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कविता

देखे हँव

बद ले बदतर हाल देखे हँव।
काट के करत देखभाल देखे हँव।

शेर भालू हाथी डरके भागे बन ले,
गदहा ल ओढ़े बघवा खाल देखे हँव।

काखर जिया म जघा हे पर बर बता,
अपन मन ल फेकत जाल देखे हँव।

जीयत जीव जंतु जरगे मरगे सरगे,
बूत बैनर टुटे फुटे म बवाल देखे हँव।

सेवा सत्कार करे म मरे सब सरम,
चाटुकारिता म कदम ताल देखे हँव।

काखर उप्पर करके भरोसा चलँव,
चारो मुड़ा म पइधे दलाल देखे हँव।

भाजी पाला कस होगे कुकरी मछरी,
मनखे घलो ल होवत हलाल देखे हँव।

कोन भला बच पाही ए जुग म,
पगपग म बइठे काल देखे हँव।

जात-पात ऊँच-नीच तोर-मोर के खातिर,
मनखे मनखे के चीथत गाल देखे हँव।

गियानी के गियान धियान उरकगे,
अड़हा के मुख म सवाल देखे हँव।

जाँगर वाले ल जरत बरत मरत,
बैठांगुर मन ल माला माल देखे हँव।

ये जुग ल देख खरागे जम्मो मोर धीरज,
मया पीरा म घलो झोलझाल देखे हँव।

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)

– जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)
9981441795