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कविता

डेंगू के कारण कोन

एक दिन बस्ती के मच्छर एकजघा जुरियाँइन।
भनन-भनन बड़ करीन ,बिक्कट गोठियाँइन।

कहत हें:- मनखे मन बड़ हुशियारी झाड़थें।
गलती अपन करँय अउ बिल हमर नाँव मा फाड़थें।

करके ढेराढारी, कचरा फेकथें ऐती तेती।।
रंग-रंग के बिमारी सँचरथे ओखरे सेती।

जघा जघा गंदगी के ढेरी खुदे लगात हें।
अपने करनी कर बेमारी ला बलात हें।

अपन घर के कचरा डारँय दूसर के मुँहाटी मा।
तहाँ ले झगरा माते भारी लात अउ लाठी मा।

अतका बुध नइ के सकेल कचरा ला जला दँय।
नहीं ते पालिका कचरा गाड़ी ला बला लँय।

बेरा बिता देथें चुगली चारी चटर-पटर मा।
झिल्ली अउ प्लास्टिक ला डारत हें गटर मा।

अइसन माहौल हमर बर सरग सरी सुखधाम होथे।
मनखे के करनी ले हमन ला ल बहुते अराम होथे।

खँचवा डबरा मा बोहात पानी हा जब माढ़थे।
इही मा हमर परिवार खसखस ले बने बाढ़थे।

काय करही येमा डाँक्टर, नेता, मंतरी हा।
ते कायेच करही मास्टर, पुलिस अउ संतरी हा।

सिरतों मा मनखे हा अगर सफई ला अपनाही।
मच्छर माछी कहाँ अपन ठिकना बना पाही।

सबले पहिली साफ सफाई के तो करँय काम।
फोकटिहा डेंगू बर हम ला झन करँय बदनाम।

अइसन माहौल मा हमरो एकदिन मालगुजारी होही।
झट नइ चेतहीं ता डेंगू हा एक दिन महामारी होही।

कन्हैया साहू “अमित”
भाटापारा, छत्तीसगढ़

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