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कविता

चिंतन के गीत

बरहा के राज मा,
जिमीं कांदा के बारी।
बघवा बर कनकी कोंढ़हा,
कोलिहा बर सोंहारी।।..

कतको लुकाएंव दुहना,
कतको छुपाएंव ठेकवा।
दे परेंव, बिलई ल रखवारी..

चोरहा ल देखके,
सिपाही लुकाथे जी।
बिलई ल देखके,
मुसुवा गुर्राथे जी।।
मछरी ह होगे अब तो,
कोकड़ा बर सिकारी…
बरहा के….

गरी खेलईया ह ,
फोही लगावत हे।
कोतरी झोलईया ह,
भुंडा फंसावत हे।।
पांच बरस बर होगे,
ओखर देवारी….
बरहा के……

करगा अउ धान के,
अंतर ल देखव रे।
खेत के बदौरी ल,
मेंड़े म फेंकव रे ।।
छत्तीसगढ़िया मनके,
होगे हे लचारी….
बरहा के…

राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
मो नं 9340434893
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