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कविता

धरम बर तुकबंदी

आड़ लेके धरम के, सत्ता सुख के छांव
अस्त्र धरे कोनो हाथ म, कोनो घुंघरू बांधे पांव

छुरी छुपी हे हाथ मं, मुख म बसे हे राम
कंहूं हजरत के नाम ले, करथें कत्लेआम

भोला बचपन विश्व म, भाला धरे हे हाथ
भरे जवानी आज इंखर, छोड़त हवय रे साथ

कराहत हे इंसानियत, चिल्लावत चारो डहर
धरम हमार मौन हे, सत्ता के नईहे ठउर

कोई कहे अल्लाह बड़े, कोई कहे श्रीराम
कोई कहे ईसा सही, कोई कहे सतनाम

कहूं धरम के नाम म, चलत हवे बंदूक
कहूं धरम के नाम म, भरत हवे संदूक

आज धरम के मरम ल, समझे हावे कौन
कांव-कांव कौवा करे, कोयल बइठै मौन

हम सबला दू हाथ मिले, करे बर सद्काम
एक हाथ ले जेब भरे, एक हाथ में जाम

नाम ला ले राम के, तबो होही तोर काम
रावण के गर रद्दा चलबे, तब बिगड़ही काम

रावण के रद्दा म चलबे, तब नई मिलही राम
मात-पिता जेखर नहीं, उंखरो हावे नाम

कलयुग में हे कर्म बड़े नहीं कोनो के नाम
अमन-चैन कायम रही, तभे धरम के मोल

पूजा-पाठ-ओ-अजान सब, वरना ढपोसला बोल
नईं ते माथा टेंकई, बस लइकन मन के खेल

उमर पेड़ के सदा बड़े, फूलन के कुछ पल
महक फूल के होवथे कम, काखर हे ये छल

धरम वृक्ष के ओही बड़े, रोज फूले नवा फूल
फूल झरहीं एक साथ अगर, रोज के गड़ही शूल।

पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
“छत्तीसगढ़िया राजा”
मुंगेली-छत्तीसगढ़ 7828657057