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व्यंग्य

पंचू अऊ भकला के गोठ : चुनई ह कब ले तिहार बनगे

पंचू अऊ भकला के गोठ बात चलत रिहिस हे, थोरकिन सुने बर बईठ गेंव पंचू काहत रहय भकला ल, सुन न रे भाई भकला, चुनई आवत हे हमर गाँव गंवई के मईनखे बर बड़का तिहार ये।
भकला- किथे, पंचू भईया चुनई ह कबले तिहार बन गेहे नवा बनाय हे का ? पहिली तो अईसनहा तिहार सुने नीं रेहेंव। दसेरा, देवारी, होली, हरेली ल जानथव अऊ सबो गाँव वाले मन मिरजुर के मनाथे, फेर ये चुनई ह तिहार कबले बनगे ?
पंचू- किथे, जबले अंगरेज मन हमर देश ल छोड़े हे, तबले हमर देश के कोकड़ा भगत मन ह ऊकर कपटी चाल ल आगू बढाय के गियान सिखे हे. तऊने दिन ले तिहार बनगे हे। देवारी होली ले भी बड़का होथे, काबर सबो तिहार ह तो हर साल आवत रीथे। फेर चुनई के तिहार ह पांच साल म ऐके बार आथे। अऊ अईसन खलबली मचाथे कि अवैईया पांच साल तक मईनखे मन नीं भूलय।
भकला- कईसनहा होथे ये तिहार ह, देवारी असन नवा नवा कुरता सिलाय बर पड़थे ते होली असन चिरहा फटहा पहिर के घुमे बर पड़थे।
पंचू- काही नई जानस रे तेंहा, गाँव गाँव में गाड़ी मोटर अऊ फटफटी मन धुर्रा उड़ाथे, बरदी के बरदी मनखे मन ह सकलाय, घरों घर खुसरथे अऊ किथे देखे रहिबे ददा इहूँ साल भुलाबे झन बटन चपके बर। कोनों बरदिहा ह बम फोड़थे, कोनों रंग गुलाल उड़ाथे, कोनों बरदिहा ह मोटर कार म बईठे रहिथे तेन मनखे ल माला पहिराथे। कतको जगा म ओकर मन बर मंच तको बनाय रीथे भूके बर। त जब बम फूटथे त सुते रीथे तेन बेंदरा मन ये डारा ले वो डारा हूँत हूँत कीके खुशी के मारे कुदत रीथे। कोलिहा कुकुर गजबिज गजबिज सकलाय रीथे, बिलई कपसे देखत रीथे काय होवत हे कीके, चुनई तिहार वाले मन ल।
भकला- मोर मगज में समझ नई परत हे भईया, बड़का तिहार मनाय के रीत ह, बेंदरा मन काबर खुश होथे मईनखे के तिहार म। कोलिहा कुकुर काबर सकलाथे, बिलई काबर कपसे रीथे। फरिया के बताव न, दाई ल जा के बताहूँ बड़का तिहार आय हे कीके, तभे तो मोर बर रोटी पीठा खीर तसमई बनाही।
पंचू- अरे बईहा निचट तेंहा भोकवा हस रे, बेंदरा माने मनखेच, ये जेन ह चुनई तिहार वाले के आगू पीछू भागत रीथे। ये पारा ले वो पारा ये गाँव ले वो गाँव तेला काहत हौ। रोटी पीठा नई बनावय ग, वो चुनई तिहार वाले मन ह खुदे बोलथे रोटी पीठा ल काय खाहू, कोनों मेर हिसाब जमावव मुर्गी बकरा के पारटी मनावव। जेन जतका पीही वोकर बर वोतके बेवस्था करबो कीथे। सबो मईनखे ल भरमाथे, अऊ किथे इहूँ साल देख लिहू मोला,बटन चपके बर झन भुलाहूँ।
भकला- त काबर देखे बर किथे भईया, अऊ कोनों तिहार में तो नींय काहय देखे बर। देवारी में दिया जलाथन, दसेरा म रावन जलाथन, होली म होलिका ल जलाथन। माने सबो तिहार में हमन कुछु न कुछु बुरई ल जलाथन अऊ ओकर तियाग करथन। फेर ये चुनई तिहार म काय करे बर पड़ही। चुनई ल जलाय बर पड़ही कि बटन चपके बर किथे तेन ल जलाय बर पड़ही। मोर मगज में समझ नई परत हे येमन हमी मन ल तो जलाय बर तो नीं आय हे न।
पंचू- देखे बर माने चुनई में मोला जिताहूँ किथे भकला, तभे तो तिहार मनाहू किथे, भारी भारी घोषणा करथे। कीथे मोला एक बार जितवा दव जतका कुंदरा अऊ छानही दिखत हे, सबो ल पक्का बना देबोन। सबो घर बिजली पानी के नरवा बहा देबो, कोनों लाँघन नई मरय, अऊ मरही तेन ह खायेच के मरही कीथे।
भकला- येंहा तो तिहार असन नई लागत हे, इसकुल म गुरूजी अऊ सरपंच ह भासन देथे पंदरा अगस्त के दिन तईसने बरोबर बतावत हस भईया। हमर मन के कोनों फायदच नईये येकर मन के भासनबाजी में, ले फेर छोड़ त नवा नवा ओनहा पहिरे बर नई मिलय, न आनी बानी के जिनिस खाय बर नीं मिलय। न बम फोड़ सकन, न गुलाले उड़ा सकन, दारू सारु बोकरा भेंड़वा ल दुरिहा ले परनाम करथन, त अईसन तिहार मनाय के काय फायदा जेमे रात दिन जीवे के हतिया करवावथ रीथे।
पंचू- तोर भले फायदा नीये रे भकला, फेर कुकुर माकर बेंदरा मन जेन पाछू पाछू घुमत रीथे चुनई तिहार वाले सन, वोमन आदमी बन जथे। कुंदरा ह वोकर महल म तन जथे जी। चिरहा खीसा ह पैईसा म फुल जथे, जनम के मुरहा ह गोल्लर असन मसमोटा जथे।
भकला- टार भईया ये तिहार ल तोरे सन रख गाँव में मत बगरा, नईते गाँव के गली चिक्कन चांदर चिखला मात जही साले ह। जम्मों मुरहा मन फेर हुल्लड़ मचाही, देवारी, दसेरा, होली, हरेली सबो नदा जही अईसन चुनई तिहार म, भाई ह भाई के बैइरी हो जही त गुलाल काकर माथा म लगाबो। नवा कुरता पहिने बर तरस जबो, रामलील्ला कोन करही, सफ्फा सादा मन रावण बन जही, पिचका पिचक जही त कईसे होली में रंग छिचबों। सबो गाँव के मईनखे मन ल इही तिहार के अगोरा रईही फेर, कब आही चुनई तिहार, कब आही चुनई तिहार कीके। हमर अईरसा, बरा, बोबरा खीर तसमई के करलई हो जही। हमर असन मनखे बर जीव के काल हो जही।
पंचू- अरे यार भकला कोनों जीव के काल नी होवय, कोनों बुरई ल ये तिहार म नीं जलाना ये। चुनई वाले के बुरई कतको रहय, वोकरे गुण गाना हे, ओकरे नाव के बटन ल चपक के कुरसी म बैईठारना हे। न रावण ल मारना हे न होलिका ल जलाना हे, बस राम ल चीखला म धकेलना हे। काबर इहाँ रावने रावन सकला गेहे, राम बपुरा अकेल्ला पड़ गेहे, रावण चारों मुड़ा गंजमजा गेहे।
पंचू अऊ भकला के गोठ ल सुन के मंय दंग रहिगेंव, नाव भले भकला हे फेर जेन गोठ वोहा गोठयाईस मोर अंतस ल छु लिस। ये चुनई के चक्कर म हमन अतेक अंधिरियाँ गेंहन अपन बेवस्था ल छोड़के सुवारथी मन के पाछू म पल्ला भागत हन। ये चुनई ह कब ले तिहार बनगे कईके, सोचे बर मजबूर होके गुनत हौ। अईसे लागत हे राख के भोरहा म अंगरा ल छुवत हन।
परिया परगे धनहा डोली, जाँगर कोन खपाय,
मीठलबरा के पाछू घुमैईया ससन भर के खाय।
बाँचा माने येकर मनके, कुंदरा, महल बन जाय,
पंचू, भकला के गोठ संगी, इही बात ल बताय।
आगे चुनई तिहार, आगे चुनई तिहार कीके,
करमछड़हा मन बेंदरा असन हूँत हूँत चिल्लाय।

विजेंद्र वर्मा ‘अनजान’
नगरगाँव (धरसीवां)