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कविता

दारू छोड़व

झन पी तैं दारू ला संगी , एक दिन तेहा पछताबे।
सब कुछ खतम हो जाही ता , काला तेहा खाबे।।
छोड़ दे तेहा दारू पीना , आदी तैं हो जाबे।
बड़े बड़े बिमारी आही, जान अपन गंवाबे।।

लड़ाई झगड़ा छोड़ दे , झन कर तैं अपमान।
नारी होथे दुर्गा काली , ओकर कर सम्मान ।।
अगर पीबे दारू त , जाही तोर इमान।
रखले सबके इज्जत ला , मत बन तैं बेइमान।।

प्रिया देवांगन “प्रियू”
पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
Priyadewangan1997@gmail.com