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कविता

ददा

बर कस रूख होथे ददा
जेकर जुड छांव म रथे परवार
बइद बरोबर जतनथे
नइ संचरन दे कोनो अजार।
चिरई-चुरगुन कस दाना खोजत
को जनी कतका भटकथे
माथ ले पसीना चुहथे त
परवार के मुंहु म कौंरा अमरथे।
परवार के जतन करे बर
अपन जम्मो सुख ल तियागथे।
खुद के गोड भले भोंभरा म लेसावय
फेर अपन लइका बर पनही लानथे।
ददा के सम्मान बर एक दिन का
पूरा बच्छर घलो कमती हे।
संउहत देवता के जीते जी
सम्मान नी करन ये हमर गलती हे।
भरम होथे मनखे ल अपन बडे होय के
अपन गियान अउ संपत्ति के।
फेर ददा के आगू म खडे होबे त पता चलथे
अपन सही कद अउ नान्हे मति के।
ददा ह सगरो अगास हरे
ओकर महानता के ओर न छोर हे!
ददा के मया ककरो बर नोहर मत होवय
मोर बिनती कर जोर हे!!!

रीझे यादव
टेंगनाबासा