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कविता

देवारी तिहार मनाबों

deepak

चलव संगी सुग्घर देवारी तिहार मनाबों,
फईले हे मन में अंधियार उहीं ल भगाबों,
अऊ दिया हिरदे के देहरी मा जलाबों ।

तईहा के बात ल छोड़के,आजे कुछु करबों,
मया पिरित के गोठ गोठियाके,
संगी जहुरियां के हिरदे मा बसबों ।

पथरा गेहे जेकर आँखी ह,
ऊहूँ ल सुग्घर फुलझड़ी धराबों,
परब हाबय खुशीके अऊ खुशी के गीत गाबों ।

ऊँच नीच के परदा ल संगी,
आजेच सिरतोन मा गिराबों,
नवा अंजोर अऊ नवा बछर असन,
सुग्घर देवारी तिहार मनाबों ।

अईसन भाईचारा अंतस म लाबों,
अपन संसकार के अंजोर ल घरों घर फैईलाबों,
परब हाबय मया अऊ बिसवास के,
हिरदेच भीतरी मा अपन पहिली दिया जलाबों ।

चलव संगी सुग्घर देवारी तिहार मनाबों ।
चलव संगी सुग्घर देवारी तिहार मनाबों ।।
विजेंद्र कुमार वर्मा
नगरगाँव (जिला-रायपुर)