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कविता

चुनई के बेरा मे आफर के बरसात हे।

चुनई के बेरा मे आफर के बरसात हे।
बोरे बासी खवईया बर भात ताते तात हे।

बच्छर भर ले राज करे बर दू दिन हमला भरमाही।
अभी माथ नवाही पाछू मेछराही अउ टुंहू देखाही।

अभी मंदरस घोरे बोली फेर पाछू लात हे।
चुनई के बेरा मे आफर के बरसात हे।।

आनी-बानी के सपना देखाही,जम्मोझन रिझाहीं।
नून-चटनी के खवईया ल सोंहारी तसमही म दंताही।

चुनाव के झरती म उहीच पेट अउ पाट हे।
चुनई के बेरा मे आफर के बरसात हे।

लेठवा अउ अलाल मन के दिन बादरआही।
रंग-बिरंगा गमछाधारी मन पोरोर-पोरोर चिल्लाही।

बोट के कीमत मनखे नी जाने,इही दुख के बात हे।
चुनई के बेरा मे आफर के बरसात हे।

रीझे यादव
टेंगनाबासा(छुरा)

One reply on “चुनई के बेरा मे आफर के बरसात हे।”

शानदार व्यंग्यात्मक सृजन ।
हकीकत बखान करत हे ।

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