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कविता

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य कविता

1
मोर तीर मोर स्कूल के लइका मन पूछिस
गुरुजी पहले के बाबा अउ अब के बाबा म
काय काय अंतर हे।
मय कहेव बेटा “पहिली के बाबा मन
सत्याचारी होवय, निराहारी रहय
ब्रह्मचारी और चमत्कारी होवय।
और अब के बाबा मन
मिथ्याचारी, मेवाहारी,
शिष्याधारी आश्रमधारी होथे
पहिली कबीरदास, रैदास तुलसीदास होवय
अब रामपाल आशा राम, रामरहीम असन बलात्कारी होथे। ।

2
मंत्री जी ह पेड़ लगाइस बिहनिया
बोकरा वोला खा लिस मंझनिया
रात म बकरा ह बन गे मंत्री जी भोजन
अइसना करिस मंत्री जी ह परियावरण सरंच्छन

3
मोर दोस्त मोला फोन करिस
“मलंग भाई मोला दारू छोड़ना हे”
मैं सुनके बहुत खुस होयव
“बहुत खुसी के बात आय भाई, छोड़ दे”
वो बोलिस “एक ठन दिक्कत हे”
दारू ल काखर पास छोडव ,
इँहा के सब दोस्त मन दरुहा हे ।

4
पाखंड अउ विडम्बना कतका बड़े हे
घर के नाव मातृछाया हे
अउ घर के महतारी
वृद्धाश्रम म पड़े हे ।

महेश पांडेय “मलंग”
पंडरिया (कबीरधाम)



One reply on “छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य कविता”

बहुत ही बढियाभावभ्यक्ति पांडेय जी

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