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कविता

सोंच समझ के चुनव सियान

छत्तीसगढ़ ला गजब मयारू,
सेवक चाही अटल जुझारू,
अड़बड़ दिन भोरहा म पोहागे,
निरनय लेके बेरा आगे।
पिछलग्गू झन बनव, सुजान,
सोंच समझ के चुनव सियान ।।

करिया गोरिया जम्मो आही,
रंग रंग के सब बात सुनाही,
जोगी आही भोगी आही,
सत्ता लोलुप रोगी आही।
कोन हितू, कोन बेंदरा मितान,
सोंचा समझ के चुनव सियान।।

एक झिन बड़का सरग नेसेनी,
दूसर के अदभुत हे करनी,
ये नाग के नथइया, ओ सांप नचइया,
दुबिधा म मत परव रे भइया।
रसता सुझाही कुलेस्वर भगवान,
सोंच समझ के चुनव सियान।।

नहि खुरसी के किरवा चाही,
अऊर नहि मुड़ पिरवा चाही,
मां भारती के रकछक पोसक,
हमला बिकास के बिरवा चाही।
धियान रखव जी गुरूजी के गियान,
सोंच समझ के चुनव सियान।।

गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा