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व्यंग्य

व्यंग्य : बछरू के साध अउ गोल्लर के लात

चरवाहा मन के मुखिया ह अतराप भर के चरवाहा मन के अर्जेन्ट मीटिंग लेवत समझावत रहय कि ऊप्पर ले आदेष आय हे, अब कोन्हो भी बछरू ला डराना-धमकाना, छेकना-बरजना नइ हे बस अतके भर देखना हे, ओमन रोज बरदी म आथे कि नहीं? बरदी म आके बछरू मन कतको उतलइन करे फेर हमला राम नइ भजना हे। जउन बछरू बरदी म नइ आवत हे ओखर घर में जाके ओला ढिल के लाना हे अउ भुलियार के बरदी म रखना हे। ओमन चाहे तुमन ला लटारा मारे, चाहे हुमेले। तुमन ला कहीं नइ कहना हे भलुक प्यार से समझाना हे, अइसना नइ हुमेले बेटा। सींग म पेट ला लाग जथे गा। ज्यादा उतलइन नइ करे जी, श्रीमान हो। महोदय मन अतेक काबर अतलंग करथो रे, बाबू हो। बस अइसनेच समझाना हे। न कोन्हो ला हुदरना हे, न काखरो बर लउठी उबाना हे अउ न हर्रे कहिके बरजना हे, इहां तक कि कोन्हो ला लाल आंखी तक नइ देखाना हे अउ न कोन्हो ला करू भाखा कहना हे। कोन्हो भी बछरू कोती ले तुंहर षिकायत मिलही तब तुहर जेवर पानी ला बंद कर दे जाही, समझगेव? अतका समझाय के बाद तुमन नइ मानहूं तब तुम जानो अउ तुहर काम जाने।




मुखिया के गोठ ला सुन के सब चरवाहा एक-दूसर के मुँहूं ला देखे लगिन। सबो झन मने-मन गुनत रहय। बड़ा मरना हे यार! संसार के सबो जीव ह ननपन में जउन बात ला सीखे-पढ़े रथे ओखरे असर जिनगी भर रथे। अइसना नियम में हमर नान-नान बछरू मन उजड्ड हो जही। कहीं नीति-नियम ला न तो जानही अउ न बडे बाढ़ के मानही। फेर हमन ला काय करना हे ददा, जेवर-पानी के सवाल हे। जेवर पानी बंद हो जही तब पेट बिकाली म हमी मन मर जबो, तेखर ले जइसे ऊप्पर ले आदेष आय हे, वइसनेच करे में भलाई हे।
बरदी के नियम कानून ह ढिल्ला होइस तहन सब बछरू मन मनमाने उतलइन होगे। बछरू के गोसान मन सोचे कि चरवाहा मन अलाल अउ कोढ़िया होगे हे। फोकट के जेवर पाके मेछरावत हे अउ खेत म कनिहा तोड़ के कमइया सियान-सियान बइला मन अपन बछरू मन के भविश्य ला सोच के रातदिन संषो-फिकर म बुड़े रहय। ओमन मने मन गुनय कभू हमू मन बछरू रहेन तब हमर गोसान नहीं ते चरवाहा ह हमर असन दु झन बछरू ला जोड़ के एके संघरा रेंगें बर सिखोवय। नांगर म फांद के अघुवा बइला मन के पाछू-पाछू खेत म नांगर के हरिया म रेंगावय। दौड़ी म फांद के सब सियान मन संग रेंगे बर सिखोवय। लइकापन म हमन कोन्हो बरदी के नियम-कायदा ला तोड पारन तब छेके बरजे, फेर आजकल अइसन का होगे कि चरवाहा मन कछु बोलबे नइ करय।
येती छेल्ला पाके बछरू मन गजब लाहो ले लगिन। जब मन होवय तब बरदी ला भाग जावय। काखरो बारी बखरी म खुसरके बेन्दरा बिनास कर देवय। उखर मन में डर नाम के कोन्हो बातेच नइ रहिगे। सबे बछरू मन हरहा होय लगिन। हरहा बछरू मन कभु रखवार के सपेटा म पड़ घला जाय अउ कांजी हाऊस म धंधाय के सजा मिल जाय तब रखवार तीर तुरते गोल्लर साहब के सिफारिष आ जाय। गोल्लर साहब के डर के मारे रखवार मन तुरते हरहा बछरू मन ला कांजी हाऊस ले छोड़ देवय। गोल्लर साहब के परताप ला देख-सुन अउ समझ के बछरू मन के मन में बस गोल्लर बने के साध रहय। कभु-कभु बछरू मन अपन जहुंरिया संगी-साथी मन संग गोठियावय कि भुंकरे वाला गोल्लर बनना चाही कि आषिरवाद दे वाले गोल्लर। जिनगी के मजा इही दुनो किसम के गोल्लर बने म हे। जउन बछरू ला आषिरवाद दे वाले गोल्लर बने के साध रहय वोहा नंदिया बइला ला अपन गुरू बना लेवय अउ जउन ला भुंकरे वाले गोल्लर बने के सउख रहय ओमन भुंकरे वाले गोल्लर के आघू-पाछू किंजरय। उखर इषारा म बेन्दरा बरोबर नाचय।
गोल्लर साहब के आघू-पाछू नाचत-नाचत जब एक झन बछरू जवान होगे तब मउका देख के वोहा एक दिन गोल्लर साहब ला कही पारिस-‘‘अब तो आप मन सियान होगे हो। भुंकरे भर ला सकथव तुहंर गतर तो चले नही। अब हमू मन तो गोल्लर बने के मौका देवव साहब।




बछरू के गोठ ला सुन के गोल्लर साहब भड़क गे। कहिस-‘‘तुमन गोल्लर बने के लइक दिखथव रे। नाक बोहावत हे तेला पोछे के ताकत नइहे अउ बड़े-बड़े सपना देखथव। तुमन हमर धरम अउ पारटी के झंडा ला उठा के जिन्दाबाद कहत भुंकरव। जउन ला मन लागे तउन ला हुमेलव। जेखर बारी-बखरी ला रउंदना हे रंउदव। कोन्हो रखवार छेकही बरजही तब हमला बतावव। हमर रहत ले कोन रखवार के हिम्मत हे जउन तुंहला कांजी हाऊस म धांध सके। बस गोल्लर बने के साध झन करव नहीं ते अइसे हकन के लटारा जमाहूं कि जिनगी भर बर गोल्लर बने के साध ला बिसर जाहू, समझ गेस?
हमर रहत ले तुमन ला गोल्लर बने के अधिकार नइहे। हमर बाद हमरे पिला-पागड़ू मन गोल्लर बनही। ओखर बाद उखर पिला मन गोल्लर बनही। ओखर बाद—। तुंहर काम सेवा करना आय अउ सेवा के बदला ला मेवा पाके मजा उड़ाना हे, समझेस?
फेर ये पइत तो वो बछरू के दिमाग में गोल्लर बने के भूत सवार होगे रिहिस। वोहा गोल्लर साहब के बात ला समझबे नइ करिस अउ अपन जिद में अड़े रिहिस। गोल्लर साहब के दिमाग खराब होइस तब वोहा वो बछरू ला अइसे जमा के लटारा हकनिस कि बछरू ह सोझे पषु औशधालय के आधू में जाके गिरिस।
भकरस ले आवजा ला सुन के अस्पताल के भीतरी में खुसरे डॉक्टर झकनाके खोर डहर दौडिस। देखिस, बछरू उतान पडे रहय। डॉक्टर ह तीर में आके पूछिस-‘‘आपके आगमन कहाँ ले होवत हे बछरू बाबू? सुनके बछरू बगियागे। ओखर एड़ी के रिस तरवा म चढ़गे। वोहा किहिस-‘‘दिमाग खराब झन कर यार! सोझ बाय मरहम-पट्टी कर अउ सूजी पानी दे। डॉक्टर ह मरहम -पट्टी करे लगिस फेर बछरू ह कनिहा पीरा म हकरत-हकरत गोल्लर भैया जिन्दाबाद के नारा ला लगातेच रहय।

वीरेन्द्र ‘सरल‘
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