बिहाव होथे अउ दमांद के दुख ले चंदा नोनी अपन भाई के घर म आके रहे लागथे. ददा के मरे उप्पर भउजी के दुख देहई जब सहे नद जाए त, चंदा भईया भउजी ला छोड़ के राजनांदगांव आके चपरसनिन के नौकरी करे लागथे. अपन बेटा बेटी मन ला पोंस पाल के पढ़ाथे. बेटी ह डाक्टर, बेटा मन सरकारी बिभाग म बड़े साहब बन जाथें. उपन्यास म करम के मरम बताए गए हे, उपन्यास के पात्र संकट के परिस्थिति म हारे के बजाए ओखर सामना करत भाग ठेंगा बताए हावय. ये उपन्‍यास म करम के महानता ला समझाए गेहे. गरीबी पर मेहनत कर के विजय पाए के कहिनी आए ये ह. उपन्‍यासकार नारी के दुख पीरा के घलव बरनन करे हावय अउ नारी के समाज म भूमिका ला बने जोर देके उभारे हावय.

रामनाथ साहू के उपन्यास ‘कका के घर’ म एक जात के भीतरे जात उपजात के बीच भेदभाव के कट्टरता के बररन हावय. जात सरदार मन के अनदेखहई अउ दू सहिनाव मितान के मितानी के सुघ्घर किस्सा हावय. उपन्यास के जवान पात्र मन के आपस म भोरहा के कारन जात उपजात म बिहाव हो गए रहिथे. उंखर मन के हिरदे म समाज के बड़ोरा ह कईसे खलबली मचाथे अउ मानवता ह कइसे उंखर मूड़ म सरसती कस बिराजथे तेखर सुन्दर चित्रण साहू जी ह करें हांवय. देस म खाप पंचायत के हो हल्ला होए के पहिलीच रामनाथ साहू के उपन्यासकार कबके जाग के ये उपन्यास लिख डारिस अचंभा होथे. रामनाथ साहू अपन दूसर उपन्यास ‘माटी के बरतन’ के बिसय अपन पहिली उपन्यास कस परम्परा ले थोरकुन हट के लेहे हांवय. उमन अभी के समे के लगत उद्योग अउ कम होत जात जोंत के रकबा उप्पर येमा चिंता करे हांवय. भूंइया ला लीलत लोहा कम्पनी के पहाड़ जइसे लोहा उत्पादन बर उंखर पात्र के कहना के मनखे ला लोहा के कतका जरूरत, जतका नांगर के सार म लगथे, बाकी के लोहा अबिरथा. रामनाथ साहू जी के सोंच उपन्‍यास लेखन के जम्‍मो थिलिंग ला अमरथे, उमन छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास साहित्‍य ला नवा अकास दे सकत हांवय.




डॉ.परदेशीराम वर्मा के उपन्‍यास ‘आवा’ छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍यके असल हीरा आए. ये पोठ उपन्‍यास आए. येमा स्‍वतंत्रता संग्राम के समे छत्‍तीसगढ़ के गांव गांव मन म गांधी अउ संत घासीदास के प्रभाव के बरनन हावय. समाज के अलग अलग वर्ग के हिरदे म स्‍वतंत्रता आन्‍दोलन के भाव जगाये अउ छुवा छूत, जात पात के बुराई के बिरोध म येमा जब्‍बर संदेसा हावय. उपन्‍यास म लीमतुलसी गांव के कथा हावय, पचास के करीब पात्र येमा अपन अपन अलग अलग भूमिका निभावत अपन उपन्‍यास म उपस्थिति ला घलव सिद्ध करे हांवय. कथा संग कहिनी ला मिझांरत अउ पढ़ईया के चिभिक ला पढ़े म लगाए राखे के बढिया जतन मनोरंजक रूप म येमा हावय. डॉ.परदेशीराम वर्मा हिन्‍दी अउ छत्‍तीसगढ़ी दूनों म सरलग लिखथें. ओमन ना सिरिफ लिखथें भलूक पढ़थें, हिन्‍दी साहित्‍य के उमन स्‍थापित कथाकार आंए, कथा के मरम उन जानथें अउ साहित्‍य के विधा के अनुसार अपन रचना मन ला सास्‍त्रीय सांचा के संगें संग लोक सांचा म ठोंक बजा के मढ़ावत जनता के आघू लाथें.

उंखर उपन्‍यास के गांव लीमतुलसी छत्‍तीसगढ़ के जम्‍मो गांव के निसानी आए, लेखक अपन ये गांव म नहीं नहीं म डेढ़ कोरी पात्र के संग आवा के कथा के भूंइया तियार करथे, सबो के अलग अलग मति अउ अलग अलग सुभाव, फेर जम्‍मों के एके ठन सोंच उज्‍जर भविष्‍य के आस. कथा, उपकथा ला रोचक बनाए खातिर उमन पारंपरिक गीत अउ तिहार मन के बिबरन डारे हावंय जेखर ले पाठक मन के चिभिक हरेक पाना म बने रहिथे. राजभाषा आयोग के अधियक्‍छ पं.दानेश्‍वर शर्मा ह ये उपन्‍यास उप्‍पर लिखे हांवय – महात्मा गांधी का स्वतंत्रता आंदोलन, सन्त घासीदास की सत्यनिष्ठा, छत्तीसगढ़ का इतिहास व गौरव, लोकभाषा का माधुर्य और रामकथा में ग्राम के लोकमानस का अनुराग इस कृति के पंचप्राण है। उंखर इही दू लाईन आवा के असल विसेसता के बरनन कर देथे.

बिसाहू मंडल, बिसनू दाऊ, पंडित रघोत्तम, घनाराम मंडल, अंकलहा, तेजराम गौंटिया, डाक्टर खूबचंद बघेल, संतू, सबितरी, राधा, जंगलू, रामाधार जइसे चरित्र मन के अपन अपन किस्‍सा ला सुघ्‍घर मोती कस पिरोवत ‘आवा’ माला बनत आघू बढ़थे. पूरा उपन्‍यास म गांधी जी परदा के पाछू गांधी गांव के सपना रचत नजर आथे. गांव के दिन प्रतिदिन के सहज घटना ला सांटत कहिनी म उंच नीच अउ जात पात के महल ओदरथे. गांधी, बाबा घासीदास अउ डॉ.खूबचंद बघेल के प्रत्‍यक्ष अप्रत्‍यक्ष बिचार ले गांव म छाए बम्‍हनौटी के संगें संग सामंतवाद के अंत होथे. चूरी पहिरी, पैठू जइसे समाजिक कुरीति उप्‍पर चोट करत कथा म नारी के पीरा तको उभरथे. ये उपन्‍यास के कथा ला नान्‍हें करे के उदीम अबिरथा हे, येला कहू आपला जानना हावय त येला पढ़े ला पढ़ही. खल्‍हे म हम आवा के कुछ अंस देके येला आपके हिरदे तक अमराए के उदीम करत हंन.

भाषा प्रवीन होए के खातिर डॉ.परदेशीराम वर्मा जी अपन रचना मन म सटीक भाषा के प्रयोग करथें. लोकोक्ति अउ मुहावरा मन के प्रयोग ले उमन बात म धार पैदा करथें. मुहा चाही म मुहावरा लोकोक्ति के संग बिम्‍ब सांटत उमन लिखथें – “चंदा हमर गांव के बड़े तरिया म उतर गे तइसे दिखत हे मंडल” इंहां चंदा के उतरना गांव म खुसहाली के आना आए. आघू एक जघा मालगुजारी अउ गौंटी के अंइठ ला सहज ढंग ले हाना जोरत उमन कहिथें – अंकलहा, बेंदरा जब गिरही डारा धर के । गौंटी करे हे । अटियाही मरत ले और मरत-मरत घलो अटियाही । डॉ.परदेशीराम वर्मा जी गांव में बोलइया सहज बोली भाषा के ठेठ प्रयोग करथें, कभू कभू तो अलकर लागथे फेर ठेठ देसज आनंद इही म आथे – तैं कइसे जाने अपन भइया के चाल ल रे बेसरम । मंडलिन के नंनद हांस के ओकर मरूआ ल धरिस अउ जुवाब दिस – बजेड़ंव का रे । गजब बुकबुकात हस । घुसेड दुहूं गड़मस्ती । नारी के दुख ला सबद देवत उमन लिखथें – मनहरण अउ लमातिस । फेर बेरा चढ़गे रिहिस । सब हांसत मुचमुचावत रेंग दीन । राधा भर रोवत उठिस अउ मनहरन कवि के पांव परे बर निहर गे । मनहरण किहिस – “बहिनी, जब ले दुनिया बने हे तब ले तिरिया ल ठगे हे सब । राम सहीं गोसइयां के बाई छितामाई ल पिरथी म समा जाय बर परिस बहिनी । आजो उही होत हे । माई लोगन के पत रखइया कोनो नइये । अपन रच्छा खुद करबे । देख सुन के हाथ गोड़ बचा के चलब म तुंहर चोला बांचही । नई ते धारे धार बोहात रइहू । मरद समाज ठग्गू समाज । ठग फुसारी करके सदा दिन माई लोगन के गर म फांसी लगइन अउ तब ले बड़का कहइन ।




गांव में फइले सामंती सासन अउ गंवइहा के पीरा के बरनन आवा म उभर के आए हावय. डॉ.परदेशीरम गांव म खेले बढ़े होए हावय, किसान के पीरा समझथे. अपन भोगे अनुभो के पीरा ला सबद देवत उमन लिखथें – लुवई भरदरा गे । खोजे का मिलतिस लुवैया फेर बिसनू दाऊ  काहत लागय । सब जतका बनिहार तौन बिसनू दाऊ  के खार ल लू लेतिन तब दूसर डाहर मुंह कर पातिन । दौरी बर घरो-घर ले बछवा बइला खोल के बिसनु दाऊ अघुवा के ले जाय । पहिली दाऊ  के मिंजई हो लेतिस तब किसनहा मन के पारी आतिस । तइहा जुग के नियम । चलागन चले आय हे । अउ त अउ, गौटिया घर के बेटी मन ल लिहे बर जाना हे त काम बंद । लिह के लान तब तोर खेत म जाबे । नागर बक्खर, दतारी, गाड़ी-गड़ाही, दौरी, ओसाना-धरना, सब म अव्वल लम्बर । बिसनू दाऊ  के काम चमाचम ।

उपन्‍यास बर कहे जाथे के वर्तमान के किस्‍सा ह भविस के थाती होथे, आवा म वर्तमान के संग भविष्‍य के सपना जीव परत रहिथे, स्‍वतंत्रता के पहिली अउ पाछू दूनों के समय ला लीमतुलसी देखथे. उपन्‍यासकार आवा म कथा अउ संदेस के सहारे तपत भविष्‍य के अइसन चित्र बनाथें जेखर महत्‍ता सरी दिन बर बरे रहय. उपन्‍यास के आखरी के पाना म उपन्‍यासकार के सबत खुदे कहिथे – आखिरी म बिसाहू बोलिस – हमर गांव म इहां के माटी म गजब गुन हे । गुरू रघोत्तम महराज के पुन्न परताप हे सब आसिरबाद हे । हमन अब होगेन सत्तर बछर के । हमर लइका मन सब जवान होंगें । हमर जाय के बेरा हे । रघोत्तम महराज काहय – “जिये के संकलप होथे मरे के तियारी ।” मरे के तियारी उही मनखे ह करथे जउन के संकलप लेके बने जीथे । त रघोत्तम महराज के बताय रद्दा म हम चलत आय हन । अउ देखो हमर गांव म इस्कूल खुलगे । अउ अठोरिया पन्दरही म भगवान जगन्नाथ के मंदिर म होय लागही पूजा ।

आवा ल पढ़त लागथे के डॉ. परदेशीराम वर्मा जबर सामरथ ले लीमतुलसी गांव के रग रग के कथा कहिथे, अउ सोंचथे के कथा म कुछु बांचे झन पाए. उमन गांव के किस्सा गांव के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक अउ राजनैतिक संदर्भ के संग प्रस्तुत करना चाहथे. तभे त डेझ़ कोरी पात्र मन ला संग गूंथत लीमतुलसी गांव के सनीमा कस कथा बखान करथे. ये सिरतोन आए के नवा खुसहाल देस के सपना देखे के पहिली हमला गांव मन के हालत अउ गवंई मनखे के सोंच ला समझे ला परही. इही उदीम म लीमतुलसी गांव ला आघू लाके लेखक देस के भविष्य के सपना ला पाठक मन के आघू लाए के उदीम करे हावय. उमन मनखे के मनखई सोंच अउ मनखे के भीतर जीयत कतकोन मनखे ला अपन उपन्यास म आघू लाए हांवय.




छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास मन म मुहाचाही के सही उपयोग करत कथा ला आघू बढ़ाए म डॉ.परदेशीराम वर्मा ह बढ़ चतुरा हांवय. उमन ह रेणु के परम्‍परा के पत रखवार आंय तेखर सेती उंखर मुहाचाही अइसे लागथे जइसे हम ओला पढ़त भर नइ अंन ओ हर हमरे आघू बोले गोठियाए जात हावय. सरला शर्मा ह घलव अपन उपन्‍यास म अपन पात्र मन के गोठ बात ल बने सहराए लइक उपयोग करे हांवय. आन जम्‍मो समरथ उपन्‍यासकार अपन अपन अनुसार अपन उपन्‍यास म मुहाचाही के सफल उपयोग करे हांवय. हमर मन के नानचुक खटका घलव ला गोठियाना चाहिहंव, सियान मन बिना रिस के धरिहव. रामनाथ साहू ह मुहा चाही म नवा उदीम करत दिखथें, उमन पात्र के बोले के पाछू घेरी बेरी टिपका टिपका बनाथें, जानों बोली के बाद के शबद हम जोरन. मोला ये ह बोली के सरलग धार ला रोकई कस लागथे. अइसनेहे सरला शर्मा ह अपन उपन्‍यास म मुहा चाही के बड़ सुघ्‍घर उपयोग करें हांवय फेर अपन उपन्‍यास म घेरी बेरी ‘सांसत’ सबद के परयोग अउ अपन लिखई ला तउलई अतिकहा हो गए हे, अपन गोठ ला लेखिका ‘कहूं’, ‘मोर मति’, ‘मोर मानती’, ‘सकहूं के नहीं’ जइसे टेकना के बिना कह सकत हावंय. ये टेकना मन उपरछवा कस लागथे. मोर मति म लेखिका सामरथवान हावय ये उंखर उपन्‍यास म झलकथे.

लेखक के अपन समय अउ अभीन के समय म घटत घटना अउ लेखक के मन म उन घटना मन बर उठत उदगार उपन्‍यास म अपने आप उतरत चले जाथे अउ इही ह उपन्‍यास के सार बनथे. हिन्‍दी म इही ला देश काल कहे जाथे. हमर सुरू के उपन्‍यास मन म हीरू के कहिनी अउ आवा जइसे उपन्‍यास अजादी के समय के गोठ बात कहिथे उंहें समय के बीते ले समाज म ठाढे दूसर समस्‍या, दुख पीरा ह आने उपन्‍यास मन म आथे. इही कारन रामनाथ साहू अउ सरला शर्मा जइसे लिखईया मन आज के समय के जीवत जागत चित्र अपन उपन्‍यास मन म प्रस्‍तुत करथें. रामनाथ साहू ह तो कका के घर म खाप पंचायत के नवा गरेर के बात अपन उपन्‍यास म बड़ पहिलीच उजागर कर डारे हांवय. सरला शर्मा ह डंगचघहा, देवार अउ सबररिया जइसे कमजोर, समाज के हीन मनखे मन कइसे देस के बिकास के धार ले छटिया गए तउन ला अउ समाज के माई धार म जुरत कमजोर तबका के हाल बताथें. देस काल के परखर चित्र बनाए म डॉ.सोनी ह नवा उदीम करत नजर आथें, उंखर उपन्‍यास मन म नारी के उप्‍पर होवत अतियाचार अउ सब सहिके उठ खड़ा होवत नारी ला अपन उपन्‍यास म ओमन खड़ा करथें. स्‍वतंत्रता के बाद ले हमर समाज म परिवर्तन आए तो हावय फेर सामाजिक समस्‍या मन समकुल खतम होए नइ हे, ते खातिर से हर समें म लिखे गए रचना म इंखर छाप अपने आप आथे. तेखरे खातिर लेखक कोती ले भलुक उपन्‍यास के लेखन समें काल अउ परिस्थिति के संग होथे फेर उपन्‍यास के सरीदिन महत्‍व बने रहिथे. ओ ह समें के इतिहास ल हमला बताथे, कई ठन उपन्‍यास ल तो कोनो समें पढ़ लव हर समे म, पढ़े ले अइसे लागथे के ये किस्‍सा अभीन के ये.

लेखक के सोंच रोजे रोज होवत घटना मन ले परभावित होथे अउ वो ह कोनो न कोनो रूप म रचना मन म समावत जाथे लेखक अपन मति अनुसार इही मन ला सोंचत गनुत लिखथे. पाठक घलव इही मन ले प्रभावित होथे अउ वो ह रचना ला पढ़त, ओमा अंतस ले जुरत, रचना उप्‍पर अपन राय देथे. फेर मोर मति म उपन्‍यास भलुक कोनो समें म लिखे गए होवय ओमा पाठक अपन पढ़े के समय ला देखथे. ओमा अपन अभीन के देस अउ समाज ला तउलथे, पाछू के दिन के आवा म पके अपन अभी के दिन के संघर्ष ला जानथे. येई कारन आए के हीरू के कहिनी अउ आवा जइसे उपन्‍यास हरेक समे काल म नवा अंजोर बगराथे. परम्‍परा अउ हमर संस्‍कृति के झलक देखाए के कोसिस जम्‍मो उपन्‍यास मन म होए हे, गीत, स्‍लोक, लोक गीत के दू, तीन पद के प्रयोग करत उपन्‍यास के कथा ला नाटक बरोबर आंखी के आघू लाए के कोसिस करे गए हावय.




छत्‍तीसगढ़ म अभी भाषा के मानकीकरन नइ होए हे ते खातिर अभी भाषा के कसावट ला बने सहिन गोठियाए नइ जा सके तभो ले अभी तक प्रकासित जम्‍मो उपन्‍यास भाषा के मामला म कोनो कम नइ हे. डॉ.परदेशीराम वर्मा अउ केयूर भूषण जइसे मैदानी छत्‍तीसगढ़ के लेखक मन के भाषा अउ सरला शर्मा अउ रामनाथ साहू के भाषा म उंच राज अउ खाल्‍हे राज के भाषा के अंतर हावय. जहां बिलसपुरिहा, सरंगढिहा बोली के गुरतुर मिठास हावय त रइपुरिहा बोली के सहज सुन्‍दर अंदाज. सरला शर्मा के नवा उपन्‍यास म तो खल्‍हे राज के अड़बड़ अकन नंदावत सबद मन के प्रयोग होए हावय. सरला शर्मा अपन उपन्‍यास ला अइसन गुरतुर भाषा ले लिखे हांवय के वो पुरा उपन्‍यास कविता बानी लागथे.

देस समाज के दुख पीरा ला छत्‍तीसगढिया लेखक मन घलव चिन्‍हथें अउ ओखर बर सिसकथे घलव ये बात ह हमर उपन्‍यास मन म परखर आए हावय. हमर जम्‍मो उपन्‍यास समाज के बुरइ, समस्‍या अउ समाज म रहइया मनखे के पीरा ला उजागर करे हांवय. जमो उपन्‍यास अपन मूल ला कहत समाज म फइले बुराई मन ला हटाये के उदीम करें हावय. नारी मन के अंतस के पीरा, नारी परतंत्रता, छूवा छूत, जात पात, उंच नीच अउ अशिक्‍छा, सोसन के बिरोध ह हमर अभीन तक के उपन्‍यास मन के असल आवाज आए. जम्‍मो मन एक ठन मूल उद्देस्‍य ला घर के समाज के सुघार के दूसरो बात घलो कहें हावय. चंद्रकला जइसे उपन्‍यास म नारी जागरन अउ आवा जइसे उपन्‍यास म समग्र जागरन के बात बहुत खुल के सामने आए हावय. हिन्‍दी उपन्‍यास जइसे अभी छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास मन म नारी अस्मिता, दलित जागरण, साम्राज्‍यवादी चिंतन अउ औद्यौगीकरण के पीरा ला समकुल केन्‍द्र म लेके कोनो उपन्‍यास नई आ पाए हावय, पाठक ला अइसन मरम भेदईया उपन्‍यास के अगोरा हावय.

साहित्‍य के रीति-नीति कस आलोचना, समालोचना अउ समीक्‍छा लिखे के सामरथ मोर मेर नई ये, मोर ये लिखई एक पाठक के सोंच आए. छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य म ये बिधा म लिखईया नन्‍दकिशोर तिवारी अउ डॉ.बल्‍देव जइसे दू चार झन सियान मन ला छोड़ दन त, अभी जउन आलोचना के रूप म समीक्‍छा लिखई होवत हावय ओ ह समीक्‍छा ना होके गुनगान बखान जइसे लागथे. सियान मन मेर पूछबे त कहिथें अभी लेखन ला बढ़ावा देहे के समें हे, अभी छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य के भंडार ला भरना हावय. येखर खातिर बदरा संग धान के सकलई घलो चालू हावय. समें के गरेरा म बदरा खुदे उड़ा जाही बांचही उही जउन रचना म दम रही. सहीं कहिथे सियान मन फेर तुतारी के बिना नांगर अउ निंदई के बिना फसल के जादा आस करई बने नइ हे. हमर भाषा के साहित्‍य म हमला स्‍वस्ति वाचन ले जादा आलोचना के जरूरत हावय, इही वो समय हे जब हमर साहित्‍य के फसल निंदई कोड़ई मांगत हावय. येखरे खातिर छत्‍तीसगढ़ी आलोचना के समंगल बिकास होना जरूरी हावय. छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य के आलोचना अभी हिन्‍दी के ढ़ेखरा के सहारे हावय. अब समें आ गे हावय के हिन्‍दी आलोचना के परम्‍परा अउ रामचंद्र शुक्‍ल ले उधार लेहे बेंवारस सबद के जघा लउहे अपन भाषा के सहारे छत्‍तीसगढ़ी आलोचना साहित्‍य घलो आवय अउ छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास के नीर छीर के बरनन होवय.

अभी तक छपे छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास मन ला दही बिलोए के उदीम म हम लेवना मान सकत हावंन. हमला भरोसा हावय के समे अउ पाठक के रूचि के आगी म येहर घी घलव बनही. मैं सोंचथंव के रचना आघू के उज्‍जर दिन के सोंच ला परगट करय, पाठक मन के हिरदे म नवा ताकत संचारै अउ समकुल बिकास के संदेसा देवय. अउ ये हर कइसन के येला सहज हमर तुहंर असन मनखे मन कर सकयं ना के सरग ले उतरे कोनो अवतार. मोर भरोसा नवा जवान मन उप्‍पर हावय, जउन हिन्‍दी साहित्‍य अउ अभी के देस समाज ला देखत, सुनत अउ पढ़त कालजयी छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास रचही. अउ एमें कोनो संका नइ हे के बबा नागार्जुन के मैथिली उपन्यास पारो, नवतुरिया अउ बलचनमा, हरिमोहन झा के कन्यादान, द्विरागमन, डॉ.भारतेन्दु मिश्र के अवधी उपन्यास नइ रोसनी कस हमरो छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास विश्‍व साहित्‍य म नाव कमाही. हमर गांव गंवई के कोनो परती परिकथा हा घलव महबूब खान के मदर इंडिया बनही.

संजीव तिवारी
संपादक – गुरतुर गोठ डॉट कॉम
सूर्योदय नगर, खण्‍डेलवाल कालोनी, दुर्ग.
मो. 09926615707




8 replies on “छत्तीसगढ़ी के उपन्यास : मोर बिचार”

There is overpraised regarding AAWA as a novel. In fact it is a long storey and completely fail to raise the core problem of chhattisgarh like poverty, unemployent etc too.

आदरणीय कुबेर जी, धन्‍यवाद. आपकी टिप्‍पणी नें मुझे आलोचनात्‍मक अध्‍ययन के आवश्‍यक आयाम पर दृष्टि डालने हेतु प्रेरित किया है. आगामी आलेखों में ध्‍यान रखूंगां.

What I think is people from mass media and production houses who’s owner are not chhattisgarhi ,they are either from Rajisthan or UP/Bihar are tapping this grooming market.It is very ironical to see the people from outside the chhattisgarh seems more intrested in this language ,than a local people who is real chhattisgarhi.

Chhattisgariya is always cheated. Sorry If I am Too rude but it is true.

छत्‍तीसगढ़ी के उपन्‍यास, आपके बिचार बने लगीस। आप अइसने मूल्‍यांकन कहानी लिखईया मन के घलोक करौ इही मोर बिचार हवै।

छत्‍तीसगढ़ी के उपन्‍यास, आपके बिचार बने लगीस। आप अइसने मूल्‍यांकन कहानी लिखईया मन के घलोक करौ इही मोर बिचार हवै।

संजीव तिवारी भैया,नमस्कार
छत्तीसगढी उपन्यास पर तुम्हार बिचार पढिकै बहुत नीक लाग।अचरजु यू भवा कि यहिमा तुम हमारौ उल्लेख कीन्हे हौ। बधाई। अपनि बोली बानी नब्ढी तो अपन गाँव जवारि के तमामौ सबद सम्पदा बिलाय जैइहैं।

very nice and impressioly. ye upanyas hamar c.g. ke gaurav au dharohar ke nishani ye.

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