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व्यंग्य

यमराज ला होगे मुस्किल

भगवान भोलेनाथ कर विष्णु जी हा एक दिन पहुँचिस अउ महादेव ला कहिस-हे त्रयम्बकेश्वर! एक विनती करेबर आय हँव।महादेव कहिस- काय बात आय चक्रधर! आज आप बहुतेच अनमनहा दिखत हव।अइसे कोन बूता आय जौन ला आप नइ कर सकव।विष्णु जी कहिस- का बताँव महराज! ये यमराज हा उतलंग नापत हे। जतका हमर भगत हे, सब ला रपोट बहार के उपर लावत जात हे। नियम कानून के पालन नइ करत हे। हमन नियम बनाय रहेन कि जौन मन देबी देवता के भगत हवे ओमन ला यमराज हा हाथ झन लगाही।फेर वो तो जेकर दिन नइ पूरे हावय वहू किसान, बेरोजगार, अबला, के संगे संग हमर भगत मन ला रपोट के लावत हे। पाछू दिन रामलीला देखेबर गय जनता ला रेलगाड़ी चढ़ा के ले आइस। इंद्र देव ला धमका के बाढ़ लनवा के कोरी खरखा मनखे ला बटोर के लान लीस।अइसन मा तो पृथ्वी लोक मा हमर भगत के संख्या उद्दे कमती हो जाही। बिष्णु भगवान के गोठ सुनके भोले बाबा घलो सुकुड़दुम होगे। ये तो गुनान करे के बात आय केशव।मैं नंदी ला भेजथँव अउ यमराज ला बलवाथँव।वो हा काबर उतलंग नापत हवय ते।अइसन मा तो हमर मानताच नइ रही।
भोलेनाथ हा बिष्णु जी ला बइठे बर कहिस अउ नंदी ला बलाके यमराज ला तुरते धर के ला कहिके हाँकिस । नंदी हा आगू के दूनो गोड़ ला रगड़िस अउ पल्ला यमलोक के रद्दा धरिस।यमलोग में न यमराज मिलिस न मंत्री चित्रगुप्त। वो हा लहुटेके रद्दा ला छोड़के,नरक के रद्दा धरिस।नंदी महराज के बइला बुद्धि मा आइस कि कहूँ नवा नवा जीव लाय होही तौन मनके सजा निपटात होही।वोकर सोंच हा फेल खागे।वहुँचो नइ मिलिस।अब नरक के दुवार मा निकलतेच रहिस कि यमराज, चित्रगुप्त अउ यमदूत मन ले भेंट होगे।अड़बड़ अकन जीव जेमा लइका, सियान, माईलोगिन अउ आनी बानी के संवांगा पहिरे आठ दस कोरी जीव मन ला लानत रहय। मोहाटीच मा भेंट होइस।नंदी महराज हा यमराज ला कहिस- हे यमराज! तोला तुरते महादेव हा कैलास बलावत हे।
बिना कुछू पूछताछ करे,नंदी के पीछलग्गा कैलास पहुँचगे।
हाथ जोड़के महादेव अउ बिष्णु ला प्रणाम करत कहिस- काय होगे भोलेनाथ! जेमा मोला तुरते बलाय हव? यहा दे रमापति घलो आय हवय। कोनो बिपत आ गे हवय का? महादेव कहिस – यमराज! तँय विधि के नियम कानून ला काबर टोरत फोरत हस जी? यमराज सकपका गे । थोकिन फोर के बतावव महराज, मँय बूझ नइ पावत हँव।भोलेबाबा कहिस- देख यमराज! हमन नियम बनाय रहेन कि जौन देवी देवता के भगत उपासक हवय , सज्जन मनखे, साधु संत के आचरण वाला हे,वोमन ला अलप काल मा नइ मारना हे कहे रहेन। तब रोज कोरी कोरी, सैकड़ा सैकड़ा काबर डोहारत हस ? ये दे बिष्णु जी घलो इहीच बात ला लेके आय हे।
यमराज कहे लागिस- अनजाने मा होय गलती ला क्षमा करहू महराज , फेर जानबूझ के तो मँय अभी तक एक ठन जीव घलो तो नइ लाय हँव।देव धामी के पूजा करइया मन कमती होगे तइसे लागथे।फेर आपमन घलाव एकाधदिन पृथ्वी लोक मा जाके देखतेव।उहाँ के बेवस्था हा बिगड़त जात हे।अब तो कते घर भगत के हरय अउ कते घर बगुला भगत के , कहींच समझ नइ आय।आपमन बताय रहेव कि जौन घर के छत मा पिंयर रंग के ध्वजा रही वो बिष्णु भगवान के भगत आय।बिष्णु ,राम, कृष्ण, जगन्नाथ के भगत मन घर के छत मा इही रंग के ध्वजा बाँधे रहिथँय।शिव भगवान ला मानने वाला के घर अउ शिव मंदिर मा सादा रंग के ध्वजा बँधाय रही।अइसने बजरंगबली अउ शक्ति माता मन के मंदिर अउ भगत घर लाली रंग के ध्वजा रही। अइसने शनिदेव अउ काली भवानी के मंदिर अउ भगत मन के घर मा करिया रंग के ध्वजा रही।हमन इही नियम के पालन करत हन।जे घर मा ये ध्वजा बँधाय रहिथे,उहाँ जाबेच नइ करन।अब तो अइसन घर अउ मंदिर नाव गिनती के रहिगे हवय।आज से तीस चालीस बच्छर पहिली रहिस, घरो घर कोई न कोई रंग के ध्वजा बँधाय रहय।फेर अब तो सब घर मा ये चारो रंग के ध्वजा ला छोड़के, गुलापी, नीला ,भगवा रंग केअउ दू रंगी तीन रंगी ले सतरंगी ध्वजा बंधाय रहिथे।ये सब राजनीतिक पार्टी के ध्वजा हरे।हमुमन अकबका जाथन। फेर भीतरी मा जाके देखथन तब जनाकारी होथय।
प्रभू ! अब मँय कइसे जानहूँ कि कते हा कोन देबी देंवता के भगत आय। कतको घर मा तो दू रंग , तीन रंग के ध्वजा बंधाय रथय।समझ मा नइ आवय कि ये हा कोन देवता के भगत आय।हमन लाल , सफेद, पिंयर अउ करिया ध्वजा ला जानथँन।यमदूत मन ला घलाव चेता बता के भेजथँन। आपमन एक घाँव पृथ्वी मा किंदर के आतेव।संग मा महू चल देतेंव।
दिन तय होगे कि रामनवमीं के दू दिन पहिली जाबोन। बिष्णु, महादेव , यमराज,चित्रगुप्त संग दू तीन झन यमदूत मन घलाव पृथ्वी लोक मा जाय बर तैयारी करके अपन अपन वाहन मा निकलिन। पृथ्वी आय के पहिली उपर आकास ले बिष्णु अउ भोलेबाबा उपरे ले एकठन शहर ला देखिन।पूरा सहर मा हर घर मा ध्वजा लगे हावय।नगर भर मा तोरण पताका बँधाय हवय।काबर कि दू दिन पाछू तिहार मनाय के तैयारी चलत रहय।
भोलेबाबा बिष्णु ला कहिस- प्रभु! मोर आँखी धोखा खावत हे का ? इहाँ पूरा नगर भर ध्वजा फहरात हे, फेर ध्वजा के रंग ला देख देख के मोर हृदय कसमसात है। सबो घर मा ध्वजा तो बँधाय हे फेर रंग हा न लाल,न पिंयर , न करिया ,न सादा हवय।रामनवमीं मा मोर रामरूप के अवतरण के उत्सव मनाही।तब मोर पिंयर ध्वजा तो कहींं दिखबे नइ करत हे। यमराज ला तो मउका मिलगे। देखव औघड़नाथ! अब मँय अब ये लइका ला कइसे समझावँव।
भोलेनाथ अउ बिष्णु घलाव बिछुध होगे।ये कोन नवा देव अपन जाल फैला के अतेक भगत बना डरिस। एक ठन छत वाला मकान मा निंगीस।उहाँ राम जन्मोत्सव के तियारी के रुपरेखा बनत रहिस।फेर वो राम के मंदिर नइ रहिस।चार पाँच ठन घर के आड़ मा एकठन घर मा दू फाँकी वाला बड़ जबड़ ध्वजा उड़ात रहिस। सबो झन उहाँ पहुँच गे। देख के सुकुड़दुम होगे।इहाँ कुकरा, बोकरा कटत रहय।जौन कार्यकर्ता रैली के योजना बनात हवय उँखरे मन बर भोजन के तैयारी चलत रहय।सबोझन तुरते निकलिन।
यमराज कहिस – अइसनेच आय महराज! कोनों रैली होवय जब तक उहाँ पीये खाय के बेवस्था नइ रही तब तक सफल नी होवय।भगवान मन समझ गे ,हमर बनाय मनखे अब अपने पूजा कराय बर अपन पार्टी बना के ,ध्वजा बनाके ,हमर नाव लेके अपने पूजा करवावत हावय।लोगन के भावना ले खेलत हे।उही पाय के अलहन अड़बड़ होवत हे।यमराज के बुता बाढ़गे हावय।यमदूत मन ओवर टाइम करत हे।सहर मा तो रातदिन एके बरोबर हो गे हावय।मनखे मन दिन मा सूतथे अउ रात मा जागथे।
भगवान भोलेनाथ अउ विष्णु भगवान लहुटके कैलास आ गे।सोंचेबर लगगे।ये ध्वजा ला हमर नोहे कहिबो तभो ले मनखे मन एला नइ छोड़य। जतका देवधामी हे सबो करा संदेश पडो देवव।जौन करा धार्मिक पूजा पाठ कथा होही अउ नेवता परही ओमा जाना हे ध्वजा ला जादा धियान नइ देना हे।

हीरालाल गुरुजी” समय”

छुरा, जिला गरियाबंद